Shan Haryane kee (Poetic folk Play)
शान हरियाणे की (साँग संग्रह)
₹225.00
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Author(s) — Raj Bir Verma
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Description
पुस्तक के बारे में
कली : बचपन की शादी नै लोगों, बिल्कुल करणां छोड़ दियो
राजबीर कह रिवाज ठीकरा, समय के सिर पै फोड़ दियो
कानुन बणगे शादी के, सरकार दिखाई दे।।
टेक : जवान बेटा घर में बैठया, चंडाल दिखाई दे।
के करले उस बालक का, जो छोड़ पढ़ाई दे।।
वार्ता : प्रिय सज्जनों बाला को ससुराल में आये लगभग तीन महीने हो जाते हैं। उधर राज ने पढ़ाई छोड़ दी। घर में दोनों वक्त रोटी के समय झगड़ा होता है। झगड़ा इतना बढ़ गया कि एक दिन शाम को रोटी खाते समय हरिराम अपना आपा खो गया। बोला कि दोनों वक्त कुत्ते की तरह रोटियाँ खा जाता है। और साथ में कुतिया भी। बस ये शब्द राज के कानों में ऐसे चूभे जैसे किसी ने गर्म शीशा पिघला कर उसके कानों में डाल दिया हो। वह रोटी का निवाला थाली में छोड़ देता है। और सीधा अपने एक दोस्त मित्रसेन के पास जाता है और क्या कहता है–
कथन राजसिंह का–
टेक : मित्रसेन मेरी गौर तै सुनिये, बणती बात बिगड़गी।
बापू नै आज कड़वी कह दी, मेरी सारी ऐंठ लिकड़गी।।
कली : मनै कद सी कहयां बापू तै, कि मेरा ब्याह कर वादे
दादा जी की बात मान कै, मनै भरणें पड़गे बादे
थे तो मेरे के के इरादे, इब सहम बीजली पड़गी।।
मित्रसैन मेरी गौर तै…
कली : आज बापू नै कुत्ता दिक्खूँ, कल लागूँ था प्यारा
बीच बीचाले डोब दिया मैं, इब मेरा कोण सहारा
के थारा के म्हारा रहग्या, मनै टेम की चाल रगड़गी।।
मित्रसैन मेरी गौर तै…
… इसी पुस्तक से…
Additional information
Weight | 300 g |
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Dimensions | 9.25 × 6.125 × 0.375 in |
Binding Type |