Samkalin Sahitya-Vimarsh ke Aayam
समकालीन साहित्य-विमर्श के आयाम

380.00

17 in stock (can be backordered)

Author(s) — Viji. V
लेखक –  विजी. वी

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 148 Pages | HARD BOUND | 2021 |
| 6 x 9 Inches | 450 grams | ISBN : 978-93-91034-13-9 |

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Description

पुस्तक के बारे में

पढ़ना आसान कार्य है पर लिखना आयास का। पढ़नेवाले सब लिख नहीं सकते। वही लिखते हैं जो कुछ नया कहना चाहते हैं। जब तक नया कुछ कहना नहीं है, चुप रहना ही बेहतर है। कथा साहित्य खासकर उपन्यास साहित्य जीवन की समग्रता का साहित्य है। उसमें जीवन की विशालता एवं गहराई का अंकन संभव है। साहित्य की किसी भी दीगर विधाओं में वैसी क्षमता नहीं। कहानी जीवन के किसी-न-किसी छोटे सन्दर्भ या अमूल्य क्षण की अभिव्यक्ति है। जैसे प्रेमचन्द जी ने सूचित किया कि कहानी पन्द्रह मिनिट में समाप्त होनेवाली होनी चाहिए। उसके लंबे हो जाने के साथ उसकी सघनता नष्ट हो जाती है और पाठकीय संवेदना को उजागर करने की क्षमता भी शिथिल हो जाती है। पर उपन्यास में वह क्षमता उसके विशाल कलेवर के बावजूद बनी रहती है। पाठकों के अन्तःकरण को विमलीकृत करने की क्षमता जितनी उपन्यास में है उतनी शायद ही किसी अन्य विधा में हो। इसलिए उपन्यास अपने जन्म से लेकर अब भी सबसे शक्तिशाली साहित्यिक विधा के रूप में सक्रिय रहता है। समकालीन जीवन-यथार्थ के अंधकार की सही पहचान उपन्यासों में ही अनावृत हुई है। इसलिए नए युग के सभी विमर्शों का दस्तावेज़ बनकर उपन्यास वर्तमान रहता है।

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