







Totaram ka Dehadaan (Prose Satire) / तोताराम का देहदान
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पुस्तक के बारे में
रमेश जोशी का नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन
तोताराम ने आते ही कहा– बधाई हो अग्रज!
हमने कहा– किस बात की?
बोला– नोबल शांति पुरस्कार हेतु नामांकन के लिए।
हमने कहा– नामांकन तो गाँधी और नेहरू का भी हुआ था लेकिन मिला किसी को नहीं। क्या ‘भारत रत्न’ के लिए आडवानी जी का नाम किसी ने ही आगे नहीं बढ़ाया होगा? लेकिन ‘फाल्स प्रेगनेंसी’ की तरह निकला क्या? ऐसे में बधाई देकर हमारे साथ क्यों मज़ाक कर रहे हो?
बोला– यह मुँह और ‘दाल रायसीना’!
हमने कहा– तो फिर बधाई किस बात की?
बोला– तुझे नहीं। यह तो इस बात की है कि अपने मोटा भाई का नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन हुआ है।
हमने कहा– मोटा भाई कौन?अपने मोदी जी या अमित जी?
बोला– नहीं, ये अमरीका के राष्ट्रपतियों की तरह सम्मान और यश के भूखे नहीं हैं। ये तो निष्काम सेवक हैं। मैं तो अमरीका वालों की बात कर रहा था।
हमने कहा– लेकिन ट्रंप मोटा भाई कैसे हो गए? वे तो जर्मन मूल में है। अमरीका की कोलोक्वल बोली में कहें तो ‘बडी’ कह सकते हैं।
बोला– अब तो ट्रंप कहाँ पराए रह गए हैं? मोदी जी का अमरीका में ‘हाउ डी’ मोदी होता है और ट्रंप का यहाँ ‘नमस्ते ट्रंप’ होता है। मोदी जी वहाँ उन्हें वोट दिलाते हैं और वे मोदी को भारत का बाप बना देते हैं। अब तो ‘आई.एन.डी.ए.’ मतलब ‘इंटर नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस’ भी हो गया है।
याद है, ओबामा ने जनवरी 2008 में राष्ट्रपति बनते ही फरवरी में अपना नामांकन करवा लिया। दस दिन में दुनिया ने उनमें कौन सी महानता देख ली। इतने दिन में तो आदमी को नई कुर्सी पर ढंग से बैठने की आदत नहीं हो पाती। और अब ट्रंप ने अपना नामांकन करवा लिया है।
हमने कहा– ट्रंप ने पिछले साढ़े तीन साल में तरह-तरह की अद्भुत हरकतों से अपनी महानता का परिचय दिया लेकिन दुनिया ने ध्यान ही नहीं दिया। अब कोरोना-काल में उनकी अद्भुत प्रबंधन क्षमता से प्रभावित होकर नोबल समिति ने बिना किसी के नामांकन किए स्वयं अपनी ओर से संज्ञान लिया है। जैसे भारत के गृहमंत्रालय ने कंगना को बिना मांगे ही ‘वाई प्लस’ सुरक्षा प्रदान कर दी।
बोला– मज़ाक मत कर। औरों का मुझे पता नहीं लेकिन ट्रंप की प्रतिभा महान है। कुछ नहीं किया लेकिन कोरोना से सबसे ज्यादा संक्रमण और मौतें अमरीका में हुईं लेकिन यह ट्रंप का ही कमाल था कि लोगों की हिम्मत नहीं टूटने दी। कालों के खतरे से अमरीका को बचा लिया। भले ही शूटिंग की बात की लेकिन कोई ‘जलियाँवाला बाग़’ नहीं बनाया, एटोमिक हथियारों का उत्तर कोरिया से भी बड़ा बटन उनके हाथ में था लेकिन नहीं दबाया। भारत चीन के बीच मध्यस्थता के लिए तीन दिन में एक बार ज़रूर प्रस्ताव दे देते हैं। अरब और इज़राइल के बीच समझौता करवाया।
हमने कहा– हम तो तब मानेंगे जब वे अपने मन से काले-गोरे की कुंठा निकाल देंगे। और हथियारों की बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य और तकनीक का लेनदेन करेंगे।
