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Sristi aur Dharm / सृष्‍टि और धर्म

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Language: Hindi
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अनुक्रम

  • सबका मालिक एक
  • ईश्‍वर क्या है?
    मैं कौन हूँ?
    आत्मा-परमात्मा
    धर्म की परिभाषा
    गुरु कौन है?
    ओम्
    साईं
    अध्यात्म
    पंचतत्व का नाम– ‘भगवान’
  • सृष्‍टि (UNIVERSE)
    बूँद का विकसित रूप प्राणी है
  • सृष्‍टि और भगवान
    सगुण-निर्गुण क्या है?
    ईश्‍वर का स्वरूप एक है
    ईश्‍वर एक क्रांति है
    ईश्‍वर निराकार है, अलौकिक है
    मैं साईं / ईश्‍वर का हूँ
  • सृष्‍टि का वैज्ञानिक द‍ृष्‍टिकोण
    क्या पदार्थ अमर है?
    जब पदार्थ के स्वभाव से सृष्‍टि का निर्माण होता है तो क्या सृष्‍टि में पदार्थ के अतिरिक्त और कुछ नहीं है?
    ब्रह्माण्ड
    ब्रह्माण्ड का जन्म
    बिग बैंग से पहले क्या था?
    सूर्य
    जीवन चक्र (सौर मंडल का गठन और विकास, और तारों का विकास)
    सूर्य का जन्म
    पृथ्वी
    भूकम्प
    पृथ्वी की सतह
    जलमंडल
    जलवायु
    आकाश
    चन्द्रमा
    वायुमंडल
    सौरमंडल (सूर्य एवं आठ ग्रहों का मंडल)
    बुध
    शुक्र
    पृथ्वी
    मंगल
    बृहस्पति
    शनि
    अरुण
    बरुण
    तारा
    ज्वार-भाटा
    अणु
    परमाणु
    चन्द्रग्रहण
    सूर्य ग्रहण
    सूर्य सौर परिवार का केन्द्र बिन्दु है
    मानव इतिहास की खोज
    नेचुरल सेलेक्शन या प्राकृतिक चयनवाद
    सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट
    नौ नहीं, लाखों है ग्रहों की संख्या
  • इस ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं
    अधिक सभ्य, सक्षम सभ्यताएँ
    उड़न तश्तरियों का रहस्य
  • मैं कौन हूँ?
    मैं तो पंचतत्व हूँ
    काल के बंधन से मुक्त हूँ
    ईश्‍वर प्राप्त नहीं होते, अनुभूति होती है
    मैं अखंडबोध हूँ
    मानव की पहचान– हिन्दू, ईसाई, मुसलमान…के रूप में क्यों?
    ईश्‍वर दर्शन का विषय नहीं है
  • धर्म–एक द‍ृष्‍टिकोण
    धर्म का सृजन
    सनातन धर्म
    सनातन धर्म क्यों कहना पड़ा?
    धर्म का बंटवारा
    सत्य की खोज का नाम है– ‘धर्म’
    धर्म का मर्म समझिये
    जो सबको जोड़े वही धर्म
    धर्म है जीवन का परम विज्ञान
    जीवन से प्यार ही धर्म है
    ईश्‍वर जीवन का आधार
    जीवन से प्रेम करो
    धर्म–जीवन की पवित्रता का पथ है
    धर्म के दो रूप
    धर्म का विरोध क्यों होता है?
    स्वार्थ की वृत्ति
    धर्म का मंगल स्वरूप
  • धर्म क्या है?
    धर्म की परिभाषा
    सभी पंथ एकमत है– ईश्‍वर एक है
    ईश्‍वरकृत बनाम मनुष्यकृत किताबें
    ईश्‍वर और आस्था
    आस्था में अनास्था (कोरोना-2020)
    धर्म और आस्था
    आस्था में लड़ाई
