







Aam Aadmi ke naam par : Bhrashtachaar Virodh se Rashtravaa tak Dus Saal ka Safarnamaa / आम आदमी के नाम पर : भ्रष्टाचार विरोध से राष्ट्रवाद तक दस साल का सफरनामा
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पुस्तक के बारे में
अरुणा सिंह पुराने आन्दोलनकारियों से राय-मशविरा लेकर काम करती थीं। यही सबसे बड़ी दिक्कत थी। बहुत जल्द ही अरुणा सिंह को एक फर्जी भ्रष्टाचार के आरोप में फँसाकर हटा दिया गया।
सिन्हा बताते हैं, “अरविन्द केजरीवाल ने प्रेस ब्रीफिंग करके इन पर आरोप लगाया और निकाल दिया। आरोप यह लगा कि अरुणा सिंह ने किसी से टिकट के बदले पैसे माँगे थे। एक फर्जी स्टिंग करवाया गया जिसे ज़ी न्यूज़ के लोगों ने किया।” इस सनसनीखेज मामले की जानकारी लखनऊ में तकरीबन हर एक सामाजिक कार्यकर्ता को है। लोग बताते हैं कि जिस व्यक्ति से अरुणा सिंह की बातचीत का आरोप लगाया था, उस आदमी को संजय सिंह पार्टी में लेकर आये थे। वह व्यक्ति संजय सिंह का खास आदमी था और सीतापुर का था।
“संजय सिंह ने अरुणा सिंह से कहा कि वह आदमी कोषाध्यक्ष से पैसे के लेन-देन की बात कर रहा है, तो आप उसको फँसाइए जिससे कि यह स्पष्ट हो कि हाँ वो घूस दे रहा है ताकि हम उस आदमी को पकड़ सकें और बाहर कर सकें। इन्होंने उससे बात की और उधर संजय सिंह ने ज़ी न्यूज़वाले को काम पर लगा दिया कि ये जो बातचीत हो रही है उसे रिकॉर्ड कर लिया जाये। इसको ज़ी और सहारा समय ने कई बार चलाया। इसी बहाने अरुणा सिंह को निपटा दिया गया।” (रामकृष्ण)
यह घटना लोक सभा चुनाव के दौरान की है। अरुणा सिंह ने पार्टी में कहा कि वह तो संजय सिंह के कहने पर बात करने गयी थीं, लेकिन उनकी नहीं सुनी गयी।
…इसी पुस्तक से…
…केजरीवाल और भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन पर लाखों शब्द खर्च किये गये हैं, लेकिन कोई भी सिंगरौली की उस मामूली औरत के घर आज तक नहीं पहुँच सका जिसकी उँगलियाँ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए रोटियाँ सेंक-सेंककर जल चुकी थीं। किसी ने भी भवानीपट्टनम के उस उत्साही युवा से पूछने की ज़हमत नहीं उठायी कि सशस्त्र संघर्ष छोड़कर इंडिया अगेंस्ट करप्शन में शामिल होने और पहली बार जंगल से निकलकर प्रचार के लिए दिल्ली आने का उसका तजुर्बा कैसा रहा। लिहाजा एक किताब ऐसी होनी थी जो ऐसे नामालूम किस्म के आम लोगों से बात कर सके।…
…भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन से लेकर आम आदमी पार्टी वाया इंडिया अगेंस्ट करप्शन तक की राजनीति को समझने के लिए इसके नेतृत्व को समझना निर्णायक है। इसके ठीक उलट, अरविन्द केजरीवाल को समझने के लिए उस राजनीतिक-सामाजिक प्रक्रिया को समझना निर्णायक है जिसने उन्हें सार्वजनिक जीवन में एक ज्वालामुखी की तरह पैदा किया, ठोस पहचान दी और फिर अचानक ही तरल बना डाला। यह पुस्तक एक व्यक्ति को उसके समय-सन्दर्भ में रखकर समझने की कोशिश है, साथ ही उसके व्यक्तित्व के भीतर बदलते-बिगड़ते समाज-राजनीति का अक्स देखने की कोशिश भी है।…
…अरविन्द केजरीवाल! आज़ाद भारत का पहला मुख्यमन्त्री, जिसे प्रधानमन्त्री पद पर बैठे शख्स को चुनौती देने की कीमत कुछ ऐसे चुकानी पड़ी कि उसी के राज्य में पुलिस ने उसको गिरफ्तार कर लिया। यह बात 2 नवम्बर, 2016 की है। केजरीवाल सरकार के 13 मन्त्री पिछले अब तक गिरफ्तार हो चुके हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अगस्त 2016 में लेफ्टिनेंट गवर्नर को दिल्ली का प्रशासक ठहरा दिया, तो 2017 के नगर निगम चुनाव से केवल हफ्ते-भर पहले आम आदमी पार्टी (आप) को उसके कार्यालय से महरूम कर दिया गया। चुनाव आयोग में दिल्ली सरकार के 21 विधायकों का केस अटका पड़ा था जिसमें कभी भी उन्हें अयोग्य ठहराये जाने का खतरा मँडरा रहा था। दूसरी तरफ़, सरकार में हुई नियुक्तियों पर गठित शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट सिलसिलेवार मुकदमों के दायर होने की राह देख रही है।…
…इसी पुस्तक से….
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अभिषेक श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश के शहीदी जिले ग़ाज़ीपुर में जन्म, काशी
हिंदू विश्वविद्यालय से गणित में औपचारिक शिक्षण। भारतीय जनसंचार संस्थान से पत्रकारिता में प्रशिक्षण के बाद पिछले दो दशक से दिल्ली एनसीआर में प्रवास। शुरुआत के दस साल कई मीडिया की दुकानों में नौकरी की। पिछले दस साल से स्वतंत्र लेखन और अनुवाद। अगोरा प्रकाशन, बनारस से 2018 में छपी पहली पुस्तक ‘देसगांव’ देश के नौ राज्यों में चल रहे जन-आंदोलनों पर केंद्रित रिपोर्ताज का संकलन है। ‘आम आदमी के नाम पर’ जनवरी 2022 में पंजाबी में प्रकाशित। राजकमल प्रकाशन से एक यात्रा संस्मरण प्रकाशनाधीन। राजकमल प्रकाशन से दो अनुवाद प्रकाशित: ‘आरटीआइ कैसे आई’ (अरुणा रॉय) और गौरव ग्रंथमाला के अंतर्गत 1984 (जॉर्ज ऑरवेल)। ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी प्रेस से एक अनुवाद प्रकाशनाधीन। ई-मेल : guruweltschmerz@gmail.com
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Weight | 400 g |
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Dimensions | 9 × 6 × 0.5 in |
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