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Khul ja Sim Sim (Collection of Short Stories) / खुल जा सिम सिम (कहानी संग्रह)

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Language: Hindi
Book Dimension: 5.5″x8.5″

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Description

पुस्तक के बारे में

… उसके भीतर एक गहरा नैतिक बोध था वह प्रेम में होते हुए भी किसी स्त्री का हक़ नहीं छीनना चाहती थी। दूसरी औरत भी नहीं बनना चाहती थी। वह उलझ गयी थी। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसके दिल और दिमाग में प्रेम को लेकर गहरा संघर्ष चल रहा था। कभी-कभी उसे लगता कि वह तो अकेली और टूटी हुई थी, प्रेम के घर प्यार व अपनत्व पाकर उससे जुड़ गयी थी। प्रेम को क्या ज़रूरत थी उसके दिल में प्यार जगाने की! वे एक मित्र भी तो बने रह सकते थे। क्या स्त्री-पुरुष सिर्फ मित्र नहीं हो सकते? क्या ज़रूरी है दो मित्रों के बीच स्त्री-पुरुष सम्बन्ध ही हो।
एक दिन उसने सोचा कि प्रेम की पत्नी से सारी बात बता दे। प्रेम के अनुसार वे सब जानती ही हैं। उसका मन भी अपराध-बोध से मुक्त हो जाएगा कि वह उनके पति के प्रेम में है। उसने उन्हें अपने और प्रेम के बारे में सब कुछ बता दिया। वे बस हाँ..हूँ करती रहीं। दूसरे दिन वह उसके घर गयी तो उसकी पत्नी अपने पड़ोस में चली गईं और प्रेम उसे ज़बरन अपने कमरे में ले गया और उसके साथ जबर्दस्ती करने लगा। उसने लाख छुड़ाने की कोशिश की, पर वह नहीं माना। उसने सारी सीमाएँ तोड़ दी। वह सदमें में थी। अपनी हसरत पूरी करने के बाद उसने कहा– अब इस बात को पत्नी से न बता देना। वैसे हमें मौका देने के लिए ही वे पड़ोस में गयी हैं फिर भी उनके आने से पहले ही चली जाओ।

…इसी पुस्तक से…

मेरा गुस्सा कम ही नहीं हो रहा था। मैंने फ्रिज से ठंडा पानी निकाला और एक साँस में ही उसे पी गयी। सोचा–अच्छी खातिर कर दी है उसकी। सोचिये, इतना बड़ा साहित्यकार, अच्छे पद पर कार्यरत, बाल-बच्चेदार, प्रतिष्ठित आदमी अपनी एक कुचेष्टा से कितना अपमानित हुआ। मुझे भी गुस्सा कुछ ज्यादा ही आ गया था, पर क्या करती उसका प्रस्ताव ही इतना घिनौना था।
अब वह क्या-क्या नुकसान करेगा! साहित्य से मुझे ख़ारिज करने की कोशिश करेगा और क्या कर लेगा? कलम इसलिए थोड़े पकड़ी है कि अपना शोषण होने दूँ।
दस मिनट ही हुए थे कि दरवाज़़ा फिर खटखटाया गया। दरवाजा खोला तो वह धड़धड़ाता हुआ घर में घुस आया। मैं उसके पीछे। उसने दरवाज़े को हल्के से बन्द किया ताकि बाहर से कोई न देखे और मेरा पैर पकड़ लिया–मुझे माफ कर दो। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी। लोगों की बातें सुनकर मैंने भी सोच लिया था कि तुम गलत हो। किसी से ये बात मत बताना, मैं बर्बाद हो जाऊँगा। बदनाम हो जाऊँगा।
ओह, तो असल बात ये है कि मैं किसी को ये बात बता न दूँ और इसकी साफ-सुथरी इमेज न खराब हो जाये। ये डरपोक, कायर, पुरुष आड़ में शिकार करना चाहते हैं।
–मेरा पैर छोड़िये! आप जाति के ब्राह्मण हैं। मुझे पाप लगेगा।
‘वचन दो, नहीं तो मैं अभी आत्मघात कर लूँगा।
मुझे अपने पैरों पर लिजलिजा-सा अहसास हो रहा था जैसे कोई केंचुआ लिपट गया हो।
‘जाइये, मैंने आपको माफ किया। मानव-जनित कमज़ोरी मानकर इसे भूल जाऊँगी।’
उसे विश्वास नहीं हो रहा था। वह बार-बार गिड़गिड़ा रहा था पर मैं साफ-साफ देख पा रही थी कि उसकी आँखों में पश्चाताप के चिह्न नहीं हैं।

…इसी पुस्तक से…

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