    धर्म-निरपेक्ष है
    धर्म जोड़ता है, तोड़ता नहीं
    धर्म क्या टुकड़ा-टुकड़ा हो सकता है?
    (1) ज्ञान
    (2) सत्य
    (3) प्रेम
    (4) अहिंसा
    (5) न्याय
    (6) सेवा
    (7) भक्ति
    (8) श्रद्धा
    (9) त्याग
    (10) क्षमा
    (11) संतोष
    (12) दया/करुणा
    (13) मानवता
    (14) विनम्रता
    (15) उदारता
    (16) पवित्रता
    (17) समरसता/समानता
    (18) परोपकार
    (19) भाईचारा
    (20) विश्‍वास
    (21) बन्धुत्व
    (22) सदाचार
    (23) परमार्थ
    (24) चरित्र
    (25) कर्त्तव्य के प्रति ईमानदारी
    (26) निष्पक्षता
    (27) शांति
  • धर्मपथ
    पाप और पुण्य
    धर्मपथ द‍ृढ़ता की पहचान है
    स्वयं की खोज
  • कर्मपथ
  • अध्यात्म
    आध्यात्मिक और भौतिक
    मनुष्य क्यों दुखी है–
    सुख अल्पकालिक है–
    संत-गुरुओं का भौतिकीकरण
    आध्यात्मिक ज्ञान जीवन को सात्विक बनाता है
    अध्यात्म हृदय को प्रकाशित करता है
    अध्यात्म– क्रोध को भी सोख लेता है
    अध्यात्म दुर्जन को सज्जन बनाता है
    अध्यात्म और गृहस्थाश्रम
  • स्वर्ग और नरक
    पुनर्जन्म और आत्मा
    मोक्ष कोई जीवन बीमा पॉलिसी नहीं
  • मानव जीवन और उसका लक्ष्य
    जीवन एक युद्ध है
    मैं और मेरापन– अहंकार का भाव है
    अहंकार का प्रोडक्ट क्रोध है–
    जैसी करनी– वैसी भरनी
    सत्संग एक सद्‍‍‍विचार है
    जीवन में आनन्द की तलाश
    पथ-प्रदर्शक स्वयं बनो
    चिन्ता नहीं, चिन्तन करें
    जीवन को कर्मयोग बना लो
    योग के सूत्र
    मन– समस्त कर्मों का कर्ता है
    मन– भूत व भविष्य में रहता है
    भविष्य का निर्माण
    जीवन को स्वर्णिम कैसे बनाएँ
    सुख और दुख अपने अन्दर ही निर्मित होते हैं
    क्या मनुष्य सुखी बना?
    दुख की जड़ कहाँ है?
    मानसिक दुख
    आंतरिक अमीरी
    साधन ज्यादा, सुख कम
  • भ्रष्‍टाचार मुक्त जीवन
    लोभ, लालच– मन की ईमानदारी पर चोट करता है
    भ्रष्‍टाचार का प्रतिकार ज्ञान है
  • राजनीति राजधर्म है
    रज मिश्रित तामसी राजनीति
    राजसी राजनीति
    राजनीति में सात्विक विचार
    विकृत राजनीति का जिम्मेदार कौन?
    नैतिकता बनाम अनैतिकता
    चाणक्य की सलाह
    राजनीति, नैतिकता, भ्रष्‍टाचार
  • दुनिया के मेले में हर व्यक्ति अकेला है
    संसार एक सपना है
    जीवन एक यात्रा है
    अंतिम संस्कार शरीर का होता है
  • शरीर आनन्दमय संसार है
    शरीर में सात ऊर्जा केन्द्र
    मृत्यु साथ ही चलती है
    मृत्यु है जीवन साथी
    मृत्यु को अलग मत समझो
    जीवन और मृत्यु एक रहस्यात्मक घटनाक्रम
    मुक्ति मार्ग
  • सद्ज्ञान, सद्‍मार्ग और सद्‍गति
  • सद्‍गुरु और शिष्य
    सद्‍गुरु : स्वामी विवेकानन्द का अनुभव
    कौन सद्‍गुरु, कौन असद्‍गुरु?
  • सद्‍गुरु साईंनाथ
    शिरडी– मानव का तीर्थस्थल

