









Pakistan Me Bhagat Singh / पाकिस्तान में भगत सिंह
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इन दिनों जब जलियाँवाला बाग़ को शिद्दत से याद किया जा रहा था और बहस चल रही थी कि ब्रिटिश सरकार का सिर्फ़ खेद प्रकट करना ही काफ़ी है या उन्हें माफ़ी भी माँगनी चाहिए, तभी सोशल मीडिया पर गश्त कर रही एक दिलचस्प पोस्ट पर मेरी नज़र पड़ी। एक भारतीय जो हाँगकांग में रहते हैं, यह देख कर बड़े दुःखी थे कि बहुजातीय समाज हाँगकांग में भारतीयों के प्रति आम नागरिकों की राय बड़ी ख़राब है। उत्सुकतावश उन्होंने लोगों से कारण जानने की कोशिश की तो पता चला कि इस दुर्भावना के पीछे ऐतिहासिक घटनाक्रम हैं। 1840 के दशक में जब अंग्रेज़ों ने हाँगकांग को अपना उपनिवेश बनाया तो उन्हें शासन चलाने के लिए पुलिस की ज़रूरत पड़ी। जल्द ही उनकी समझ में आ गया कि स्थानीय निवासी बहुत काम के नहीं हैं। वे अपने ब्रिटिश कमांडरों के हुकुम पर जनता के साथ ज़्यादती करने के लिए तैयार नहीं थे। तब अंग्रेज़ों को अपने दूसरे उपनिवेश भारत की याद आयी और हाँगकांग पुलिस की नींव के पत्थर बने भारतीय सिपाही। इन भारतीय सिपाहियों को जब अपने देशवासियों के साथ बर्बरता करने में कोई संकोच नहीं होता था तब भला विदेशियों को वे क्यों ब़ख्शते! ये उनकी ज़्यादतियों की स्मृतियाँ हैं, जो आज भी हाँगकांग वासियों के मन में भारतीयों के लिए कटुता जीवित रखे हुए हैं।
इन दोनों घटनाओं में क्या संबंध हो सकता है? थोड़ी तटस्थता के साथ यदि हम समाजशास्त्रीय औज़ारों से भारतीय मन को छिलें तो हमें इन दोनों के बीच अद्भुत समानता दिखेगी। इनका संबंध भारतीय समाज के उस सामान्य व्यवहार से भी जोड़ा जा सकता है, जिसके तहत खैबर दर्रे को पार करने के बाद मुट्ठी भर आक्रांता अपने से कई गुना बड़ी सेना को पीटते हुए दिल्ली या सोमनाथ तक धावा बोलते चले जाते थे और खेती, किसानी, दस्तकारी, व्यापार या दूसरी नागरिक गतिविधियाँ चलती रहती थीं। अगर उन्हें न छेड़ा जाय तो आमजन निरपेक्ष भाव से बग़ल से गुज़रते, धूल उड़ाते घोड़ों को देखते और अपने काम धंधों में लगे रहते। दुनिया के किसी भी समाज में अपने शासकों को लेकर इतनी निर्लिप्त दृष्टि दुर्लभ थी।
…इसी पुस्तक से…
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विभूति नारायण राय समकालीन हिन्दी के एक वरिष्ठ और महत्वपूर्ण उपन्यासकार हैं। कथा साहित्य के अलावा उनका लिखा गया वैचारिक गद्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है। वर्तमान साहित्य के सम्पादकीयों से शुरू हुई उनकी कथेतर गद्य यात्रा बाद के दिनों में एक गंभीर चिन्तक, विचारक एवं आलोचक के रूप में विकसित हुई। पुलिस में वरिष्ठ पद पर रहते हुए भी राय ने फासिज्म, साम्प्रदायिकता और वर्ण व्यवस्था जैसे मुद्दों पर लिखने से कभी परहेज नहीं किया। मेरठ में हाशिमपुरा (1987) की घटना पर एक पुलिस अधिकारी की हैसियत से लिया गया उनका साहसिक फैसला भारतीय पुलिस के लिए आज भी मिसाल है। उस घटना को लेकर अभी हाल में आई उनकी नई किताब हाशिमपुरा : 22 मई उनके लेखकीय दायित्व और गहरी संवेदना का प्रमाण है। भारतीय गणराज्य की धर्मनिरपेक्ष छवि पर प्रश्न खड़ा करती यह किताब ऐतिहासिक दस्तावेज़ की तरह है। भारत में राज्य और अल्पसंख्यकों के बीच कैसे रिश्ते हैं, दंगों के दौरान उनके साथ पुलिस किस तरह का व्यवहार करती है, राय से बेहतर इसे कौन बता सकता है। अपने लेखों में वे इसे ब्योरों और उदाहरणों के साथ विश्वसनीय तरीके से रखते हैं। वे हिन्दू-मुस्लिम धार्मिक कट्टरता पर तो चोट करते ही हैं,साथ ही दंगों के पीछे निहित राजनीतिक स्वार्थ को भी लक्षित करने से नहीं चूकते। यहाँ हम उनके लेखों में इसे देख सकते हैं। हाशिये के लोगों के पक्षधर राय भारत की सबसे घृणित और मनुष्य विरोधी वर्ण व्यवस्था पर बेबाक टिप्पणियाँ करते हैं। इस विषय पर उनके कई महत्वपूर्ण लेख हैं। भारत-पाक रिश्तों के बीच तनातनी का आकलन वे अंधराष्ट्रवाद के बजाय यथार्थवादी दृष्टि से करते हैं। उनके लेखों में दोनों ही तरफ के युद्ध उन्मादियों के लिए संयम बरतने के पर्याप्त कारण दिखाई देते हैं।
