Sale

Bin Dyodi ka Ghar (Part-3) (Novel) / बिन ड्योढ़ी का घर (भाग-3) (उपन्यास) – Tribal Hindi Upanyas

Original price was: ₹599.00.Current price is: ₹350.00.

FREE SHIPMENT FOR ORDER ABOVE Rs.149/- FREE BY REGD. BOOK POST

Language: Hindi
Pages: 224
Book Dimension: 5.5″x8.5″
Format: Hard Back

Amazon : Buy Link

Flipkart : Buy Link

Kindle : Buy Link

NotNul : Buy Link

“प्रेम में गरब नइ चलता। गरब का अजगर प्रेम को लील लेता है। जैसे राजा अन्‍नम देव के गरब ने उसके प्रेम को लील लिया। तेरे को राजा अन्‍नम देव और राजकुमारी चमेली की कहानी तो मालूम है न?”
“उनका कहनी तो इदर सब लोग जानता। मैं बी सुना।”
“बस सुना? गुना नहीं? आज फिर से सुन और गुन उसको।” मन ने कहा और कहानी सुनाने लगा…
बहुत साल पहले की बात है। वारंगल में एक राजा थे अन्‍नम देव। उन्हें शिकार खेलने का बहुत शौक था। वे अक्सर अपने दल बल सहित शिकार खेलने निकल पड़ते। शिकार के साथ-साथ जो भी चीज पसंद आ जाती, उसे वे हासिल कर लेते। तब बस्तर के जंगल वारंगल से जुड़े हुए थे, तो शिकार खेलते-खेलते वे इस ओर भी चले आते। एक दिन वे शिकार खेलते हुए, चित्रकोट की सीमा के भीतर तक चले आये।
चित्रकोट के राजा थे हरीशचंद्र। उनकी बेटी थी चमेली। वैसे तो चमेली राजा की तीसरे नंबर की संतान थी लेकिन वह सबसे ज्यादा योग्य थी। राजकाज में पिता का सहयोग करती थी। पिता को बहुत प्रिय थी वह। वह समय राजकुमारी के वन विहार का था। चमेली आम राजकुमारियों की तरह तो थी नहीं, तो उसका वन विहार भी केवल मन बहालाव के लिए नहीं था। वह वन विहार के साथ-साथ अपने राज्य की व्यवस्था और सुरक्षा की निगरानी भी करती थी। वह सुंदर भी बहुत थी। इतनी सुंदर कि देखने वाले की नजरें बिंध कर रह जायें। अन्‍नम ने उसे देखा, तो पलक झपकाना ही भूल ही गये। सघन वनों सी गझिन केश राशि, उससे बना सुंदर बस्तरिया खोपा (जूड़ा), बस्तरिया लुगरा जिसे उसने घुटनों से ऊपर धोती की तरह काँछ मारके पहना था। कमर से लटकती तलवार, तो वे उसे देर तक निहारते ही रहे फिर उसकी ओर बढ़े। अभी वे बढ़ ही रहे थे कि सनसनाता हुआ एक तीर आया और उनके काँधे को छूकर एक पेड़ में जा धँसा। तीर के साथ ही एक आव़ाज उनके कानों से टकरायी–
“वहीं रुक जाइये। यह हमारे राज्य की सीमा है। यहाँ किसी गैर को प्रवेश की इजाजत नहीं।” राजकुमारी की आवाज में कोमलता के साथ एक कठोरता भी थी।
अन्‍नम ने देखा राजकुमारी का सुंदर मुख, वीरत्व की आभा से दमक रहा था। सौंदर्य और वीरत्व का ऐसा संगम था कि उन्हें लगा, मानों चाँद और सूरज एकाकार हो गये हों। उनके रनिवास में बहुत सी रानियाँ थीं। कई देश और राज्य का अनुपम सौंदर्य मौजूद था रनिवास में। सौंदर्य में वे इस राजकुमारी से कम भी नहीं थीं, मगर वीरत्व की आभा? वही आभा उनके मन को लूट ले गयी। वे कुछ देर तो ठगे से देखते रहे फिर और आगे बढ़े।
“आपने सुना नहीं? यह हमारा राज्य है?” अबकी राजकुमारी ने तलवार निकाल ली।
राजकुमारी को तलवार निकालते देख, उनके साथ आये सैनिक आगे बढ़े लेकिन अन्‍नम ने उन्हें रोक दिया। फिर तो चमेली अन्‍नम के सामने जा खड़ी हुई और तलवार की नोक उनके सीने से सटा दी।
“अब आप हमारे राजबंदी हैं। मैं चाहूँ तो आपको इसी समय, गिरफ्तार कर कारागार में डाल सकती हूँ।”
“गिरफ्तार? वह तो हम कब के हो चुके। अब तो बस सजा चाहते हैं। उम्र कैद की सजा।” अन्‍नम ने एक आशिक के अंदाज में कहा और चमेली की कलाई पकड़ ली।
“छोड़ दीजिए। यह चमेली की कलाई है। आपकी जागीर नहीं।”
“अपनी जागीर नहीं, हम तो आपको अपने हृदय की रानी बनाना चाहते हैं।” कहते अन्‍नम ने उसकी कलाई पर अपनी जकड़ बढ़ा दी।