Description

पुस्तक के बारे में

तथाकथित धर्म एक सुन्दर परिवेश की कल्पना करते हैं और अपने-अपने रास्ते उस परम सत्ता को पाने के लिए प्रयत्‍नशील हैं। अगर सभी धर्मों-विश्‍वासों का लक्ष्य एक ही है, तो इससे आपसी टकराव की संभावना ही नहीं होती। टकराव की स्थिति तो तब बनती है, जब कोई अपने को श्रेष्‍ठ और दूसरे को निकृष्‍ट मानने लगते हैं। मैं ही सही हूँ और दूसरे सभी गलत हैं के विचार से ही संसार-समुदाय में टकराव की स्थिति उत्पन्‍न होती है। आज कोई भी अपने को किसी भी रूप में हीन समझने को तैयार नहीं और तैयार हो भी क्यों? जबकि सभी लोगों की उत्पत्ति एक समान साबित है!

सृष्‍टि द्वारा प्रदत्त पृथ्वी, अग्‍नि, सूर्य का प्रकाश, चाँद की रोशनी, आसमान से वर्षा की बूँदें, हवा आदि किसी देश, क्षेत्र या किसी जाति, सम्प्रदाय के लिए बँधकर नहीं रहते बल्कि दुनिया के हर जीव काे समान रूप से उपलब्ध कराकर अपने धर्म का निर्वाह करते हैं तो फिर मनुष्य का अलग-अलग धर्म क्यों? सही मायने में देखा जाए तो मानव द्वारा निर्मित कोई भी पंथ-सम्प्रदाय सिर्फ अपने में श्रेष्‍ठता का भाव भरने के लिए हैं। जब इसके प्रमुख/सर्वोपरि लोग अपने-अपने हिसाब से अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए, अपने पक्ष में इनकी व्याख्या करते हैं।

श्रीमद्‍भगवद्‍गीता/मनुस्मृति कहती है, चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) में रहो और इस पृथ्वी पर ब्राह्मण ही सबसे श्रेष्‍ठ है। बाइबल ईसाई बनने को कहता है, कुरान कहता है मुसलमान बनो। इसी तरह संसार के जितने भी तथाकथित धर्म हैं, सबके अलग-अलग फरमान हैं। पर कोई भी सही मायने में इन्सान बनने की बातें नहीं करता। किसी भी सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक संगठन अथवा तंत्र के बनाये जाने के साथ ही उसके संचालन के लिए अलग-अलग नीति-नियम निर्धारित कर दिये जाते हैं जिसका कट्टरतापूर्वक पालन करने की हिदायत होती है। यह कट्टरता ही समाज में सारे खुराफातों की जड़ है। जबकि समाज को वैचारिक उदारता की जरूरत होती है।

धर्म और पंथ में अंतर है। धर्म शाश्‍वत है, वह खण्डित नहीं होता। स्थानान्तरण भी नहीं होता। किन्तु पंथ अनेक हैं जिसमें पंथ प्रवर्तक को उनके समर्थक भगवान, ईश्‍वर का अवतार, ईश्‍वर का पुत्र, पैगम्बर अथवा उसका दूत कहकर लोग सम्मान-प्रतिष्‍ठा देते हैं। उनकी अपनी-अपनी किताबें हैं और वे चाहते हैं कि उनका ही अनुसरण किया जाए। किन्तु कोई भी तथाकथित पंथ, विचार में समानता का सर्वसम्मति नहीं है और न ही कोई आस्था, विचार, पंथ, विज्ञान की कसौटी पर खरे उतरते हैं? धर्म का विषय कर्त्तव्य भी है, जो मानवोचित कर्त्तव्यों से जुड़ा हुआ है। धर्म मनुष्य के अलावे अन्य प्राणियों पर लागू नहीं होता। आज धर्म को ज्ञान-विज्ञान की कसौटी पर परखने की जरूरत है। अतः दुनिया की कोई भी पुस्तक जो मानव-मानव में भेद पैदा करती है तो वह धर्मशास्त्र/धर्मग्रन्थ/Holi Book नहीं कही जा सकती?

