







Bharat ki Krantikari Aadivasi Auratein (Essays on Rebel Tribal Women) भारत की क्रान्तिकारी आदिवासी औरतें -Tribal
₹179.00 – ₹260.00
FREE SHIPMENT FOR ORDER ABOVE Rs.149/- FREE BY REGD. BOOK POST
Read eBook in Mobile APP
- Description
- Additional information
Description
Description
…पुस्तक के बारे में…
मध्य आदिवासी क्षेत्र के समाज में महिलाओं का स्थान बड़ा महत्त्वपूर्ण है। आदिवासी अर्थव्यवस्था में आदिवासी संस्कृति के संरक्षण एवं पोषण में महिलाओं की अहम् भूमिका रही है। लेकिन संसाधनों के स्वामित्व के मामले में और विशेषकर परिवार एवं समाज-सम्बन्धी निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनका प्रत्यक्ष योगदान नहीं रहा है। यही बात आदिवासी महिलाओं के आदिवासी आन्दोलन में योगदान के बारे में भी साधारण रूप से कही जा सकती है। लेकिन आदिवासी आन्दोलन विशेष ऐतिहासिक परिस्थितियों में हुए और इसमें कुछ महिलाओं का योगदान स्मरणीय है।
संताल विद्रोह में दो महिलाओं का जिक्र लोक गीतों में आता है। बिरसा आन्दोलन में गया मुंडा की पत्नी माकी का बहादुरी से लोहा लेने की बात का विस्तृत विवरण मिलता है। हरि बाबा आन्दोलन में हरिमाई को पवित्र जल देते हुए वर्णित किया गया है। टानाभगतों के बीच भी ऐसी महिलाओं का योगदान है। उत्तर-पूर्व भारत में रानी गैयदीनल्यू का स्वतन्त्रता संग्राम में हिस्सा लेना और फिर स्वतन्त्रता के बाद समाज के सुधार क्षेत्र में नेतृत्व प्रदान करना एक बहुमूल्य धरोहर है।
बड़ी संख्या में आदिवासी महिलाओं का आदिवासी आन्दोलनों में भाग लेने का सिलसिला आदिवासी महासभा से शुरू हुआ। इन आन्दोलनों में इनका जनाधार व्यापक था। महिलाओं की भूमिका के बारे में विस्तृत वर्णन मिलता है। इधर जबकि आदिवासियों के संसाधनों पर विशेष दबाव पड़ रहा है। तब महिलाओं की भूमिका और भी सक्रिय हो गयी है। वस्तुत: मेरा मानना है कि महिलायें ही पर्यावरण संसाधन और संस्कृति की संरक्षिका हैं और उन्हें और भी आगे बढ़कर इन क्षेत्रों में काम करना है।
– डॉ. कुमार सुरेश सिंह
यह एक बुनियादी सवाल रहा है। संताल विद्रोह में तो महाजनों-सूदखोरों खासकर केनाराम और बेचाराम की सूदखोरी और बेईमानी के खिलाफ सिद्धो कानू चाँद भैरव के साथ फूलो झानो ने भी तलवार थामी और 21 सिपाहियों की हत्या की। विद्रोह की ज्वाला तो धधक ही रही थी। इस बीच तीन संताली औरतों को अँग्रेजों के द्वारा अपहरण कर बलात्कार और हत्या किये जाने की वारदात ने आग में घी का काम किया और विद्रोह का शोला भड़क उठा था। इतिहास गवाह है कि औरतों के सम्मान का सवाल भी इन विद्रोहों की बुनियाद में था। लेकिन राज्य गठन के बारह सालों के बाद विद्रोहों के सवाल यहाँ की माटी में दफन हैं और औरतों का मसला भी हाशिए पर है। विभिन्न आदिवासी संगठनों और महिला संगठनों ने फूलो झानो की प्रतिमा स्थापित करने की माँग उठायी थी। लेकिन इन कामों पर सरकार का ध्यान आकृष्ट नहीं हो पाया है।
कहा जाता है कि जो समाज अपने इतिहास को सहेज नहीं सकता है वह समाज बहुत तरक्की के रास्ते पर आगे नहीं जा सकता है और न औरतों के मान-सम्मान की रक्षा का बीड़ा ही उठा सकता है। झारखंड में भी यही हुआ। झारखंड झगड़ाखंड बन गया और झारखंड अलग राज्य के बुनियादी सवाल धरे रह गये। औरतों का सवाल भी इन्हीं बुनियादी सवालों में से एक था। जंगल और जमीन के साथ प्राकृतिक संसाधनों पर मालिकाना हक के लिए जो बिगुल फूँका गया था वह औरतों की भागीदारी के बिना पूर्ण नहीं हुआ। झारखंड का मतलब जंगलों का प्रदेश और जंगलों के इस प्रदेश में औरतों की जंगलों पर निर्भरता और उनकी आजीविका के सवाल भी सरकार के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं हो सके। यही कारण है कि झारखंड प्रदेश की जंगल नीति भी नहीं बनायी जा सकी और न ही महिला नीति के तहत जंगल और औरतों के सवाल ही शिद्दत से उठाये जा सके हैं। महिला नीति को भी आधी-अधूरी बनाकर दफन कर दिया गया।
