











Maa (Classic Novel by Maxim Gorky) / माँ (मकसीम गोरिकी का उपन्यास)
₹350.00
FREE SHIPMENT FOR ORDER ABOVE Rs.149/- FREE BY REGD. BOOK POST
Read eBook in Mobile APP
- Description
- Additional information
Description
Description
पुस्तक के बारे में
मकसीम गोरिकी एक बढ़ई के पुत्र थे और सड़क पर ही उनकी पढ़ाई-लिखाई हुई थी। छोटी उम्र में ही उन्होंने बेहद सहज और सरल रूसी भाषा में रूस के मज़दूरों और किसानों के लिए लिखना शुरू कर दिया, जो बेहद कम पढ़े-लिखे थे। इसलिए उनकी रचनाओं में किसानों और मज़दूरों का दर्द और पीड़ाएँ उभरकर सामने आती हैं। मज़दूर-वर्ग की छोटी-छोटी ख़ुशियों और उत्सवों का भी मकसीम गोरिकी ने बड़ा मनोहारी वर्णन किया है। 1905 में रूस में ज़ार की सत्ता के ख़िलाफ़ पहली असफल मज़दूर क्रान्ति हुई। क्रान्ति के तुरन्त बाद गिरफ़्तारी से बचने के लिए मकसीम गोरिकी अमेरिका चले गये थे। 1906 में अमेरिका में ही उन्होंने ‘माँ’ नामक यह उपन्यास लिखा। यह ऐसा पहला उपन्यास था जिसमें समाजवादी यथार्थवाद का चित्रण किया गया है यानी यह बताया गया है कि समाज और मनुष्य एक-दूसरे के पूरक हैं। समाज में मनुष्य ही महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि समाज मनुष्यों से बनता है, न कि समाज से मनुष्य पैदा होता है। इसलिए समाज को मनुष्यों के अनुकूल होना चाहिए। समाज में सभी मनुष्यों को समान सुविधाएँ, समान अधिकार और समान न्याय मिलना चाहिए। यही समाजवाद का मुख्य उद्देश्य है। ‘माँ’ नामक अपनी इस रचना में गोरिकी ने इसी समाजवादी विचारधारा को अपने नज़रिये से प्रस्तुत किया है। समाजवाद का यह विचार रूस में ज़ार की तत्कालीन सत्ता-व्यवस्था के पूरी तरह से ख़िलाफ़ था। ज़ार की सत्ता-व्यवस्था में कुछ ही कुलीन परिवार थे, जो पूरे रूस पर शासन करते थे। रूसी बुर्जुआ वर्ग और पूँजीवाद सत्ता पर हावी होने की कोशिश कर रहा था। 1861 में रूस में भूदास प्रथा खत्म होने के बाद कृषिदासों के रूप में काम करने वाले किसान अपने ज़मींदार मालिकों से मुक्ति पा चुके थे, लेकिन उन्हें खेती करने के लिए ज़मीन नहीं मिली थी। रूस में तब तक पूँजीवाद और औद्योगीकरण का भरपूर विकास भी नहीं हुआ था। इसलिए ज़्यादातर पूर्व भूदास परिवारों की जीवन-स्थितियाँ और मुश्किल हो गयी थीं। उनके पास पेट पालने के लिए कोई साधन नहीं था। कुछ लोगों को कारखानों में मज़दूरी की नौकरी मिल गयी थी, लेकिन वेतन इतने कम थे कि वे बड़ी मुश्किल से जीवन-यापन कर पाते थे। ‘माँ’ उपन्यास में मकसीम गोरिकी ने इन स्थितियों से मुक्ति पाने का रास्ता दिखाया है और यह बताया है कि समाजवाद ही हर तरह के शोषण से जनता की मुक्ति का रास्ता है।
Additional information
Additional information
Weight | N/A |
---|---|
Dimensions | N/A |
Product Options / Binding Type |
Related Products
-
Select options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick View
-
Select options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick View