







Alochna ke Dhruvant aur Gandhi <br> आलोचना के ध्रुवांत और गांधी
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Author(s) — Suraj Paliwal
लेखक — सूरज पालीवा
| ANUUGYA BOOKS | HINDI| 248 Pages | 6.25 x 9.25 Inches |
| available in HARD BOUND & PAPER BACK |
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…पुस्तक के बारे में…
कहा जाता है कि ईसाई धर्म और बाइबिल पर जितना कुछ लिखा गया है, उतना अकेले महात्मा गांधी पर लिखा गया है। पर दुनिया के हर बड़े आदमी की तरह महात्मा गांधी भी विवादास्पद रहे हैं इसलिए उन पर परस्पर विरोधी विचारधाराओं के विद्वानों ने अपने-अपने तर्कों से उन्हें समझने और समझाने की कोशिश की है, जो अब भी जारी है। गांधीजी की 150वीं जयन्ती पर गांधीवादी संस्थाओं एवं अकादमिक दुनिया में सरकारी अनुदान द्वारा तमाम कार्यक्रम आयोजित किये गये लेकिन भविष्य के लिए छोटी-छोटी शोधपरक पुस्तिकाओं, डिजिटल व्याख्यानों एवं अन्य स्थायी तथा सर्वसुलभ सामग्री का निर्माण नहीं किया गया, जिसके माध्यम से नयी पीढ़ी अपने गांधी को समझ सके। इस चिन्ता ने मुझे गांधीजी की ओर मोड़ा, मैंने उन्हें पढ़ा और उन पर लिखा। चम्पारण आन्दोलन, नोआखाली और देश-विभाजन की त्रासद स्थितियों में गांधी जितना अकेले व दुखी रहे हैं, वह इतिहास का ऐसा पन्ना है जिसे बार-बार पढ़ने की आवश्यकता है। नोआखाली में नंगे पाँव उन्होंने 116 मील की यात्रा की तथा 47 गाँवों में वे गये और उन्होंने वह किया जो पंजाब में पचपन हजार सेना भी नहीं कर सकी थी। द्वितीय गोलमेज कॉन्फ्रेंस में वे लन्दन गये और ऐसी जगह ठहरे जहाँ सामान्य लोग रहते थे। मुरिएल लेस्टर ने ‘गांधी की मेज़बानी’ शीर्षक से उनके साथ बिताये हुए दिनों को लेखनीबद्ध किया है, जो महत्त्वपूर्ण है। उन्होंने लिखा कि इंग्लैंड में गांधीजी की प्रसिद्धि ब्रिटिश सम्राट से कम नहीं थी, उनसे हर व्यक्ति मिलना चाहता था, चाहे वह छोटा हो या बड़ा। मुझे सबसे अधिक निराश विश्वविद्यालयों के गाँधीवादी विभागों की गतिविधियों और उन प्राध्यापकों ने किया जो गांधी को पढ़ाते तो हैं पर उन्हें जीते नहीं हैं। कई वर्ष पहले दिल्ली में मुझे बंगलूरू की एक सम्भ्रान्त महिला मिली थीं, जो कन्नड़ में सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय का अनुवाद कर रही थीं। उन्होंने मुझसे कहा कि “कोई ऐसा अनुवादक बताइए जिसकी भाषा अहिंसक हो और जो हिंसा और अहिंसा के भेद को जीवन में जीता हो।” मैं बहुत देर तक उनका चेहरा देखता रहा और सोचता रहा कि यह सही है कि जो जीवन की गतिविधियों में ही नहीं बल्कि भाषा में भी अहिंसक हो, वही व्यक्ति गाँधी को समझ सकता है।
…इसी पुस्तक से…
‘आलोचना के ध्रुवांत और गांधी’ सूरज पालीवाल की ऐसी आलोचना-कृति है, जिसमें वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की डेढ़ सौवीं जयंती के अवसर पर नये सिरे से विचार करते हैं। वे गांधीजी के अछूतोध्दार कार्यक्रम, नोआखाली में उनके योगदान तथा रवींदनाथ टैगोर के साथ उनके संबंधों के अलावा जीवन के अंतिम प्रहर में अकेले पड़े गांधीजी की मार्मिक पीड़ा के साथ तादात्म्य स्थापित कर उन्हें समझने का प्रयास करते हैं । वे ऐसे आलोचक हैं, जो अपनी विचारधारा और समय की मुठभेड़ों को कृति के मूल्यांकन का आधार बनाते हैं । गांधी को फिर से पढ़ने, समझने और गांधीवादियों के छद्म को देखने के बाद उन्हें लगा कि अपने समय के सबसे बड़े आदमी के उन उपेक्षित प्रदेशों को भी देखना चाहिये, जिनसे उनकी पहचान बनी थी।
सूरज पालीवाल मुख्यतः कथा आलोचक हैं इसलिये समय-समय पर उन्होंने न केवल कथाकारों पर अपितु प्रमुख कृतियों पर भी लिखा, जो समय की एकलयता के साथ विचार की धारा को भी विच्छिन्न नहीं होने देता है। अपने समय और उसकी समस्याओं पर उनकी इतनी तीखी नज़र रहती है कि वे चंपारण के किसानों की पीड़ा को वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन से जोड़कर देखने के साथ बीसवीं सदी के आरंभिक काल में लिखे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की ‘संपत्तिशास्त्र’ तक जा पहुंचते हैं और यह स्थापना देते हैं कि किसानों की मुक्ति केवल सतत प्रतिरोध और बड़े आंदोलनों से ही संभव है।
सूरज पालीवाल हमारे समय के ऐसे आलोचक हैं, जिनकी आलोचना के सूत्र अपनी समकालीन आलोचना को समृद्ध करने के साथ विस्तार भी देते हैं।
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Weight | 750 g |
---|---|
Dimensions | 9.5 × 6.5 × 1 in |
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