Author(s) — Janardan
लेखक — जनार्दन
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 215 Pages | 6.25 x 9.25 inches |
| Book is available in PAPER BACK & HARD BOUND |
₹315.00 – ₹525.00
| Book is available in PAPER BACK & HARD BOUND |
अवधू लालटेन लिये बिलास के पैंताने (खटिया के पैर की ओर) खड़ा हो गया। पीछे रुकमी थी। इतना पाप, धरती कब डूबोगी? रुकमी मन-ही-मन श्राप रही थी। रुकमी पूरे कपड़े में थी, फिर भी चारों की नज़र रुकमी तोल (चमड़ी) पर रेंग रही थी। भूपेन्द्र गिलास लेकर खड़ा हो गया। ऊपर से नीचे तक, नीचे से ऊपर तक निहारने के बाद गिलास उसके सीने पर उड़ेल दिया। ब्लाउज भीगकर छाती से चिपक गयी। चिंहुककर वह दोनों हाथों से छाती ढाँकने की असफल कोशिश करने लगी। देखिये मादक सौन्दर्य। देशी महुआ की मादकता आप सभी को मुबारक! कहते हुए अनुराग दोनों हाथ ऐसे फैला दिया जैसे रुकमी को लांच कर रहा हो।
बिलास ने रत्ती को हाँक लगाया, रत्तिया बोटी पकाकर इसे ले जाओ। अच्छे से नहवाओ। थोड़ा खूशबू रगड़ देना बदन और बालों में, साथ ही तुम भी तैयार हो जाना। पूरे तीन लोग हैं– और रात-भर का प्रोग्राम है। रुकमी जाकर रत्ती के पास बैठ गयी। थोड़ी देर में रत्ती सभी को बोटी-भात परोसकर रुकमी को लेकर नदी के किनारे चली गयी।
पसारू कोया के गोंयंदाड़ी (डमरू) की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी–दड़म, दड़म, दम्म, दम्म, डरम, डरम, डम्म, ड्म्म्म….
सल्लां पूनाता गाँगरा ऊना संगने गइट आयाँता।
हिद सिरडीता गाड़ा आपीने मुने ताकसी हंदाता।।
सल्लां पूना का ऊना से समागम।
सृष्टि चले इसी से मेरे भाई, इसी से मेरे भाई।।
दड़म, दड़म, दम दम, डमक, डमक, डम्म, डम्म, डम्म्म्म्म…
रत्ती कहने लगी–मुआ इतनी रात भये मरता फिर रहा है। पगला गया है पसारू।
जिसकी मायजू (औरत) की आबरू दिन-दहाड़े लूट ली जाये और फिर मारकर पवित्र पेंचमेड़ में फेंक दी जाये उसे पागल तो होना ही है। सदमे में इन्सान पगलाता है, हैवान नहीं होता। दु:ख जब बुद्धी को लाँघ कर हिरदय पर चढ़ जात है, तब मनसेधू पागल हो जात है। पसारू का पक्ष लेते हुए रुकमी बोली। रत्ती टुकुर-टुकुर रुकमी का मुँह ताकती रह गयी।
नीले आकाश के नीचे नर्मदा दूध-सी बह रही थी। सामने हिरदेशाह के मोती महल का खंडहर खड़ा था। दोनों औरतें घाट पर आकर बैठ गयीं। अँजुरी से पानी लेकर मुँह पर छींटा किया। चेहरे पर चाँदी की बूँदें जगमग करने लगीं। विशाल नर्मदा में अपने कुनबे सहित पूरा आसमान उतर आया था। तारों की फौज गिजमिज-गिजमिज कर रही थी। चारो तरफ भयावह शान्ति बिखरी हुई थी। जंगली फूलों से पाट महक रहा था। लग रहा था चाँदी का कफ़न ओढ़कर नर्मदा सोयी हुई हो और उसकी मैय्यत पर चढ़ाये गये फूल गमक रहे हों।
… इसी पुस्तक से…
गोंड खुद को कोयतुर अर्थात कोख से पैदा हुआ कहते हैं। उनका मानना है कि दुनिया स्त्री की कोख से ही कायम है। इस आदिवासी समुदाय के अनुसार मानव-सभ्यता के विकास में स्त्री के योगदान का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इस समुदाय ने अपने गण-दर्शन (कोया पुनेम) में माता जंगो रायतार की कल्पना की और जब शासन करने का मौका मिला तो गोंड रानियों को शासन सौंप दिया। गोंड रानियों ने शासन के साथ-साथ वास्तुकला, साहित्य और संस्कृति को उस स्तर पर पहुँचा दिया, जिसका कोई जोड़ नहीं मिलता। इन रानियों ने अपने राज्य में जल का जैसा प्रबन्धन किया, वह अपने आप में एक मिसाल है।
पहाड़ गाथा कथा-नायिका नैना नैताम के जरिये आदिम आदिवासी समुदाय पर आनेवाली आपदाओं, संकटों और उतार-चढ़ाव का आख्यान है। उपन्यास की लय में अतीत के सम-विषम के साथ पेड़, पहाड़, नदी और गुफाओं की अनेक लोक-कथाएँ भी गुँथी हुई हैं। उपन्यास की नायिकाएँ बोलतीं कम हैं, हस्तक्षेप ज्यादा करतीं हैं। वे सवाल करती हैं, लड़ती हैं और नेतृत्व करती हैं। लड़ने-भिड़ने और मिटने-मिटाने का बोध वह अपनी पुरखौती से हासिल करती हैं। जल, जंगल और जमीन के साथ-साथ आदिवासी समुदाय ने ज़मीर से कभी भी समझौता नहीं किया। इसीलिए पहाड़ गाथा की नायिकाएँ अपने धीरज को बरकरार रखती हुई, पूरी ताकत के साथ साम्राज्यवाद के खिलाफ नाचती-गाती खड़ी हो जाती हैं। इसमें उन्हें दूसरे समाज की औरतों के अलावा पुरुष साथियों का भी सहयोग मिलता है। आदिवासी औरत की लड़ाई में इस बार शिक्षा में गैर-बराबरी की लड़ाई भी शामिल है, जिसका एक नुक्ता पूँजीवाद की खाल में छिपे पितृसत्ता, नस्लवाद, जातिवाद और अभिजात्यवाद से जुड़ता है। कुल मिलाकर उपन्यास कई सवालों के साथ-साथ गोंडवाना के रंग में पूरी तरह रंगा हुआ है। गोंड समुदाय और कथा की ऐसी आमद ठेठ आदिवासी अन्दाज़ में हिन्दी कथा-साहित्य में शायद पहली बार हुई है…।
… इसी पुस्तक से…
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