…इसी पुस्तक से…

SKU: N/A

Description

…पुस्तक के बारे में…

बस्तर बाहरी लोगों के लिए आज भी अबूझ है। देश और दुनिया के लिए यह कौतुक और मन बहलाव का उपादान मात्र है लेकिन बस्तर कौतुक नहीं हकीकत है। वहाँ भी हमारे जैसे ही इंसान रहते हैं लेकिन हमारा समाज उन्हें अपने बराबर मानने को तैयार नहीं। लोगों ने जंगल काटे लेकिन जंगल की व्यथा कथा जानने की कोशिश नहीं की। सब ने अपनी अपनी तरह से जंगल को देखा तो, मगर उसे पहचाना नहीं। शहरी मानसिकता रखकर पहचानना आसान भी नहीं। ऐसी ही दास्तान है यह उपन्यास ‘बिन ड्योढ़ी का घर–भाग तीन’।
उर्मिला शुक्ल ने उपन्यास बिन ड्योढ़ी का घर, बिन ड्योढ़ी का घर-भाग दो लिखकर हिंदी कथा लेखन में एक आयाम रचा और अब बिन ड्योढ़ी का घर-भाग तीन, लिखकर एक और नया आयाम रचा है। किसी उपन्यास का दूसरा भाग लिखना ही साहस का काम है। फिर तीसरा भाग तो उससे एक पायदान आगे बढ़ना है। उर्मिला शुक्ल ने यह किया और हमें यह नयी रचना दी।
मेरी शुभकामनाएँ उर्मिला शुक्ल के इस उपन्यास ‘बिन ड्योढ़ी का घर–भाग तीन’ के लिए कि पहले दोनों भागों की तरह, यह भी पाठकों की दृष्टि में खरा उतरे।

 –मैत्रेयी पुष्पा

कात्यायनी शिवराजन के मन की, आकुलता समझ गयी थी। सो उसे पीछे बुला लिया। पीछे आ शिवराजन ने, डंकिनी का पैर अपनी गोद में रख लिया। विज्ञान मानता है स्पर्श एक थेरेपी है लेकिन प्रेम में स्पर्श प्राण तत्व है। एक स्‍नेहिल स्पर्श मूर्छा में भी चेतना भर देता है। कुछ देर के लिए दर्द को भी मिटा देता है। सो उसका स्पर्श पा डंकिनी ने, पलाँश को अधखुली सी आँखों से देखा उसे, तभी दर्द की लहर आयी। शिवराजन ने हौले से अपना हाथ उसके पेडू पर रख दिया। डंकिनी की आँखें बंद थीं। दर्द भी खत्म नहीं हुआ था फिर भी शिवराजन का वह स्पर्श, उसे एक सुकून दे रहा था। हास्पिटल पहुँचते ही जाँच हुई लेकिन वह छोटा सा हास्पिटल था। बहुत सुविधाएँ भी नहीं थीं। सो डॉक्टर को कुछ समझ ही नहीं आया, तो नींद का इंजेक्शन दे जगदलपुर रिफर कर दिया। कात्यायनी ने जगदलपुर मेडीकल कॉलेज के डीन को कॉल कर उनसे मदद माँगी। डीन का आदेश था, तो सारा अमला चौकस था। सो हास्पिटल पहुँचते ही डंकिनी को वार्ड बॉय आईसीयू में ले गये। डॉक्टर को जाँच में केस असामान्य लगा। यूटरस में घाव सा महसूस हुआ।
“क्या कभी अंदरूनी चोट लगी थी। मेरा मतलब सेक्स के दौरान कुछ असामान्य…?” डॉक्टर ने पूछा, तो डंकिनी की आँखों में दुबई वाली रातें उतरने लगीं। शाहों के शौक तो निराले ही थे। उनमें से एक? वह तो भीतर अपना हाथ ही घुसा देता और अपने नाख़ूनों से लहूलुहान करता रहता उसे। फिर तो उन रातों का दर्द, डंकिनी के चेहरे पर इस कदर उभरा कि डॉक्टर ने कुछ और पूछा ही नहीं। उसने सोनोग्राफी करवाई। उसका शक सही निकला लेकिन फिर भी सीटी स्कैन करवाया। फिर तो शक की कोई गुंजाईश ही नहीं रही। डंकिनी के यूटरस और दोनों ओवरी में नासूर थे। तत्काल ऑपरेट करना जरूरी था।

…इसी पुस्तक से…

 

 

Additional information

Product Options / Binding Type

Related Products