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Guru Nanak Ji Krit Japuji Sahib: Ek Adhyyan <br> गुरु नानक कृत जपुजी साहिब : एक अध्ययन

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Language: Hindi
Book Dimension: 5.5″x8.5″

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Author(s) — Ravindra Gasso
लेखक  — रविन्द्र गासो

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 103 Pages | 2022 | 6 x 9 inches |

| available in HARD BOUND & PAPER BACK |

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Description

पुस्तक के बारे में

…प्रभु की सृष्‍टि में असंख्य लोग हैं, अच्छे भी हैं बुरे भी। गुरु नानक देव जी ने सभी को सामूहिक रूप में परमात्मा का ‘नाम’ माना है। सब में प्रभु का प्रकाश है।
असंख्य अच्छे कौन हैं, क्या कर रहे हैं– ‘नाम’ जपने वाले, प्रेम (भक्ति-भाव) प्रकट करने वाले, पूजा-तप में तपे (तपस्वी), धार्मिक ग्रन्थों और वेदों का पाठ करने वाले, संसार से उदासीन योगी, प्रभु के गुण-ज्ञान पर विचार करने वाले, दानी हैं, दाता हैं, शूरवीर (मुँह पर तलवारों की चोटें खाने वाले), ध्यान लगाने वाले मौन-धारी हैं। प्रभु की ‘कुदरति’ (शक्ति) का विचार इसलिए असम्भव है, क्योंकि उसकी सृष्‍टि असीमित से परे है, वर्णनातीत है। गुरु जी फरमाते हैं कि मैं तो तुम पर एक बार बलिहार होने योग्य भी नहीं हूँ। तुम्हें जो कुछ अच्छा लगता है, वही अच्छा है। हे निराकार! तुम सदा एक रूप अविकारी रहते हो।
असंख जप असंख भाउ।
असंख पूजा असंख तप ताउ।
असंख गरंथ मुखि वेद पाठ।
असंख जोग मनि रहहि उदास।
असंख भगत गुण गिआन वीचारु।
असंख सती असंख दातार।
असंख सूर मुह भख सार।
असंख मोनि लिव लाइ तार।
कुदरति कवण कहा वीचारु।
वारिआ न जावा एक बार।
जो तुधु भावै साई भली कार।
तू सदा सलामति निरंकार। (17)

…इसी पुस्तक से…

‘जपुजी साहिब’ गुरु नानक देव जी की महान वाणियों में सर्वप्रमुख है। सिक्खों और गुरु नानक देव जी के सभी श्रद्धालुओं द्वारा हर रोज प्रात:काल नित्य-नियम (नितनेम) की वाणियों में इसका श्रद्धापूर्वक पाठ किया जाता है। ‘श्री गुरु ग्रन्थ साहिब’ में ‘जपुजी साहिब’ व गुरु नानक देव जी की अन्य समस्त वाणी सुशोभित है। ‘जपुजी साहिब’ में गुरु जी के और ‘श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी’ के समस्त सिद्धान्तों का सार समाहित है। ‘गुरमति’ के समस्त सिद्धान्तों का ‘जपुजी साहिब’ मूल स्रोत है। इसमें व्यक्त ‘तत्त्व-ज्ञान’ बहुत गूढ़ और गाढ़ा है। इस वाणी में गुरु नानक देव जी की रूहानी चेतना तक पहुँच पाना बहुत कठिन है। व्याख्या-विश्‍लेषण करते हुए इस पुस्तक के प्रथम लेख में मेरा प्रयास उनके शब्दार्थ, भावार्थ के साथ-साथ वैचारिकता और अन्तश्‍चेतना को पकड़ने का रहा है। इसमें अकथनीय श्रम लगा। ‘पाठ’ के और पाठ के ‘मूल सन्दर्भ’ से जुड़े रहना तनी हुई रस्सी पर चलने के समान था। नानक बाबा ने जिसे ‘कथना करड़ा सार’ (लोहे के सदृश कठिन) कहा है, वही ‘जपुजी साहिब’ की व्याख्या के दौरान मैंने महसूस किया।
इस पुस्तक के दूसरे लेख ‘जपुजी का नाम निरंजन : मानव-मुक्ति का दर्शन’ निर्गुण-ईश्‍वर की संकल्पना के सूत्रों का संश्लेषण है। ‘नाम’ की संकल्पना को जिसने समझ लिया, वह गुरु नानक देव जी की चेतना के सम्मुख जा सकता है। ईश्‍वर की सम्पूर्ण सैद्धान्तिकी का निष्पादन ‘नाम’ में है। इस विषय पर एक अन्य लेख मेरी पुस्तक ‘गुरु नानक देव जी : व्यक्तित्व और विचारधारा’ में है, जिसमें इस विषय को समूचे सन्दर्भों में समझने का प्रयास है।
‘जपुजी साहिब के पाँच खंड : सचखंड की आत्मिक यात्रा’ इस पुस्तक का तीसरा लेख है। ‘जपुजी साहिब’ के पाँच खंड गुरु जी की आध्यात्मिक चेतना का सर्वोच्च शिखर है। ‘जपुजी साहिब’ की 34वीं से लेकर 37वीं पउड़ी तक पाँच खंडों में जिज्ञासु अथवा मानव के लिए सचखंड (निरंकार प्रभु का निवास) तक पहुँचने का आत्मिक विकास दिखाया गया है। इन पाँच खंडों; धर्मखंड, ज्ञानखंड, श्रमखंड, कर्मखंड व सचखंड की कठिनतम व्याख्या इस लेख में करने का विनम्र प्रयास किया गया है।

…इसी पुस्तक से….

Additional information

Weight 400 g
Dimensions 9 × 6 × 0.5 in
Product Options / Binding Type

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