Kore Kagaz
कोरे कागज

399.00

12 in stock (can be backordered)

Author(s)Ramesh Chand Meena
रामेश चन्द मीणा

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 208 Pages | HARD BOUND | 2023 |
| 6.125 x 9.25 | 350 grams | ISBN : 978-93-93580-23-8 |

 

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Description

पुस्तक के बारे में

डॉ. मीणा के लेखन में सामाजिक चेतना का भाव, सजगता के साथ, अपने समय के प्रति सतर्क आँखों से बदलते घटनाक्रम को देखने के साथ-साथ मानवीय जीवन-बोध को बहुत गहराई से देखने की आदत के कारण उनकी यात्राएँ जीवन की यात्राएँ भी बन जाती हैं। इस द‍ृष्‍टि से वे विचार यात्रा के जीवन्त रचनाकार हैं जो केवल अपने वर्तमान को ही नहीं देखते बल्कि अतीत के साथ वर्तमान से बातें करते हुए भविष्य को रेखांकित करते हैं। ग्राम समाज, जंगल और आदिवासी के साथ, वह समाज केन्द्र में है जो विकास की रेखा से छूट गया है। इसे दृश्य में लाने के लिए वे उन अँधेरे पट व कोने में ले जाते हैं जिसे विकास की संरचना और शोरगुल में छोड़ दिया जाता उसे सामने लाने का काम चिन्तन, मनन व विचार की प्रक्रिया से करते हैं।

विवेक कुमार मिश्र

रमेश मीणा की ‘कोरे कागज’ कृति को पढ़ते हुए अनायास महादेवी वर्मा, रामवृक्ष बेनीपुरी, कृष्णा सोबती इत्यादि संस्मरणकारों की स्मृतियाँ साकार हो उठती हैं। रमेश मीणा इनके सच्चे उत्तराधिकारी हैं, जिन्होंने मृतप्राय: गौण विधा संस्मरण-साहित्य को साँसें देकर इसे पुनर्जीवित करने का स्तुत्य प्रयास किया है। यह कृति अपने वर्ण्य-विषय अनुभूति, संवेदना, रागात्मकता, चित्रात्मकता, परिवेश, पात्र, भाषा-शैली इत्यादि विभिन्‍न विशेषताओं के कारण पाठकों का ध्यान अवश्य आकृष्‍ट करेगी और समुचित आदर-मान बहुत जल्द प्राप्त करेगी, ऐसी आशा है।

डॉ. विवेक शंकर, सह-आचार्य, राजकीय कला महाविद्यालय

लेखक ने अपनी अन्तर्द‍ृष्‍टि एवं प्रत्यक्ष अनुभव, प्राकृतिक सौन्दर्य एवं अद्‍भुत नजारों के रोमांचकारी अनुभव को शब्दों में पिरोते हुए भागदौड़ भरी शहरी जिन्दगी के वर्तमान दौर में हर किसी को लक्ष्य तक पहुँचने एवं येनकेन प्रकारेण हासिल करने की जल्दबाजी है। यात्रा को अन्तहीन दौड़ से कुछ राहत है– यात्रा। व्यक्ति को आदतों की गुलामी से बाहर निकालने का रास्ता भी है। दिलवाड़ा मन्दिर में की गयी कारीगरी …धर्म के आडम्बर पर कटाक्ष किया गया है और शिक्षा को सर्वांगीण विकास का द्योतक बताया है। यात्रा वृत्तान्त से शिक्षा मिलती है कि कोई व्यक्ति सदैव शिखर पर नहीं होता, उसे सदैव उस तक पहुँचने वाले दुर्गम, कँटीले रास्तों एवं यथार्थ तथ्यों को जेहन में रखना चाहिए।

डॉ. जनक सिंह मीणा, निदेशक,
आदिवासी अध्ययन केन्द्र जय नारायण व्यास विश्‍वविद्यालय, जोधपुर (राजस्थान)

कथाकार, आलोचक एवं कवि रमेशचन्द मीणा के ‘कोरे कागज’ के संस्मरण वास्तव में भावनाओं और अनुभव शक्ति से कागज में भरे हुए संस्मरण है। इनके संस्मरण पढ़ते समय हमें महादेवी के संस्मरणों की याद ताजा हो जाती है। ‘कोरे कागज’ में संकलित संस्करण ऐसे है कि आप पढ़ना आरंभ करो तो पूरा नहीं करो, तब तक मनको बेचैन करते है। अनेकों यादों से समृद्ध है इनके संस्मरण। ‘टारगेट में टाइगर’, ‘कोरा कागज’, ‘धोबीराम से लेकर सहरियों तक’, ‘कैदी और शिक्षा’ आदि संस्मरण पढ़ते हैं तो हमें रमेशचन्द मीणा जी की अद्‍भुत लेखकीय कलाशक्ति से परिचित होते हैं। ‘कोरे कागज’ संस्मरण संकलन का हिन्दी साहित्य जगत में भव्य स्वागत होना चाहिए। मैं इस पुस्तक के लिए मीणा जी को साधुवाद देता हूँ।

डॉ. दिलीप मेहरा, आचार्य,
स्‍नातकोत्तर हिन्दी विभाग, सरदार पटेल विश्‍वविद्यालय वल्लभ विद्यानगर, आनन्द-गुजरात

