







Bhumandalikaran aur Cinema mein Samsamyik Yatharth <br> भूमंडलीकरण और सिनेमा में समसामयिक यथार्थ
₹225.00 – ₹390.00
FREE SHIPMENT FOR ORDER ABOVE Rs.149/- FREE BY REGD. BOOK POST
Amazon : Buy Link
Flipkart : Buy Link
Kindle : Buy Link
NotNul : Buy Link
Author(s) — Jawarimal Parakh
लेखक — जवरीमल्ल पारख
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 207 Pages | 2021 | 6 x 9 inches |
| available in HARD BOUND & PAPER BACK |
- Description
- Additional information
Description
Description
जवरीमल्ल पारख
जवरीमल्ल पारख – जन्म : 1952; जोधपुर (राजस्थान)। शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी, 1975); पीएच.डी. (जे.एन.यू., दिल्ली 1984)। अध्यापन : रुहेलखंड विश्वविद्यालय के एक स्नातकोतर कालेज (अमरोहा) में 1975 से 1987 तक व्याख्याता; इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में 1987 से 2017 तक अध्यापन 28 फरवरी 2017 को प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त। प्रकाशन : सिनेमा संबंधी पुस्तकें : भूमंडलीकरण और सिनेमा में समसामयिक यथार्थ (2021); हिंदी सिनेमा में बदलते यथार्थ की अभिव्यक्ति (2021); साझा संस्कृति, सांप्रदायिक आतंकवाद और हिंदी सिनेमा (2012); हिंदी सिनेमा का समाजशास्त्र (2006); लोकप्रिय सिनेमा और सामाजिक यथार्थ (2001)। साहित्य संबंधी पुस्तकें : हिंदी कथा साहित्य : यथार्थवादी परंपरा (2021); आधुनिक साहित्य : मूल्यांकन और पुनर्मूल्यांकन (2007); संस्कृति और समीक्षा के सवाल (1995); नयी कविता का वैचारिक परिप्रेक्ष्य (1991); साहित्य इतिहास, काव्य परंपरा और लोकतांत्रिक दृष्टि (प्रेस में)। मीडिया संबंधी पुस्तकें : जनसंचार माध्यम और सांस्कृतिक विमर्श (2010); जनसंचार माध्यमों का राजनीतिक चरित्र (2006); जनसंचार के सामाजिक संदर्भ (2001); जनसंचार माध्यमों का वैचारिक परिप्रेक्ष्य (2000); जनसंचार माध्यमों का सामाजिक चरित्र (1996)। संपादन : भारतीय भाषा परिषद द्वारा प्रकाशित हिन्दी साहित्य ज्ञानकोश (सात खंड) के संपादक मंडल का सदस्य (2019)। अनुवाद : हिंदुस्तानी सिनेमा और संगीत : अशरफ़ अज़ीज़ (2021); अस्तित्ववाद और मानववाद : ज्यां पाल सार्त्र (1997); प्रौढ़ साक्षरता : मुक्ति की सांस्कृतिक कार्रवाई : पाउलो फ्रेरे (1997)। पुरस्कार : इग्नू के शैक्षिक वीडियो कार्यक्रम ‘पल-पल परिवर्तित प्रकृति वेश’ को यूजीसी-सीइसी का विषय विशेषज्ञ पुरस्कार (1995); प्रोफेसर कुंवरपाल सिंह स्मृति सम्मान (2015); घासीराम वर्मा साहित्य पुरस्कार (2019)। ई-मेल : jparakh@gmail.com फोन : 0124-4307652; मो. 9810606751
पुस्तक के बारे में
भूमंडलीकरण के दौर से पहले कुछ हद तक पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में बड़ी पूँजी और छोटी पूँजी के बीच भेद किया जाता था। बड़ी पूँजी के जबड़ों से छोटी पूँजी को संरक्षण और सुरक्षा देने के प्रावधान भी किये गये थे। ऐसे उत्पादों को जो सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में आते हैं, उनको भी बड़ी पूँजी के वर्चस्व से बचाने के प्रावधान किये गये थे। सांस्कृतिक उत्पादों को भौतिक उत्पादों से अलग रखा गया और उसके लिए अलग नियम कायदे बनाये गये थे। लेकिन भूमंडलीकरण ने पूँजीवादी अर्थव्यवस्थाओं द्वारा ऐसे सभी संरक्षणों और सुरक्षाओं को न सिर्फ खत्म कर दिया गया बल्कि यह सिद्धान्त पेश किया गया कि मुक्त प्रतिद्वन्द्विता ही लोकतन्त्र का आधार है। बाजार ही वह जगह है जहाँ मुक्त प्रतिद्वन्द्विता सम्भव है। इस सिद्धान्त को भौतिक उत्पादों के क्षेत्र में ही नहीं सांस्कृतिक क्षेत्र में भी लागू किया गया। यही कारण है कि अच्छी फिल्मों को प्रोत्साहन देने के लिए उठाये गये सभी कदमों से राज्य ने धीरे-धीरे अपने हाथ खींच लिए। इसीलिए 1970-80 के दशकों में जो समानान्तर सिनेमा आन्दोलन उभरा था, वह भूमंडलीकरण के दौर में खत्म हो गया।