बोला– यह नहीं हो सकता। इसी कुंठा पर तो अमरीका की ग्रेटनेस खड़ी है जिसे ट्रंप को बचाना है। वैसे कहे तो तेरा नामांकन भी करवा दें।
हमारे मन में आडवानी जी की तरह से गुदगुदी हुई। सकुचाते हुए कहा– ऐसा कैसे हो सकता है। उसके लिए तो यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर, किसी राज्य,राष्ट्र के प्रमुख, राष्ट्रीय स्तर के नेता, नोबल जीत चुके या नोबल समिति के सदस्य ही नामांकन कर सकते हैं।
बोला– इसमें कौन बड़ी बात है? अपने सीकर में विश्व स्तरीय कोचिंग संस्थान और मेरिट देने वाले विद्यालय हैं। करणी सेना, विप्र सेना, यादव सेना, जाट सेना आदि के वैश्विक संगठन हैं। नहीं होगा तो एक ‘न्यू अंतर्राष्ट्रीय विप्र प्रतिभा सम्मान सेना’ बना लेते हैं। उसकी तरफ से तेरा नामांकन करवा देते हैं।
हमने कहा– इससे क्या फायदा होगा?
बोला– बड़े अखबारों के ट्रंप के नामांकन के समाचार की तरह नहीं तो कम से कम किसी विश्वसनीय अखबार के सीकर संस्करण में तो यह समाचार आ ही जाएगा–
मास्टर रमेश जोशी का नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन।
ऐसे ही माँगते-माँगते फ़क़ीर बनते हैं। एक ही दिन में कोई रेलवे प्लेटफोर्म से पार्लियामेंट में थोड़े चला जाता है।
11-9-2020
…इसी पुस्तक से…
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Description
Description
रमेश जोशी
18 अगस्त 1942 को शेखावाटी के शिक्षा और संस्कृति की दृष्टि से समृद्ध कस्बे चिड़ावा (झुंझुनू-राजस्थान) में जन्म।
राजस्थान विश्वविद्यालय से एम. ए. हिंदी और रीजनल कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन, भोपाल से बी.एड.।
40 वर्षों तक प्राथमिक विद्यालयों से महाविद्यालय तक भाषा-शिक्षण के बाद 2002 में केंद्रीय विद्यालय संगठन से सेवा-निवृत्त।
शिक्षण के दौरान पोरबंदर से पोर्टब्लेयर तक देश के विभिन्न भागों की संस्कृति और जीवन से जीवंत परिचय ने सोच को विस्तार और उदारता प्रदान की।
1958 में साप्ताहिक हिंदुस्तान में प्रकाशन से छपने का सिलसिला शुरू हुआ जो कमोबेश नियमित-अनियमित रूप से 1990 तक चलता रहा। इसके बाद नियमित लेखन।
अपने समय की लगभग सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित, अब भी कई समाचार पत्रों में कॉलम लेखन।
अब तक व्यंग्य विधा में गद्य-पद्य की दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित।
अनेक सम्मानों और पुरस्कारों से अलंकृत।
दो शोधार्थी व्यंग्य साहित्य पर शोधरत।
पिछले 22 वर्षों से अमरीका में आवास-प्रवास।
2012 से अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति अमरीका की त्रैमासिक पत्रिका ‘विश्वा’ का संपादन।
ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com
संपर्क : भारत : दुर्गादास कॉलोनी, कृषि उपज मंडी के पास, सीकर-332-001 (राजस्थान) # 094601-55700
अमरीका : 10046, PARKLAND DRIVE, TWINSBURG, O.H., U.S.A. 44087 # 330-989-8115
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