Maveshi Bara — Ek Pari Katha (George Orwell’s Novel Translated from English)
मवेशीबाड़ा — एक परी कथा (अनुदित उपन्यास)
₹185.00 – ₹275.00
Author(s) — George Orwell
Hindi Translation of George Orwell‘s Novel ‘Animal Farm’ by Subhash Sharma
Description
लेखक का परिचय
डॉ. सुभाष शर्मा
डॉ. सुभाष शर्मा – जन्म : 20 अगस्त, 1959, सुल्तानपुर, (उ.प्र.) द्य शिक्षा : एम.ए., एम.फिल, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से। एम.ए., मैनचेस्टर विश्वविद्यालय, इंग्लैंड से। पटना विश्वविद्यालय से पीएच.डी. द्य प्रकाशित कृतियाँ : जिन्दगी का गद्य; अंगारे पर बैठा आदमी; हम भारत के लोग; दुश्चक्र; बेजुबान; भारत में बाल मजदूर; भारत में शिक्षा व्यवस्था; भारतीय महिलाओं की दशा; हिन्दी समाज : परम्परा एवं आधुनिकता; शिक्षा और समाज; विकास का समाजशास्त्र; भूख तथा अन्य कहानियाँ; खर्रा एवं अन्य कहानियाँ; कुँअर सिंह और 1857 की क्रान्ति; भारत में मानवाधिकार; संस्कृति और समाज; शिक्षा का समाजशास्त्र; डायलेक्टिक्स ऑव अग्रेरियन डेवलपमेन्ट; व्हाइ पीपल प्रोटेस्ट; सोशियोलॉजी ऑव लिटरेचर; डेवलपमेन्ट एंड इट्स डिस्कान्टेन्ट्स; ह्यूमन राइट्स; द स्पीचलेस एंड अदर स्टोरीज; कायान्तरण तथा अन्य कहानियाँ (फ्रांज काफ़्का की कहानियों का अनुवाद); अँधेरा भी, उजाला भी (विश्व की चुनिन्दा कहानियों का अनुवाद); मवेशीबाड़ा (जॉर्ज ऑर्वेल के उपन्यास ‘द एनिमल फार्म’ का अनुवाद); संस्कृति, राजसत्ता और समाज; क्यों करते हैं लोग प्रतिरोध; कबीर : कविता एवं समाज द्य प्रमुख पत्रिकाओं में कई कहानियाँ, कविताएँ एवं लेख प्रकाशित। इनकी विभिन्न कहानियों का अंग्रेजी, ओडिया, बांग्ला, मराठी आदि में अनुवाद द्य पुरस्कार : राजभाषा विभाग, बिहार सरकार से अनुवाद के लिए पुरस्कार द्य बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना से कहानी के लिए साहित्य साधना पुरस्कार द्य ‘भारत में मानवाधिकार’ पुस्तक पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (नयी दिल्ली) से प्रथम पुरस्कार (2011) द्य अनुभव : भारत सरकार एवं बिहार सरकार की सेवा में उच्च पदों पर कार्यानुभव द्य ई-मेल : sush84br@yahoo.com
उपन्यासकार का परिचय
जॉर्ज ऑर्वेल (1903-1950) का असली नाम एरिक ऑर्थर ब्लेयर था। उसका जन्म बिहार के मोतिहारी जिले में सन् 1903 में हुआ था। उसके पिता रिचर्ड बाल्मस्ले ब्लेयर ब्रिटिश भारत सरकार के अफीम विभाग में सरकारी अधिकारी थे। उसकी माँ का नाम इदा माबेल लिमोजिन था। पढ़ने के लिए उसे एक आवासीय विद्यालय (सेंट साइप्रियन) में भेज दिया गया। 1914 में उसकी पहली देश-भक्ति पूर्ण कविता प्रकाशित हुई। उसकी पहली प्रकाशित (1933) किताब ‘डाउन एंड आउट इन पेरिस एंड लन्दन’ थी। यह वंचितों पर थी। इसके लेखक के रूप में उसने अपना छद्म नाम जॉर्ज ऑर्वेल रखा। यानी सन् 1933 में यही नया नाम उसकी पहचान बन गया। 1934 में उसका पहला उपन्यास ‘बार्मीज डेज’ छपा और 1935 में ‘क्लर्जी मेन्स डाटर’। द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व वह वामपंथी (ग़ैर-स्टालिनवादी) राजनीित में गम्भीर रूप से शामिल हो गया। उसका उपन्यास ‘द रोड टू विगन पियर’ (1937) उसे मध्यम स्तर की शोहरत दिला सका। यह उपन्यास खान मज़दूरों की रोज़मर्रे की ज़िन्दगी पर लिखा गया था, तो वामपंथी बुद्धिजीवियों ने इसकी खूब प्रशंसा की। 1936 से 1938 तक वह स्पेन में रहा।
उसका एक अन्य उपन्यास ‘होमेज टू केटेलोनिया’ सन् 1938 में प्रकाशित हुआ था। फिर उसने एक और उपन्यास लिखा जिसका नाम था–‘कमिंग अप फॉर एयर’ (1939)। 1939 में वह ब्रिटेन वापस आ गया। स्टालिन और हिटलर की सन्धि ने उसे भीतर से हिला दिया। ऑर्वेल ने तब कहा था ‘बदतर के खिलाफ़ बुरे’ का बचाव किया जाना चाहिए। बाद में उसके दो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और चर्चित उपन्यास ‘एनिमल फार्म’ (1945) और ‘नाइंटीन एटीफोर’ (1949) प्रकाशित हुए। वह आलोचनात्मक लेख भी लिखते रहे। (इनसाइड द ह्वेल) और समाजवादी साप्ताहिक पत्रिका ट्रिब्यून’ में एक काॅलम ‘एज आई प्लीज’ लिखते रहे। बाद में वह बी.बी.सी. से भी जुड़े और पत्रिका के साहित्यिक सम्पादक भी हो गये।
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