Kachra Factory (Collection of Short Stories)
कचरा फैक्ट्री (कहानी संग्रह)
₹200.00 ₹180.00
10 in stock
Author(s) — Ashok Kumar
| ANUUGYA BOOKS | HINDI| 151 Pages | PAPER BOUND | 2019 |
10 in stock
Description
लेखक के बारे में
अशोक कुमार
1951 में जन्में, झाँसी में पले बढे, अशोक कुमार ने बी.एससी. के बाद लन्दन जा कर टीवी प्रोडक्शन/ डायरेक्शन के कोर्स किये और उसी दौरान बीबीसी के लिए भी काम किया। लन्दन में इनका मन नहीं लगा। 1974 में ये वापस आ गए और दिल्ली टीवी (तब दूरदर्शन नहीं था) में प्रोडूसर हो गए। वहां से ये पूना फिल्म संस्थान में फैकल्टी के बतौर बुला लिए गए। वहां से दो साल बाद 1977 में ये बंबई आ गए जहाँ ये बीआर एड्स में जनरल मैनेजर हो गए। 1984 में इन्होने अपनी प्रोड्कशन कंपनी-इनकॉम-शुरू की। इस कंपनी में इन्होने पैराशूट, ओनिडा, गुड नाईट, कैडबरी’स जैसी जानी मानी कंपनियों के एड्स बनाये और तमाम वृत्त चित्र भी बनाये। भारत में महारानी लक्ष्मीबाई पर एक घंटे की फिल्म बनाने वाले अशोक कुमार एकमात्र प्रोडूसर/डायरेक्टर हैं।
अशोक कुमार टीवी चैनलों में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे हैं। माइका अहमदाबाद में मीडिया के प्रोफेसर रहे हैं तथा रामोजी यूनिवर्स में एडवरटाइजिंग क्रिएटिविटी के प्रोफेसर रह चुके हैं।
ये टाइम्स ऑफ़ इंडिया तथा जनसत्ता के मीडिया कलुमनिस्ट रहे हैं तथा दो बार अंतर्राष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में सिलेक्शन समिति मेंबर रह चुके हैं।
इनके दो उपन्यास-‘दुनिया फिल्मों की’ तथा ‘इंस्टिट्यूट’ प्रकाशित हो चुके हैं तथा हिंदी-उर्दू और इंग्लिश में ये सामान रूप से लिख रहे हैं। इनकी कहानियां , कवितायें तमाम पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। ई-मेल : kumar_incomm@ yahoo.co.uk
पुस्तक के बारे में
यह पुस्तक लघु कहानियों का संकलन है। इसकी अधिकतर कहानियां जानी मानी हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। संकलन की सभी कहानियां इशू बेस्ड हैं। इशू जो हमारे इर्द गिर्द के हैं और किसी भी संवेदनशील व्यक्ति को प्रभावित करते हैं, सोचने पर मजबूर करते हैं और बहुतों को कुछ करने/ सुधारने के लिए प्रेरित भी करते हैं। इशू केवल वे नहीं होते जो दीखते हैं, इशू वे भी होते हैं जो अ-लिखित अस्पष्ट रूप से समाज में व्याप्त हैं और केवल आत्मनिरीक्षण द्वारा ही महसूस किये जा सकते हैं, समझ में आते हैं। अक्सर हम जो कह रहे होते हैं उसी के अंदर जो बात अनकही होती है या निहित होती वो कहे हुए शब्दों से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण होती है। कहानी / कविता यदि उस निहित भाव को पकड़ कर पैदा होते/चलते है तो प्रभावशाली भी होते हैं, अपने को पढ़वा भी लेते हैं और पाठक पर असर भी डालते हैं। मेरे ख्याल से अच्छी कहानी की शर्त ये भी है कि वह मह्सूसात से जन्म ले, ढोंग का या ओढ़ा हुआ लेखन कभी असरदार नहीं हो सकता। इस पुस्तक ‘कचरा फैक्ट्री’ की सभी कहानियां किसी न किसी इशू पर आधारित होने के साथ साथ मह्सूसात द्वारा जन्मीं हैं। लेकिन वो कहानी भी क्या कहानी जो अपने को पढ़वा न ले और अपने को पढ़वाने के लिए कहानी की पहली शर्त है कि वह पाठक को पसंद आये, रोचक लगे, चित्तरंजक लगे। मुझे आशा है की इस संकलन की सभी कहानियां पाठकों को पसंद भी आएंगीं और उनके मन को उद्वेलित भी करेंगीं। इसी आशा के साथ।
— अशोक कुमार
विषय सूची
भूमिका
कचरा फ़ैक्ट्री
साइबरेटी
ट्रायल
छत
सड़क
बेटा! ऐ बेटा…! सुनो तो…
चढ़ती-उतरती नस
को जाने कौन भेस नारायन!
मानो तो वो देव
राजनीति के साइड इफेक्ट्स
गेम्स
हीरोइन सुनन्दा
आत्म-हत्या
अपना अपना शून्य