







Kaisu Likhu ujali Kahaniकैसे लिखूँ उजली कहानी
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Autho(s) — Ranjana Jaiswal
लेखिका — रंजना जायसवाल
| ANUUGYA BOOKS | HINDI| 176 Pages | HARD BOUND | 2018 |
| 5.5 x 8.5 Inches | 350 grams | ISBN : 978-93-86810-88-5 |
- Description
Description
Description
पुस्तक के बारे में
जानकारी के लिए बताती चलूँ कि पुरुष मेरे छोटे अंकल हैं। उन्होंने जब मुझसे कहा कि ‘एक गरीब लड़की पढ़ना चाहती है और मैं उसकी मदद कर रहा हूँ पर तुम्हारी आंटी सहित समाज के लोग इसे गलत नाम दे रहे हैं। वह बेचारी मारी-मारी फिर रही है। उसे एक सुरक्षित जगह की दरकार है। तुम अकेली रहती हो उसे अपने पास रख लो। दो रोटी तुम्हें भी पकी-पकाई मिलेगी और तुम्हारा अकेलापन भी दूर हो जायेगा। उसका खर्च मैं दे दिया करूँगा।’ तो शायद मैं लालच में आ गयी। यह लालच ही मेरा अपराध था। मुझे क्यों नहीं समझ में आया कि अंकल लड़कियों के मामले में हमेशा से ही कमजोर आदमी रहे हैं और लड़की से उनका रिश्ता महज सहानुभूति का नहीं हो सकता? क्यों नहीं समझ पायी कि आंटी और अन्य रिश्तेदारों के एतराज का कारण किसी गरीब लड़की की मदद मात्र नहीं हो सकता? मुझे तो बस यही लगा कि मुझे एक अच्छी पढ़ाकू लड़की का साथ मिलेगा। मेरा अकेलापन दूर हो जायेगा जो अक्सर मुझे डराता है।
पर लड़की को पहली बार देखकर मुझे अजीब-सा लगा। बहुत ही दुबली-पतली, कमजोर-सी लड़की थी। अंकल की बेटी की उम्र की, पर वह नव-ब्याहता-सी सजी थी। कीमती रेशमी साड़ी, हीरे की लौंग और अँगूठी, गले में मंगलसूत्र और माँग में सिन्दूर। ये क्या है? क्या यह लड़की शादीशुदा है? हो सकता है बचपन में शादी हो गयी हो। पर यह तो किसी भी तरफ से कमजोर या जरूरतमन्द लड़की नहीं लग रही है। पर मैं कुछ कह नहीं पायी उसके साथ अंकल भी थे। मैंने बस इतना कहा–ये तो बहुत दुबली है। अंकल लड़की की ओर देखकर ज़ोर से हँस पड़े– ‘पर बहुत ताकत है इसमें।’
…इसी पुस्तक से…
उस दिन वह गहरी नींद में थी। अचानक उसे अपनी देह पर सर्प रेंगने-सा आभास हुआ। सर्प रेंगता हुआ उसके स्तनों पर बैठ गया था। वह गनगना उठी। भय से उसकी घिग्घी बँध गयी। वह जाग पड़ी थी। जोर से सर्प को उठाकर अपनी छाती से अलग किया… पर ये क्या…यह कोई सर्प नहीं था। ये तो सलमा का हाथ था। वह चिल्ला उठी–
ये क्या कर रही थी…
”मैं…मैं…मैं…।” सलमा हकला उठी। पहले तो उसे लगा। नींद में गलती से शायद सलमा का हाथ उसके स्तनों पर पड़ गया होगा, पर वह तो पूरी तरह जगी हुई थी और अजीब-आवेश में थी। उसकी आँखें लाल थीं। ऐसा तो पुरुष तब दिखता है, जब स्त्री से सहवास की इच्छा से भर जाता है… पर सलमा…इसे क्या हुआ?
तुमने बताया नहीं… और तुम अभी तक जाग क्यों रही हो?
”नींद नहीं आ रही थी…माफ कर दीजिये …गलती से…।” वह सफाई दे रही थी। रमा ने बात को तूल नहीं दिया और उसे सोने का आदेश देकर खुद सो गयी। काफी समय से वह नींद की गोलियाँ लेती थी। अपने अतीत की कड़वाहटों को भुलाने का यही एक रास्ता बचा था उसके पास। जब वह डॉक्टर के पास गयी तो उसने मुस्कुराकर मजाक में कहा था ‘अनिद्रा से मुक्ति के दो ही उपाय है। पुरुष का साथ या फिर नींद की गोलियाँ। या तो विवाह करिये या फिर…।’ वह भी हँस दी थी पर कैसे बताती कि विवाह ही तो उसकी अनिद्रा की बीमारी का जिम्मेदार है, वरना वह भी कभी घोड़े बेचकर सोया करती थी। इधर कई वर्षों से वह अकेली थी और अपने मन से पुरुष की कामना निकाल चुकी थी। हालाँकि सख्ती से बन्द किये गये उसके मन के दरवाजे पर पुरुष दस्तक देते रहते थे। एक सुन्दर, युवा स्त्री को अकेला देखकर कामी पुरुषों की वासनाएँ जाग ही जाती हैं पर वह कोई साधारण स्त्री नहीं थी, एक व्यक्तित्व भी थी, इसलिए किसी की उस पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं थी।
सलमा की हरकतें उसे असामान्य लग रही थीं। उसका रात को सजना-सँवरना, तमाम तरह से उसे लुभाने की कोशिश! क्या है ये सब! उसका बचपना समझकर वह हँस देती थी, पर इधर वह कुछ ज्यादा ही बेचैन दिख रही थी। उसे तब तक नहीं पता था कि कुछ पुरुषों की तरह कुछ स्त्रियाँ भी समलैंगिक होती हैं।
…इसी पुस्तक से…
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