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Bitto ke Bidai / बिट्टो के बिदाई

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Language: Hindi
Pages: 128
Book Dimension: 5.5″ x 8.5″
Format: Hard Back

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Description

पुस्तक के बारे में

किसी भी भाषा या बोली के साहित्य का श्रीगणेश प्रायः कविताओं से ही होता है, किन्तु यह समृद्ध होता है गद्य साहित्य से। बहुत स्वाभाविक है, कि गद्य साहित्य के विकास में समय लगता है। बघेली बोली की साहित्यिक परम्परा का सूत्रपात पन्द्रहवीं सदी से मिलने लगता है। रीवा राजघराने के दस्तावेजों में बघेली गद्य के नमूने तो अठारहवीं शताब्दी में मिलने लगते हैं, किन्तु इसके साहित्यिक स्वरूप तक पहुँचने में बहुत समय लग जाता है। बीसवीं शताब्दी में रामभद्र गौड़ की बघेली कहानियों, निबन्धों का उल्लेख अवश्य मिलता है, किन्तु आज वह अप्राप्य हैं।
बघेली के कथा-साहित्य की प्रामाणिक शुरूआत सैफुद्दीन सिद्दीकी ‘सैफू’ के कहानी-संग्रह ‘नेउतहरी’ (1982) से मानी जाती है। इसके बाद अनेक साहित्यकारों ने बघेली के कथा-साहित्य को गति देने हेतु सार्थक प्रयास किये और दस प्रकाशित कहानी-संग्रह सामने आये। विगत दो-तीन वर्षों की अवधि में बघेली लघुकथा-संग्रहों का प्रकाश में आना बघेली कथा-साहित्य के लिए शुभ संकेत कहा जा सकता है।
विगत लगभग पाँच-छः वर्षों की अवधि में ‘बघेली साहित्य : उद्‍भव एवं विकास’ पुस्तक पर काम करते हुए मैंने यह अनुभव किया, कि बघेली कथा-साहित्य में सृजन की जो धारा प्रवाहित हो रही है, वह आकाशवाणी रीवा के रिकॉर्डिंग रूम में जाकर समाप्त हो रही है। बघेली साहित्य के लिए यह स्थिति चिन्ताजनक प्रतीत हुई। सुखद कहा जायेगा, कि मेरी इस चिन्ता को कतिपय उत्साही रचनाधर्मियों ने अपनी चिन्ता मानते हुए, इस दिशा में सार्थक प्रयास करने शुरू किये। इन्हीं प्रयासों में से एक है– गीता शुक्ला ‘गीत’ का यह बघेली कहानी-संग्रह ‘बिट्टो के बिदाई’।
निश्चित रूप से यह उनका पहला कहानी-संग्रह है, किन्तु इन कहानियों से गुजरते हुए कथावस्तु का संयोजन, प्रवाह, उनकी संवाद शैली के साथ ही कहानियों के माध्यम से परोसा गया संवेदनात्मक परिपाक, पाठक को बाँधे रखने में सक्षम है।
गीता शुक्ला नारी विमर्श की मशाल लेकर नहीं चलतीं इसके बावजूद, संग्रह की सोलह में से सात (दइउ के नियाव, पायल के खातिर, बिमला, बिट्टो के बिदाई, साझे के महतारी, पहिचान और मउसी) कहानियाँ नारी अस्तित्व की जद्दोजहद को उजागर करती हैं। संग्रह की कहानियों का उल्लेखनीय पक्ष यह है, कि प्रत्येक कहानी पाठक को उसके बिल्कुल आसपास की लगती है।
गीता शुक्ला ‘गीत’ मानव मनाविज्ञान को बारीकी से ग्रहण करती हैं। यही कारण है कि संग्रह की सभी कहानियाँ, न केवल समय के साथ संवाद करने में सक्षम प्रतीत होती हैं, अपितु एक दिशा का निर्धारण भी करती हैं। युगीन सांस्कृतिक क्षरण, विकासवादी सामाजिक ढाँचा और दिनों दिन क्षरणशील मानवीय संवेदना का जो चित्र फुफ्फा जी के सीमा, ऐना के गबाही, झुमका के बँटबारा, पाप से उद्धार, बुढ़ाईं के गइलि आदि कहानियों में उभरकर सामने आता है, वह आश्वस्त करता है, कि गीता शुक्ला ‘गीत’ कथा-साहित्य की यात्रा में लम्बी दूरी तय करने में समर्थ होंगी।
बघेली की कहानियों में बघेली लोक और संस्कृति को बचाये रखने में वह सफल हुई हैं। अनेकानेक लुप्त होते जा रहे बघेली शब्दों को इन कहानियों में जिस सहजता से प्रयोग किया गया है, वह न केवल कहानी को गति देने में सहायक हैं, अपितु पाठक को उन भूले-बिसरे शब्दों की याद दिलाने का दायित्व भी निभाते मिलते हैं।
गीता शुक्ला ‘गीत’ का यह कहानी-संग्रह ‘बिट्टो के बिदाई’ न केवल बघेली कथा-साहित्य को समृद्ध करेगा, अपितु बघेली साहित्य जगत में लम्बे समय तक अपनी उपस्थिति का आभास कराता रहेगा, ऐसा विश्वास है।

— डॉ. राम गरीब पाण्डेय ‘विकल’

 

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