अनुक्रम

भूमिका 7
जंगल
1. टारगेट में टाइगर 13
जंगलवासी
2. सीताबाड़ी 25
3. कोरा कागज 28
4. सहरिया प्रतिनिधि 31
5. धोबी-राम से लेकर सहरियों तक 39
परिसर
6. फूले गुब्बारे का हश्र 45
7. प्राचार्य दूसरे डी 51
8. नींद और परीक्षा 54
9. कैदी और शिक्षा 58
10. उड़नदस्ता 61
11. परीक्षा ड‍्यूटी 64
स्टाफ रूम
12. मिजाज बनाम द‍ृष्‍टिकोण 69
13. बहस में ईश्‍वर 74
व्यक्तिचित्र
14. शेर का शिकार 81
15. शिकारी की निगाह 85
16. हाड़ौती की मायावती होना 89
17. सौभाग्य से सौभाग का आना 94
18. पहाड़ी झरने से बहते डॉ. नेगी 101
19. एनजीओ वाला प्रवीण 125
मजिस्ट्रेट
20. जोनल-मजिस्ट्रेट 131
21. पोकेट मजिस्ट्रेट (वर्लनेबल) 136
बचपन और समाज
22. माँग्या कपड़े 143
23. काली ताणी 147
24. बचपन के खेल 150
25. मेड़ी वाले नाना जी और दादा जी के पाश्‍‍‍र्व में 153
26. दादा जी दादी के बिना 157
यात्रा वृत्तान्त
27. समन्दर किनारे दमन 163
28. जहाँ कविता साकार होती है 167
29. नैनीताल यात्रा 176
30. बीचों में बीच बागा बीच 179
31. जेएनयू में दो दिन 197
टिप्पणियाँ 202

पुस्तक में व्यक्ति के साथ-साथ समग्र समाज अन्तर्निहित है। समय-समय पर मेरे द्वारा की गयी यात्रायें हैं तो यादों में बसे संस्मरण हैं। घटनायें नहीं स्थान या व्यक्ति है। स्थान जो देखे गये हैं वे यात्रा-वृत्तान्त में हैं तो व्यक्ति है जो संस्मरण रूप में है। वे जो मानस पर छाये रहे हैं। ऐसे व्यक्ति जिनसे जीवन के चौराहों पर यकायक मुठभेड़ हो जाती रही है। रचना के बतौर मैं संस्मरण कहना चाहूँगा। ये कहीं यात्राओं में हैं तो कहीं रिपोर्ताज के रूप में दिखाई देंगी।
कथा-साहित्य विविध रूप में हर वर्ष जितना सामने आ जाया करता है उतने संस्मरण नहीं आते हैं। जबकि कुछ पाठक कथेतर गद्य में यात्रा-वृत्तान्त व संस्मरण ही पढ़ना चाहते हैं। वे जो जहाँ जा नहीं सकते हैं या उन स्थलों तक पहुँच नहीं सकते हैं, वे उनसे गुजरकर महसूस कर सकेंगे तो ऐसे व्यक्ति जो हमें जीवन का पाठ सिखा सकते हैं, ऐसे पात्र हमें स्मृति में याद रह जाते हैं। इनके अलावा ऐसे अन्दरखाने हैं, जहाँ तक पाठक की पहुँच नहीं हो सकती है, लेखक के माध्यम से वहाँ हो सकता है। विनोद कुमार का उपन्यास–‘मिशन झारखंड’ पढ़कर पाठक दंग रह जाया करता है कि किस तरह चुनाव के खत्म होने से लेकर मुख्यमन्त्री बनने तक की प्रक्रिया को पाठक हू-ब-हू जैसे रू-ब-रू हो जाता है। वह उस अन्दरखाने तक किसी भी तरह से नहीं पहुँच सकता है, वहाँ का नजारा विनोद कुमार के पत्रकार रहने से आम जनता को मिल पाता है। ऐसे ही कुछ अन्दरखाने हैं, इन्हीं में से एक है–चुनाव। चुनावी मशीनरी का सच जिसे पाठक यहाँ पढ़कर रू-ब-रू हो सकेगा।
देश अब चुनावों का दंगल नहीं हो चला है? ज्योंहि चुनाव होते हैं त्योंहि सबकी निगाह कुछ नेताओं पर जा टिकती है। जनता नहीं जान पाती है कि चुनाव सम्पन्‍न करने में सरकार की बहुत बड़ी मशीनरी लगती है, हजारों कर्मचारी रात-दिन काम करते हैं। चुनावी दंगल में चुनाव आयोग से लेकर बूथ अधिकारी तक तो बूथ अधिकारी से लेकर जिलाधीश तक कई तरह के कर्मी भूमिका निभाते हैं। ऐसे में जोनल मजिस्ट्रेट, पर्यटक और परिसर के बतौर अन्दरखाने का सच जिस तरह देखा, महसूस किया वह भी इस रचना में शामिल है। बाकी पाठक स्वयं पुस्तक से गुजरकर ही जान सकेंगे कि मेरा अनुभव उन्हें कितना और किस तरह दिखा पाता है और कितना भिगोता है।

रमेश चन्द मीणा

Additional information

Weight 350 g
Dimensions 10 × 6.5 × 1 in
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