Meri Aawaj Suno (Novel Based on Galo Tribes)
मेरी आवाज सुनो (गालो जनजाति पर केन्द्रित उपन्यास)

100.00240.00

Author(s) — Jumsi Siram ‘Nino’
लेखक — जुमसी सिराम ‘नीनो’

| ANUUGYA BOOKS | HINDI| 96 Pages | 2021 | 5 x 8 Inches |

| Book is available in PAPER BACK & HARD BOUND |

Choose Paper Back or Hard Bound from the Binding type to place order
अपनी पसंद पेपर बैक या हार्ड बाउंड चुनने के लिये नीचे दिये Binding type से चुने

 

Description

पुस्तक के बारे में

जुमसी एक अच्छे उपन्यासकार हैं। मेरी आवाज सुनो से पहले उन्होंने एक ऐतिहासिक उपन्यास लिखा था–मातमुर जामोह। ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित यह उपन्यास बहुत दिलचस्प और रोमांचकारी है। इसमें ब्रिटिश औपनिवेशिक दौर में एक अंग्रेज अफसर की हत्या कर देने वाले ट्राइबल व्यक्ति के जीवन को उपन्यास का आधार बनाया गया है।
भारत के ज्यादातर समाजों की तरह अरुणाचल के तानी ग्रुप के समुदायों में भी स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं है। अगर भारत के दूसरे समाजों में विवाह में दहेज लेने-देने की प्रथा के कारण स्त्रियों की दुर्दशा होती है तो तानी समुदायों में भी विवाह में वधूमूल्य (कन्यामूल्य) लेने-देने की प्रथा के कारण स्त्रियों की दुर्दशा होती रही है। कई बार तो छोटे-छोटे बच्चों के माता-पिता भी वधू-मूल्य का आदान-प्रदान करके बच्चों का विवाह तय कर देते रहे हैं। इस बुरी प्रथा को केन्द्र में रखकर जुमसी सिराम ने इस उपन्यास में स्त्रियों को अपनी पहचान, अपनी इच्छा, अपना स्वतंत्र अस्तित्व और अपने अधिकारों का सवाल उठाया है। उन्होंने अपने समाज की उत्पीड़ित स्त्रियों के हकों की आवाज बुलंद की है और हिन्दी में लिखकर इस आवाज को पूरे भारत तक पहुँचा देने की कोशिश की है।
इस उपन्यास में एक प्रेमी जोड़े के तीव्र भावावेश के साथ हृदय की सरलता और सच्चाई को दिखाया गया है। गलत और अन्यायपूर्ण परम्पराओं के आगे सिर ना झुकाने की जिद दिखाई गई है। इस उपन्यास में जुमसी हमें एक और अधिक न्यायपूर्ण भारतीय समाज बनाने के लिए प्रेरित करते हैं।

— वीरभारत तलवार

इस उपन्यास के बारे में क्या ही लिखूँ? दुनिया में हजारों-लाखों उपन्यास लिखे गए हैं। कोई उपन्यास किसी को अच्छा लगता है तो किसी को बुरा। इसलिए पाठक ही तय करें कि यह उपन्यास कैसा है। मैं जो कह सकता हूँ, वह यह है कि यह उपन्यास किसी समुदाय, धर्म या व्यक्ति विशेष के विरुद्ध या उसका दिल दुखाने के लिए नहीं लिखा गया है। बहुत पहले जब यह एक लघु-उपन्यासिका के रूप में प्रकाशित हुआ था तो विवादों के केंद्र में आ गया था। कारण यह था कि यह उपन्यास हमारे प्रदेश में फैली एक कुरीति ‘नेप्प न्यीदा’ की आलोचना करता है। ‘नेप्प न्यीदा’ का मतलब है बाल विवाह। इस उपन्यास के कथानक में कुछ सच्ची घटनाएँ भी शामिल हैं लेकिन उपन्यास की आधारभूमि का किसी व्यक्ति या घटना से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है। यदि किसी को यह लगता है कि इसकी घटनाओं का किसी व्यक्ति विशेष से सम्बन्ध है तो इसका कारण शायद यह है कि यह कुप्रथा हमारे समाज में मौजूद रही है और हम सब अपने आसपास की घटनाओं के साक्षी रहे हैं। यदि कोई इस आधार पर विवाद करता है तो पाठक स्वयं समझ सकते हैं कि ऐसा विवाद आधारहीन है।
खैर, राजीव गांधी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. अभिषेक कुमार यादव जी जब मुझसे मिलने मेरे घर आये तो उनकी निगाह इस लघु-उपन्यासिका पर पड़ी। उन्होंने मुझे सुझाव दिया कि यह महत्त्वपूर्ण कृति पुनः पाठकों के सामने आनी चाहिए। सो मैंने इसे फिर से लिखा और इसके कथानक के फ़लक को ज़रूरी विस्तार दिया।

…इसी पुस्तक से…

Additional information

Weight N/A
Dimensions N/A
Binding Type

,

This website uses cookies. Ok