बीस सालों में जो सवाल हाशिए पर पड़े रहे उन मसलों को सरकार का एजेंडा नहीं बनाया जा सका है। इतिहास के पुनर्लेखन का काम और आदिवासी इतिहास अकादमी की स्थापना, जिसके तहत आदिवासी अस्मिता के प्रश्न और उनके बलिदानपूर्ण जीवन का लेखा-जोखा भी इतिहास के पन्नों में नहीं किया जा सका है। झारखंड की ऐतिहासिकता को बचाना है तो इन बुनियादी प्रश्नों को हल करना होगा। अन्यथा औरतों की प्रतिष्ठा और उनके सामाजिक-सांस्कृतिक अधिकार के प्रश्न अछूते रह जायेंगे।
झारखंड राज्य की स्थापना ही इसलिए हुई थी कि पिछड़े और विकास की रोशनी से वंचित इलाके को न्याय मिल जायेगा। भौगोलिक रूप से दुरूह इलाके जहाँ 32 विभिन्न आदिवासी समूह निवास करते हों उन तक विकास की गंगा बहेगी। औरतों के सवालों को तरजीह मिलेगी। झारखंड की लगभग पाँच लाख आदिवासी लड़कियाँ केवल दिल्ली में घरेलू कामगार के तौर पर कार्यरत हैं जहाँ उनके सामाजिक सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है। अपने गाँव-घरों में आजीविका के साधन की कमी तथा जीवन की जरूरत को पूरी करने को आदिवासी बालायें महानगरों का रुख करती हैं। यह समस्या गत चालीस सालों में गम्भीर समस्या के तौर पर उभरकर आयी है। बार-बार की बातचीत और अनेक मुख्यमन्त्रियों द्वारा बीते सालों में इस राज्य में चिन्ता व्यक्त की जाती रही।
…इसी पुस्तक से…
Additional information
Additional information
Weight | N/A |
---|---|
Dimensions | N/A |
Product Options / Binding Type |
Related Products
-
-7%Select options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick ViewArt and Culture / Kala avam Sanskriti / कला एवं संस्कृति, Education / General Knowledge / शिक्षा / सामान्य ज्ञान, Hard Bound / सजिल्द, History / Political Science / Constitution / Movement / इतिहास / राजनीति विज्ञान / संविधान / आन्दोलन, Jharkhand / झारखण्ड, Paperback / पेपरबैक, Top Selling
Jharkhand Kai Rajvansh / झारखंड के राजवंश (ऐतिहासिक परिचय)
₹325.00 – ₹399.00 -
-1%Select options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick View
-
-3%Select options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick ViewClassics / क्लासिक्स, Education / General Knowledge / शिक्षा / सामान्य ज्ञान, Paperback / पेपरबैक, Russian Classics / Raduga / Pragati / उत्कृष्ट रूसी साहित्य, Top Selling, Translation (from English or Foreign) / अंग्रेजी अथवा अन्य विदेशी भाषाओं से अनुदित
Nadezhda Krupskaya–Shram-Shiksha aur Charitra Nirman
नदेज्दा क्रूप्स्काया–श्रम शिक्षा और चरित्र निर्माण₹160.00Original price was: ₹160.00.₹155.00Current price is: ₹155.00. -
-17%Select options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick ViewArt and Culture / Kala avam Sanskriti / कला एवं संस्कृति, Bundeli / बुंदेली, Education / General Knowledge / शिक्षा / सामान्य ज्ञान, Folkkales / Lok-Kathein / Mythology / लोक-कथाएँ / पौराणिक, Paperback / पेपरबैक
Hamara Bundelkhand / हमारा बुंदेलखण्ड
₹599.00Original price was: ₹599.00.₹499.00Current price is: ₹499.00.