आध्यात्मिक रूप से देखा जाए तो मानव-समुदाय की दो श्रेणियाँ हैं– आस्तिक और नास्तिक। नास्तिकों में चाहे वह दुनिया के किसी भी देश के निवासी हों, उनमें एक अभूतपूर्व एकता दीखती है। उनमें ईश्‍वर को लेकर कोई भ्रम-संघर्ष नहीं है। सारी लड़ाई तो उन लोगों के बीच है, जो ईश्‍वर के अस्तित्व को मानते हैं। फिर भी इन सभी लोगों को एक सूत्र में बाँधने का एक विचार अवश्य है, और वह है– ईश्‍वर की सत्ता को स्वीकार करना। रही बात आपसी संघर्षों की, तो वह है उसके नाम-स्वरूप, उसे मानने की विधि या उस तक पहुँचने के मार्ग को लेकर। इन्हीं बातों को लेकर सारा आपसी संघर्ष, वैमनस्य, कटुता है। असल में मानव अपने बनाये नियम-कानून के आधार पर ईश्‍वर से न्याय करने को कहता है। इसके लिए वह अपनी लिखी गयी अलग-अलग किताबों का हवाला देता है जिनमें उसकी अपनी व्यवस्थाएँ-व्याख्याएँ होती हैं। सभी को अपने ही नियम-परम्पराएँ, मान्यताएँ, व्यवस्थाएँ-व्याख्याएँ अच्छे लगते हैं और सभी ईश्‍वर-भक्त चाहते हैं कि ईश्‍वर उन्हीं के कानून मानकर उनके पक्ष में ही न्याय करे। अब सवाल है कि ईश्‍वर किसका कानून माने और किसका न माने। आस्तिक और नास्तिक के बीच इंसाफ करना, अंधविश्‍वास और विज्ञान के बीच झगड़ा का फैसला करना अर्थात् ईश्‍वर इनके चक्‍कर में नहीं रहता। वह तो सदा सत्य और तथ्य के पक्ष में होता है। ईश्‍वर ने पूरी सृष्‍टि को चलाने के लिए कौन-से तकनीकी नियम, कानून बना रखे हैं इसका आज तक किसी भी मनुष्य को पता नहीं चला। ईश्‍वर के कानूनों को मनुष्य ने हजारों वर्षों से जानने का अथक प्रयास किया, लेकिन आज तक कोई समझ नहीं सका और भविष्य में भी इसकी कोई गुंजाइश नहीं है। और जहाँ आदमी न्याय नहीं पाता तो हाथ उठाकर कहता है– ‘ईश्‍वर सब कुछ देखता है, अब वही हमारा न्याय करेगा।’ उसी तरह इंसान अज्ञानता की गर्त में चला जाता है। जहाँ अज्ञानता होगी वहीं झगड़ा, वैमनस्य, ईर्ष्या का साम्राज्य फैलता है।

मनुष्य जीवन का चरम लक्ष्य इस जीवन से इतर परम सत्य की अपरोक्षानुभूति, उस चिरन्तन-सनातन तथा एकमात्र सच्चाई से साक्षात्कार है। इसी महत उद्देश्य की सिद्धि हेतु सारे प्रयास-प्रयत्‍न किये जाते हैं। मनुष्य की भौतिक आवश्यकताओं में एक जठराग्‍नि या क्षुधा है, जिसकी तृप्ति के लिए आहार ग्रहण करना पड़ता है। भूख को तो किसी ने देखा नहीं, यह मात्र अनुभव की चीज है, किन्तु भोजन सबको दिखाई पड़ता है। ठीक यही बात ईश्‍वर की अनुभूति और उसकी प्राप्ति की चेष्‍टाओं के साथ भी है। इस आत्यन्तिक भूख की तृप्ति के लिए धर्म का सहारा लिया जाता है, जो दुर्भाग्यवश विवाद, गलतफहमियों, वैमनस्य के जनक बन रहे हैं। ऐसा धर्म की खोज के लिए नहीं, सिर्फ अपनी-अपनी श्रेष्‍ठता सिद्ध करने के लिए होता है। वस्तुतः सृष्‍टि-चक्र का ईश्‍वरीय प्राकृतिक नियम अलग और चुनौती से परे है और जो बाहरी नियम प्रचलन में हैं, वे सभी तथाकथित धर्माधिकारियों के बनाये हैं। ईश्‍वर के कानूनों को हजारों वर्षों से मनुष्य ने जानने का लाख प्रयास किया, लेकिन आज तक कोई समझ नहीं सका और भविष्य में भी इसकी कोई संभावना नहीं है।

 

… इसी पुस्तक से…

 

Additional information

Weight 400 g
Dimensions 23 × 16 × 1 in
Product Options / Binding Type

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