Author(s) — Vipin Choudhary
लेखक — विपिन चौधरी
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 224 Pages | 2022 | 6 x 9 inches |
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₹280.00
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विपिन चौधरी — जन्म : 2 अप्रैल 1976, खरकड़ी माखवान गाँव, जिला भिवानी (हरियाणा)
शिक्षा : बी.एससी. (प्राणी विज्ञान), एम.ए. (लोक प्रशासन), एम.ए.( राष्ट्रीय मानवाधिकार)
प्रकाशित कृतियाँ : कविता संग्रह – ‘अंधेरे के मध्य से’, (ममता प्रकाशन, 2008); ‘एक बार फिर’, (ममता प्रकाशन, 2008); ‘नीली आँखों में नक्षत्र’, (बोधि प्रकाशन, 2017)। जीवनी – ‘रोज़ उदित होती हूँ’ (अश्वेत लेखिका माया एंजेलो की जीवनी, दखल प्रकाशन, 2013)। अनुवाद – ‘अँग्रेजी राज़ में भूतों की कहानियाँ’ (रस्किन बॉन्ड, सस्ता साहित्य मण्डल, 2012); ‘जिंदा दफन’ (सरदार अजित सिंह की जीवनी, संवाद प्रकाशन, 2018)। संपादन – रेतपथ पत्रिका, (युवा कविता विशेषांक, 2014); युद्धरत आम आदमी, (स्त्री कविता विशेषांक, 2016); ‘रमणिका गुप्ता की आदिवासी कविताएँ’, (कविता-संग्रह, बोधि प्रकाशन, 2016)
पुरस्कार : ‘प्रेरणा पुरस्कार’, हरियाणा साहित्य अकादेमी एवं प्रेरणा परिवार (2006); ‘वीरांगना सावित्री बाई फुले पुरस्कार’, भारतीय दलित साहित्य अकादेमी, दिल्ली ( 2007); साहित्यिक कार्यों के लिए ‘काव्य संध्या मंच’, उकलाना मंडी द्वारा पुरस्कृत (2006); भारतीय भाषा परिषद, कोलकात्ता की पत्रिका वागर्थ द्वारा ‘प्रेरणा पुरस्कार’ से पुरस्कृत (2008)
संपति : स्वतंत्र लेखन
ई-मेल : vipin.choudhary7@gmail.com
नेट की दोस्ती : खुशी दो दिन की, रोना जीवन-भर का इंटरनेट पर दिल, मांस, खून नहीं सिर्फ तस्वीर है और हो सकता है वह भी नकली हो और नाम भी असली न हो। यदि आप इंटरनेट पर बने दोस्तों को राह में अचानक से मिलेंगे तो पहचान भी नहीं सकेंगे। इंटरनेट की दुनिया छद्म की दुनिया है, यह कितना घिनौना मज़ाक है कि हम अपने बगल के पड़ोसी को तो पहचानते नहीं और फेसबुक पर देश-दुनिया से दोस्ती का दावा करते हैं, जो दोस्त हमारे आमने-सामने होते हैं वे मांस और रक्त के धड़कते हुए लोग हैं। जबकि फेसबुक या दूसरी सोशल साइट्स पर दोस्ती का दावा करने वाली साइट्स पर बने दोस्त वे होते हैं जिनका असली नाम (केवल उनके स्क्रीन नाम) का कोई अता-पता नहीं होता और वे उनसे सड़क (एक वास्तविक सड़क नहीं, एक आभासी दुनिया की स्ट्रीट) पर ही मिल पाते हैं और ऐसा भी नहीं है कि जिनके फेसबुक पर बीस हजार मित्र हैं वह मित्रता के मामले में काफी धनवान हैं। अखबारों में लड़कों द्वारा सोशल मीडिया पर लड़कियों से दोस्ती करने और फिर उनका मानसिक व दैहिक शोषण करके लापता हो जाने के बहुत-से किस्से पढ़ने को मिलते हैं। मेरी एक सहेली चार साल से जिस फेसबुक फ्रेंड को लेकर शादी के सपने देखती रही वह शादीशुदा निकला। अब मेरी दोस्त एक साल तक मानसिक रोगालय के चक्कर लगा रही है और उधर लखनऊ में बैठे उसके माता-पिता शादी के लिए उसे घर बुला रहे हैं। यह तो तय है कि आँख मूँदकर इस तरह की दोस्तियों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
… इसी पुस्तक से…
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