Author(s) – Abhay
लेखक — अभर
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 428 Pages | PAPER BACK | 2020 |
| 5.5 x 8.5 Inches | 400 grams | ISBN : 978-93-89341-17-1 |
पुस्तक के बारे में
अभय जी बहुत ही शान्त और गम्भीर व्यक्ति थे। मेरे मन में उनकी छवि है बहुत ही निष्ठावान, शान्त और गम्भीर व्यक्ति की है। वे किसी को धकियाकर आगे बढऩे वाले, अपने आपको प्रदर्शित करने वाले और किसी भी प्रकार के दिखावे में विश्वास करने वाले व्यक्ति नहीं थे। उनकी कहानी ‘सूअर का बच्चा’ दलित सौन्दर्य-बोध की प्रथम कोटि की रचना है। इस कहानी में एक सुपरिचित चित्र है, यह ‘जीवन का एक टुकड़ा’ है।
–डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी
अभय जी अत्यन्त कुशल कहानीकार थे। उनकी कई कहानियाँ उस ऊँचाई को छूती हैं जहाँ उनकी तुलना बेहिचक हिन्दी की श्रेष्ठ कहानियों से की जा सकती है। ‘आलपीन’ अभय जी की एक प्रसिद्ध और चर्चित कहानी है। इस कहानी में लेखक की रचनात्मक कल्पना-शक्ति प्रशंसनीय है। एक अन्य उल्लेखनीय कहानी है–’जलसा’। यह कहानी उस दौर को ध्यान में रखकर लिखी गयी है जब खासकर नयी पीढ़ी पर साम्प्रदायिकता का रंग चढऩे लगा है। ‘हस्तक्षेप’ भी एक उल्लेखनीय कहानी है जिसमें अभय जी रचनात्मक विवेक की सक्रियता दिखाते हैं। उनके समय में अनेक श्रेष्ठ कहानीकार हुए हैं लेकिन अभय जी का रचनात्मक मिजाज उन्हें उनसे अलग करता है।
–डॉ. खगेन्द्र ठाकुर
लेखक समाज के लिए अभय जी की शख्सियत अपने आपमें एक रचनात्मक प्रेरणा थी। लेकिन एक व्यापक आयाम जो उन्हें ऊँचे कद का इन्सान बनाता था, वह था सामाजिक कार्यों खासकर प्रतिकार की आवाज बुलन्द करने में उनकी सक्रियता। अन्तिम समय तक यह प्रखरता उनके व्यक्तित्व का हिस्सा बनी रही।
–जाबिर हुसैन
अभय जी साधक थे। सभी प्रलोभनों से दूर। निष्कपट इन्सान जिस पर आप भरोसा कर सकते थे। और हिन्दी में जिन दोस्तियों की चर्चा हमेशा होगी, उनमें अभय, शंकर और नर्मदेश्वर की दोस्ती की होगी। काश मेरी भी ऐसी कोई दोस्ती होती।
–अरुण कमल
अभय जी के लिए साहित्य जीवन-दर्पण की तरह था और राजनीति चूँकि जीवन का अंग है, इस नाते साहित्य में भी इसका होना स्वाभाविक है। अभय जी इस सोच के कायल थे कि विचारधारा सतत प्रेरणा स्रोत होती है, दृष्टि देती है।
–डॉ. ब्रजकुमार पांडेय
जिन्होंने अभय जी रचनाएँ पढ़ी हैं और उन्हें ठीक से जाना है, उन्हें एक कम चर्चित रह गये या कम जाने गये लेकिन एक जेनुईन, निष्ठावान और बहुत समर्थ लेखक की याद आयेगी। यदि नये सिरे से परीक्षण हो तो सन् उन्नीस सौ अस्सी के थोड़ा पहले या उसके आस-पास उभरे कथाकारों की जो कहानियाँ चर्चा में रही हैं, उनमें से कई कहानियों से अभय की कहानियाँ ज्यादा वजनदार और स्तरीय हैं। अभय उन लेखकों में नहीं थे जो अपनी चर्चाओं के लिए खुद इन्तजाम करें। वे इस मान्यता में विश्वास करते थे कि जिनकी रचनाओं में समय और समाज की धड़कनों की गूँज होती है, उन्हें इतिहास नेपथ्य से निकालकर सामने खड़ा कर देता है। अभय एक चेतना-सम्पन्न और प्रबुद्ध रचनाकार थे। उन्होंने जितना कुछ लिखा है, वह जल्दीबाजी में छपने की इच्छा या पाठकों के बीच दिखते रहने की इच्छा से जैसे-तैसे लिखा हुआ साहित्य नहीं है। वह साहित्य के उद्देश्यों की सोच-समझ के साथ ठहर-ठहरकर, रच-रचकर लिखा गया साहित्य है। अभय की विशिष्टता उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता के आधार पर है। वे जीवन और लेखन की एकात्मकता या समरूपता के अनुपम उदाहरण हैं। अभय ने जो कहानियाँ लिखीं, उनमें समय और समाज का एक बहुत बड़ा परिदृश्य मौजूद है। नाव, हस्तक्षेप, आलपीन, शाल, जलसा, पहचान, दफा तीन सौ उन्नासी, सोन चिरइया, टिगरीस की शाहजादी आदि उनकी अविस्मरणीय कहानियाँ हैं। अभय की कहानियों में पात्रों और परिवेश से बहुत आत्मीयता के साथ लेखक का जुड़ा होना एक विशिष्टता है जो आमतौर पर हिन्दी कहानियों में नहीं दिखाई पड़ती है। सोच की सकारात्मकता अभय की कहानियों की एक अलग पहचान है और वह उन्हें विशिष्ट बनाती है।
शंकर, सम्पादक परिकथा
समग्र में शामिल किताबें
एक अदद माँ (कविता-संग्रह)
कठिन समय के विरफ (कविता-संग्रह)
आलपीन (कहानी-संग्रह)
जलसा (कहानी-संग्रह)
सोन चिरइया (कहानी-संग्रह)