Author(s) — Thumbom Riba ‘Lily’
लेखक – तुम्बम रीबा ‘लिली’
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 120 Pages | Hard BOUND | 2020 |
| 5.5 x 8.5 Inches | 400 grams | ISBN : 978-93-86835-92-5 |
पुस्तक के बारे में
‘काताम’ एक प्रयास है, बचपन से अपनी माता–पिता, नानी-दादी और मौसियों से सुनी हुई लोककथाओं को पुस्तक के रूप में सँजोये रखने का। आज की पीढ़ी को अरुणाचल प्रदेश की संस्कृति व लोककथाओं के बारे में वाकिफ कराने का। क्योंकि आज के व्यस्ततम ज़िंदगी में जब दुनिया मुट्ठी में, मोबाइल फोन और WhatsAap तक ही सिमट आई है, ऐसे में लोककथाएँ और कहानियाँ सुनाने और सुनने की विधियाँ लगभग विलुप्त होने लगी हैं। हम अपनी परंपरा और संस्कृति से कटते जा रहे हैं। हम अपनी परंपरा और संस्कृति से कटकर, अपने अस्तित्व को भुला बैठते हैं। आधुनिकता के नाम पर गुमराह हो जाते हैं। जब तक हम अपनी जड़ों से जुड़े रहेंगे, चाहे हम दुनिया के किसी भी कोने में रहें, हम अपना अस्तित्व कायम रख पाएँगें। इस लोककथा संग्रह में कुल बीस लोककथाएँ हैं, जो हमारे राज्य और पूर्वजों से जुड़ी हुई हैं। जिनमें प्रमुख हैं आदिम पूर्वज़ आबो तानी, मोपीन देवी, आन्यी पिंकू – पिंते आदि। मुझे आशा है कि शीर्षक के अनुरूप ‘काताम’ पाठकों को कुछ रोचक ढंग से हमारी अनोखी संस्कृति और परंपरा से रूबरू कराएगी। ‘काताम’ का अर्थ ही होता है राह दिखाने वाला। इसलिए यह सबका ध्यानाकर्षित करके, अपनी लोककथाओं रूपी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षण करने में हमें जागरूक और सचेत करेगी। साथ ही हमारे आधुनिक युवा पीढ़ी और आने वाली पीढ़ियों के मन में भी अपनी संस्कृति के प्रति लगाव उत्पन्न करेगी। क्योंकि, कहते हैं न— ‘Loss of culture is loss of identity.’
— इसी उम्मीद के साथ आपकी अपनी ही ‘तुम्बम रीबा जोमो ‘लिली’
हमारे अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ी स्त्रियों के कोमल हाथ दिन-भर खेतों में कठिन श्रम करते तो फिर सुबह-शाम घर में रसोई में बर्तनों में गूँज पैदा करते हैं तो कभी बुखार से तपती माथाओं पर शीतल कोमल मरहम में तब्दील हो जाते हैं। इन स्त्रियों के हथेलियों पर कोई मेहँदी नहीं सजती बल्कि छाले और घुट्टे शोभा देते हैं। आज भी स्थिति नहीं सुधरी है, पितृसत्तात्मक समाज़ में इन्हें अपने ही घर में अपने भाइयों से कमतर समझा जाता है। परिवार में पिता या पति की मौत हो जाने पर सारी पैतृक सम्पत्ति का उत्तराधिकारी भाइयों या बेटों को बना दिया जाता है। जबकि क़ानून की किताबों में उनके लिए प्रॉपर्टी राईट या सम्पत्ति अधिकार की व्यवस्था है। पर आज तक मैंने यहाँ की स्त्रियों को, बहनों को अपने भाइयों; बेटियों को अपने पिता और परिवारवालों से सम्पत्ति के लिए लड़ते हुए कभी नहीं देखा। ऐसा समाज जहाँ आज भी बहुपत्नीवाद का बोलबाला है वहाँ विवाह के बाद इनमें से कइयों को अपने पति के प्यार के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। यही नहीं, नारी के जिम्मे तमाम कर्तव्यों की बात होती है, पर जब उनके अधिकार की बात आती है तो लोगों में चुप्पी छा जाती है पर इससे क्या? नारी ने तो बस देना और देना ही सीखा है, कभी अपने लिए लेना नहीं। इनकी इन महान क़ुर्बानियों को कोई देखे न देखे पर हम नारी ज़रूर देख और समझ सकती हैं। नारी सशक्तीकरण का अर्थ यह नहीं है कि नारी को केवल शारीरिक तौर पर ही सशक्त बनाना, बल्कि उसका एक तरीका यह भी है कि नारी के प्रति लोगों के दॄष्टिकोण में एक सकारात्मक और खूबसूरत बदलाव लाना। जी हाँ!
… इसी पुस्तक से…
अनुक्रम
- भूमिका– मेरी रचना मेरा संसार
- मोपीन (गालो लोककथा)
- दियी तामी और रोसी तामी (गालो लोककथा)
- ताई बीदा और मिथुन (न्यिशी लोककथा)
- तापो और याकि (गालो लोककथा)
- न्यिकाम पिर्बो (गालो लोककथा)
- तानी और तारो (गालो लोककथा)
- देगोक गोक देगोक गोक (गालो लोककथा)
- आबो तानी का विवाह (गालो लोककथा)
- दोन्यी मुम्सी (तागी न्यिशी लोककथा)
- निदुम और निगुंम (गालो लोककथा)
- लिंगो तापो (गालो लोककथा)
- तेरी आने (गालो लोककथा)
- देबो कोम्बो (गालो लोककथा)
- कोको रे क़ो (गालो लोककथा)
- रिली दुम्ची (गालो लोककथा)
- बोगुम होत्तुम और दोम मिरा (गालो लोककथा)
- लूरुम बर्ज (न्यिशी लोककथा)
- जोम्बी (तवांग की लोककथा)
- तित्तिमिरी (आदी लोककथा)
- पर्वतों का निर्माण (आदी लोककथा)