Author(s) — Gumpi Nguso
लेखक – गुम्पी ङूसो
Yapom–Galo Lokkathain (Folk Tales of Tribes of Galo Arunachal Pradesh)
यापोम — गालो लोक-कथाएँl
₹250.00 ₹200.00
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| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 131 Pages | HARD BOUND | 2021 |
Description
गुम्पी ङूसो
गुम्पी ङूसो — पिता का नाम – श्री तान्या ङूसो। माता का नाम – श्रीमती नयि ङूसो। शैक्षिक योग्यता – एम.ए., बी.एड. एवं पीजीडीटी। समुदाय – गालो। रुचियां – लेखन, लोक संस्कृति का संरक्षण एवं सामाजिक गतिविधियों में अभिरुचि। प्रकृति की गोद में बिताई बचपन और गांव की मीठी यादें मेरी मन मस्तिष्क के कैनवास पर आज भी स्पष्ट है। सरकारी मुलाजिम एवं घर गृहस्थी की जिम्मेदारियों के साथ अपने जीवन-साथी, शुभचिंतकों एवं मेरे बच्चों के सकारात्मक सोच ने मेरे उत्साह को बढ़ाया। यही कार्य पुस्तक का आधार बना। सम्मान – 1. पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी शिलांग द्वारा 2. अरुणाचल हिंदी संस्थान द्वारा। अनुभव – शिक्षण और आकाशवाणी एवं दूरदर्शन में कई वर्षों तक कार्य। वर्तमान पता – हिंदी अधिकारी, राजीव गांधी विश्वविद्यालय (केंद्रीय) रोनो हिल्स, दोईमुख, जिला-पापुमपारे अरुणाचल प्रदेश-791112। मो. : 9436249146 ई-मेल – nguchon gucho@gmail.com
पुस्तक के बारे में
प्राचीन काल से ही भारतीय लोक-कथाएँ विराजमान हैं। लोक-कथाओं का संकलन एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य है। जिस गालो समाज का जिक्र इन संग्रहित लोक-कथाओं में हुआ है, उस समाज के लिए यह और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौलिक रूप से ही विकसित हो पाया है। इसे यदि समय रहते संकलन नहीं किया जाएगा तो आने वाली पीढ़ी अपनी पुरानतम मान्यताओं से अनजान होगी। इस परिप्रेक्ष्य में गुम्पी का यह योगदान सराहनीय कार्य है। इस पुस्तक में संकलित प्रत्येक कथा को लेखिका ने बारीकी से प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। प्रत्येक कथा में प्रकृति और मानव समाज के बीच सामंजस्य स्थापित है, उन तथ्यों को आभा देने का कार्य किया है।
लेखिका द्वारा–‘कई कथाएँ ऐसी हैं जिन्हें गालो समाज में लगभग सभी जानते हैं और कुछ कथाएँ ऐसी भी हैं जो केवल अरुणाचल की सुदूर व दुर्गम घाटियों के बीच ही जीवित हैं।’
‘सुनो दुनिया गोल है और दुनिया मानव लोक है यहाँ मृत्युलोक का होना एक निरपेक्ष्य तथ्य है और तुम्हारा इस तरह से तापेन के साथ जाना भी प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है। प्रकृति के नियमों के अधीन हम सभी को रहना होगा।’
प्रथम कथा यापोम जिस पर पुस्तक का नामकरण हुआ है, यह कथा अपने-आप में बहुत ही अनोखी है इस कथा से मुझे यह भी जानने को मिला कि सृष्टि को गालो बोली में यिर्ने कहते हैं। गालो समाज में यह विश्वास रखते हैं कि उनका यिर्ने का आशीर्वाद प्रत्येक मानव को प्राप्त है।….संकलित कथाओं में प्रकृति और गालो जनजाति से जुड़ी मान्यताओं को बताया है, जिनमें प्रकृति, जीव-जंतु, मानव संबंधों आदि का सुंदर चित्रण है। ….
प्रत्येक कथा के अन्त में जो टिप्पणी लेखिका द्वारा दी गई है वह कथाओं को संपूर्ण बनाती है। उन टिप्पणियों से कथाएँ और रोचक लगेंगी। इसके साथ ही कथाओं के बीच-बीच जो चित्र अंकित किए हैं, उन चित्रों के लिए भी लेखिका को साधुवाद देता हूँ क्योंकि संकलित चित्रों में जो वस्तु दिखाई गई हैं वह वस्तुएँ आज के समाज में लगभग लुप्त हैं।
प्रोफेसर साकेत कुशवाहा, कुलपति, राजीव गाँधी विश्वविद्यालय (केन्द्रीय), अरुणाचल प्रदेश
इसी पुस्तक से…
यह सच है कि पुरुष-प्रधान समाज माना गया है और पुरुष के नाम पर वंश आगे चलता है। परन्तु महिलाएँ भी उतनी ही आत्मनिर्भर होती हैं और खुलकर जीती हैं। महिलायें भी महत्त्वपूर्ण निर्णयों में शामिल होती हैं। हमारी बोली में भी लिंग-भेद नहीं है। ये तथ्य हमारी बोली में कुछ इस तरह झलकती है– खाएगा/खाएगी– दोरह्; सोएगा/सोएगी– युबरे शादी-ब्याह की रस्में केवल दो दिलों का मेल नहीं या फिर एक अटूट बंधन नहीं बल्कि यह मानव-समाज का विस्तार करने हेतु स्त्री-पुरुष के मध्य स्वेच्छा से प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया गया एक ऐसा आपसी बंधन है जिनके हाथों में इस संसार की बागडोर है। बल्कि यह एक दायित्व है, जिसे हर दम्पति को सही रूप में निभाना चाहिए। किसी एक को इन रस्मों का आरम्भ करना था। कोई भी घर छोड़कर जाना नहीं चाहता है। परन्तु प्रथम विवाह के समय किसी एक को अपना घर छोड़कर जाना तय था। अब यह फैसला करना रह गया था कि कौन बाबुल के आँगन छोड़कर परदेस निकल जाएगा या जाएगी। नारी जाएगी या नर जाएगा। गालो परिवार का मानना है कि यह प्रथा आञे (बड़ी बहन) कारि-कार्या और आचे (बड़े भइया) कारा-कार्बा से आरम्भ हुई है। आञे कारि व आञे कार्या दो बहनें और आचे कार्बा व कारा दो भाई थे। आञे कारि-कार्या ब्याह कर जाएगी या आचे कार्बा-कारा जाएगा। जिन शादी-ब्याह की रस्मों को आज हम समझते हैं और देखते हैं, उसका आरम्भ यहीं से होना था। बड़े प्यार-दुलार से चारों भाई-बहन एक ही घर में रहकर बड़े हुए थे। कारि-कार्या भी जिद करने लगीं और कार्बा-कारा भी हठी होने लगे।
Additional information
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