एक एक्टिविस्ट होने के साथ-साथ विभूति नारायण राय विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित स्तम्भ लेखन करते रहे हैं। समसामयिक विषयों, घटनाओं पर उनका तथ्यपरक विश्लेषण मानवीय मूल्यों को बचाने का पूरा प्रयास करता है। इस किताब में साहित्य एवं पत्रकारिता की दुनिया की कुछ नामचीन हस्तियों से जुड़े संस्मरण भी हैं, जिनके साथ राय के गहरे आत्मीय सम्बन्ध रहे हैं। इन्हें पढ़ने का एक अलग सुख है। कथाकार होने के कारण उनके पास सहज-सरल एवं अद्भुत पठनीय भाषा है जो पाठक को सीधे जोड़ लेती है। कई बार कथन में उनका चुटीला अन्दाज घटना-विषय की विद्रूपता पर आम रोष का परिचायक है। उनके लेखों से गुजरते हुए हम जीवन के यथार्थ से ही साक्षात्कार नहीं करते बल्कि जीवन को सुन्दर बनाने का स्वप्न भी देखते हैं।
– अरविंद कुमार सिंह
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विभूति नारायण राय
जन्म : 28 नवम्बर, 1950। मूलत: उपन्यासकार हैं। अब तक उनके पाँच उपन्यास– घर, शहर में क़र्फ्यू, क़िस्सा लोकतंत्र, तबादला और प्रेम की भूतकथा प्रकाशित। घर बांग्ला, उर्दू और पंजाबी, शहर में क़र्फ्यू उर्दू, अंग्रेज़ी, पंजाबी, बांग्ला, मराठी, कन्नड़, मलयालम, असमिया, उड़िया, तेलुगु और तमिल में, क़िस्सा लोकतंत्र पंजाबी और मराठी, तबादला उर्दू और अंग्रेज़ी तथा प्रेम की भूतकथा उर्दू, मराठी, पंजाबी, कन्नड़ और अंग्रेज़ी में अनूदित और प्रकाशित।
क़िस्सा लोकतंत्र उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सम्मानित। तबादला कथा यू.के. द्वारा ‘इन्दु शर्मा कथा सम्मान’ से सम्मानित।
लेखक के अलावा एक एक्टिविस्ट के रूप में भारतीय राज्य और अल्पसंख्यकों के रिश्तों को समझने का प्रयास और फलस्वरूप साम्प्रदायिक हिंसा के मनोविज्ञान पर लगातार लेखन। भारतीय समाज में व्याप्त साम्प्रदायिकता को समझने के क्रम में साम्प्रदायिक दंगे और भारतीय पुलिस तथा हाशिमपुरा 22 मई नामक दो महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन। इन दोनों पुस्तकों का अंग्रेज़ी, उर्दू, कन्नड़, मराठी, तेलुगु तथा तमिल में अनुवाद।
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए व्यंग्य-लेखन जो संग्रह के रूप में एक छात्र नेता का रोज़नामचा के नाम से प्रकाशित।
लेखों के चार संग्रह रणभूमि में भाषा, फ़ेंस के उस पार, किसे चाहिए सभ्य पुलिस, अंधी सुरंग में कश्मीर प्रकाशित। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कालम लेखन।
लगभग दो दशकों तक हिंदी की महत्त्वपूर्ण मासिक पत्रिका वर्तमान साहित्य का सम्पादन। बीसवीं शताब्दी के हिंदी कथा साहित्य का लेखा जोखा– कथा साहित्य के सौ वर्ष का संपादन।
आजीविका के लिए पुलिस में नौकरी की। पाँच वर्षों तक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति रहे।
संपर्क : 403, कैलिप्सो कोर्ट 16, जेपी विश टाउन, सेक्टर 128, नोएडा– 201304
e-mail : vibhutinarainrai@gmail.com मो : 9643890121
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अरविन्द कुमार सिंह
जन्म : 11 जुलाई, 1962
ग्राम : बरवारीपुर, जिला : सुलतानपुर (उ.प्र.)।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी)।
प्रकाशित कृतियाँ : बिरादरी का कटघरा, उसका सच (कहानी संग्रह)।
सम्पादन : दिशा पत्रिका का कुछ समय तक सम्पादन, आदमी का दुख मानबहादुर सिंह की कविताओं का सम्पादन। किसे चाहिए सभ्य पुलिस, अंधी सुरंग में कश्मीर विभूति नारायण राय के लेखों का संकलन एवं सम्पादन।
पुरस्कार : सती कहानी पर रमाकान्त स्मृति पुरस्कार।
सम्प्रति : हिंदी पत्रिका परिकथा में सहायक संपादक।
सम्पर्क : सी-5/44 A, सादतपुर, दिल्ली- 110094
e-mail: arvindsinghdelhi94@gmail.com
मोबाइल : 9971898709
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