…इसी किताब से…
फिल्म के निर्माण और प्रदर्शन की पूँजी पर निर्भरता ने उसे बाजार का मुखापेक्षी बना दिया है। मुक्त बाजार का सिद्धान्त, व्यवहार में इस बाजार पर वर्चस्व रखने वाले निगमों और इजारेदारों द्वारा बाजार को अपने हितों के अनुरूप इस्तेमाल करने की निर्बाध छूट में बदल जाता है। यह बात सिनेमा के बाजार पर भी लागू होती है। बाजार की ताकतें इस बात का प्रचार करती है कि सिनेमा एक लोकप्रिय माध्यम है जिसका मुख्य कार्य मनोरंजन प्रदान करना है। उसकी सार्थकता उसके लोकप्रिय होने और मनोरंजन प्रदान करने में ही है। लेकिन फिल्मों की लोकप्रियता का निर्धारण फिल्म की अन्तर्वस्तु और उसकी कलात्मक अभिव्यक्ति पर नहीं बल्कि ऐसे बाहरी तत्वों पर ज्यादा निर्भर रहती है, जो फिल्म की गुणवता से प्रत्यक्षत: कोई सम्बन्ध नहीं रखतीं।
…इसी किताब से…
अनुक्रम
दो शब्द
भूमिका
खंड – एक
विश्व सिनेमा का साम्राज्यवादी संदर्भ
1. भय और हिंसा की संस्कृति
2. टाइटेनिक : मृत्यु का भय बनाम रोमांच
3. वैकल्पिक दुनिया बनाम आभासी दुनिया
4. प्रतिरोध का विश्व सिनेमा
5. सिनेमा और विज्ञान
6. अवेटर : प्रकृति और पूँजीवादी विकास का सच
7. ख़ुदा के लिए : तत्त्ववाद से लड़ते हुए
खंड – दो
भूमंडलीकरण और भारतीय सिनेमा
8. भूमंडलीकरण के दौर में हिंदी सिनेमा
9. हिंदी सिनेमा का वैश्विक आयाम
10. अमरीका की चाह में गिरफ़्त इच्छाएँ
11. पूँजीवाद का बदलता चरित्र
12. दुनिया का भविष्य : भविष्य की दुनिया
खंड – तीन
भूमंडलीकरण के दौर की पतनशीलता और प्रतिरोध
13. मुम्बई : व्यावसायिक नगरी का बदलता यथार्थ
14. किसानों के अनायकत्व का दौर?
15. शिक्षा का व्यवसायीकरण
16. ‘वे आ रहे हैं, हमारा सब कुछ छीनने’
खंड – चार
हिंदी सिनेमा और जन प्रतिरोध
17. बाज़ार के बावजूद हिंदी का नया सिनेमा
18. शोषण-मुक्त समाज का स्वप्न
19. चुनौतीहीन और विकल्पहीन नहीं है यह दौर
20. हिंदी सिनेमा में एक्टिविज्म
21. हिंदी सिनेमा और जन आंदोलन
Additional information
Additional information
Weight | N/A |
---|---|
Dimensions | N/A |
Product Options / Binding Type |
Related Products
-
-4%Select options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick ViewCinema / Journalism / Patrakarita / पत्रकारिता / सिनेमा, Criticism Aalochana / आलोचना, New Releases / नवीनतम, Paperback / पेपरबैक
Hindi Cinema ka Samkal
हिन्दी सिनेमा का समकाल₹225.00Original price was: ₹225.00.₹215.00Current price is: ₹215.00. -
SaleSelect options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick View
-
-1%Select options This product has multiple variants. The options may be chosen on the product pageQuick ViewHard Bound / सजिल्द, Jharkhand / झारखण्ड, New Releases / नवीनतम, Paperback / पेपरबैक, Poetry / Shayari / Ghazal / Geet — कविता / शायरी / गज़ल / गीत, Top Selling, Tribal Literature / आदिवासी साहित्य
Ek aur Jani Shikar (1967 se 2019 tak likhi kavitaon me sei chayanit kavitayen) / एक और जनी शिकार (सन् 1967 से 2019 तक लिखी कविताओं में से चयनित कविताएँ)
₹149.00 – ₹275.00 -
Hard Bound / सजिल्द, New Releases / नवीनतम, Poetry / Shayari / Ghazal / Geet — कविता / शायरी / गज़ल / गीत
Samay aur Vichar समय और विचार (कविता संग्रह)
₹350.00Original price was: ₹350.00.₹280.00Current price is: ₹280.00.