Author(s) — Sunita Gupta
लेखिका — सुनीता गुप्ता
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 344 Pages | Hard BOUND | 2020 |
| 5.5 x 8.5 Inches | 450 grams | ISBN : 978-93-89341-01-0 |
जैनेन्द्र (1905-1988) (मूलनाम आनन्दीलाल) हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित एवं विवादित नामों में से एक है। यद्यपि मूल्यों के रूढ़ अर्थ के साथ जैनेन्द्र की संतति कठिन जान पड़ती है किन्तु इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता इस धारणा से टकराना है। यह पुस्तक इस बात की पड़ताल करती है कि जैनेन्द्र किस प्रकार मूल्यों से मुक्त होते हुए बल्कि कहें कि परम्परागत मूल्यों से मुक्त होते हुए नए व्यक्तिगत मूल्य गढ़ रहे हैं। उनके आरम्भिक लेखन में इन व्यक्तिगत मूल्यों का अस्तित्व एक विस्फोटक के रूप में अधिक दिखाई पड़ता है। बाद में वे इसे अपने पात्रों के सहज क्रियाकलापों से सूक्ष्म रूप में भी संकेतित करते हैं। अपने रचनाकर्म के उत्तराद्र्ध में जैनेन्द्र अधिक समाजोन्मुखी हो जाते हैं जो उनके पूर्वाद्र्ध के ‘जैनेन्द्र’ होने के आस्वाद को थोड़ा कम-सा करता है। राजनीति में नए मूल्य बोध के साथ उतरा ‘जयबद्र्धन’ नए मूल्यों की जो आशा जगाता है उसमें यथार्थपरक क्रियान्वयन थोड़ा कठिन भले भी मालूम होता है। किन्तु उसमें असहयोग आन्दोलन में सक्रिय कार्यकर्ता रहे जैनेन्द्र के अनुभव भी हैं। इसी तरह स्त्री सम्बन्धी उनकी नई सोच एक ठोस क्रांतिकारी स्त्री को गढऩे में कितनी सफल या असफल है, यह पुस्तक इससे भी जूझती है। जैनेन्द्र के उपन्यास मानव जीवन की सार्थकता की चिन्ता करते हैं। डॉ. धर्मवीर भारती के शब्दों में कहें तो “सार्थकता का पहलू सबसे बड़ा मानव मूल्य है।’’ हम चाहे जिस युग में जैसी भी जटिलताओं को जिये हमारे सुखों-दुखों, आशाओं-निराशाओं, निर्माणों-ध्वंसों की परिभाषा और प्रयुक्ति तत्कालीन मूल्यों को साथ ले या उनसे लड़-भिड़ कर ही आगे बढ़ती है। जैनेन्द्र का साहित्य, विशेषकर उनके उपन्यास इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं और यह पुस्तक विस्तारपूर्वक इसका विश्लेषण करती है। पुस्तक की पठनीयता इसका एक और आकर्षण है। प्रथम द्रष्टया जैनेन्द्र के पात्र वाह्य जगत एवं उसकी परिस्थितियों से निरपेक्ष तथा अपनी आन्तरिक गति से संचालित दिखाई पड़ते हैं। जैनेन्द्र अपने लेखन में पात्रों की भीड़ भी नहीं लगाते। नितान्त वैयक्तिकता से परिचालित दिखने वाले ये पात्र एक आस्था से जुड़े हुए हैं। एकबारगी यह ‘आस्थाÓ शब्द कानों को भले ही सहज लगे किन्तु साहित्य का प्राण यह आस्था ही है। समाज को और सुन्दर बनाने की आस्था ही साहित्य कर्म का मुख्य उद्देश्य है, कहना न होगा कि इस बिन्दु पर जैनेन्द्र का साहित्य त्रुटिहीन और अत्यन्त प्रासंगिक है।
—प्रो. रूपा गुप्ता, वर्धमान विश्वविद्यालय, प. बंगाल
व्यक्तिगत प्रतिष्ठागत मूल्यों की अभिव्यंजना जैनेन्द्र के उपन्यासों में सर्वत्र विद्यमान है। अपने पात्रों की व्यक्तिगत-प्रतिष्ठा के चरम मूल्यों की स्थापना का मूल केन्द्र ‘अहं’ को स्वीकार करते हुए उन्होंने समाज, परिवार तथा संस्कृति के विविध आयामों से व्यक्ति की विद्रोही चेतना का आकलन किया है। इस विद्रोही चेतना में ही प्राय: उन्होंने परम्परागत मूल्यों के स्थान पर नवीन मूल्यों की स्थापना की है। वैयक्तिक धरातल पर स्त्री-पुरुष के दो भिन्न क्षेत्रों का विवेचन जैनेन्द्र के उपन्यासों में उपलब्ध होता है, जिसमें नारी-चरित्र को अधिक विशिष्टता के साथ उद्घाटित किया गया है। जैनेन्द्र के नारी-पात्र उद्दाम वैयक्तिकता के स्तर पर नैतिक विद्रोह से सृजित हैं। वे रूढिग़्रस्त परम्पराओं के विरुद्ध हैं। आर्थिक स्वतन्त्रता के दृष्टिकोण से मूल्य निर्धारण की स्थिति (कल्याणी) और राजनीति का व्यक्ति के सीधे सम्पर्क की परिणति (सुखदा) आधुनिक युगीन चिन्तन की देन है, जो जैनेन्द्र के उपन्यासों में मूल्यों के अपसरण और अनुसरण के अन्तर्विरोधी तत्त्वों के अनुसन्धान की क्रान्तिकारी प्रतिक्रिया के रूप में परिलक्षित होता है (जयवद्र्धन, मुक्तिबोध)। जैनेन्द्र के उपन्यासों में व्यक्ति मूल्यों की स्थापना का क्षेत्र नैतिकतावादी मूल्य है, जिसमें शरीर समर्पण के नव-मूल्यों का विस्फोट (‘सुखदा’, ‘अनन्तर’ आदि), ‘पापा’ के अध्यात्मवादी मूल्य की आत्म-स्वीकृति के भय से कम्पित हो उठता है (‘अनन्तर’, ‘दशार्क’)। वस्तुत: जैनेन्द्र ने हिन्दी उपन्यास साहित्य को परम्परागत मूल्यों के अवमूल्यन की संक्रान्त स्थिति में नये मूल्यों के सृजन को नवीन दिशा देते हुए मानववादी चेतना को व्यापक फलक प्रदान किया है।
अनुक्रम
- भूमिका
- जैनेन्द्र का व्यक्तित्व, कृतित्व एवम् उनका युग
- मूल्यों का स्वरूप-हेतु, प्रयोजन और सैद्धान्तिक विवेचन
- जैनेन्द्र की चिन्तन दृष्टि एवं विभिन्न प्रभाव
- जैनेन्द्र के उपन्यासों का मूल्यगत अनुशीलन
- जैनेन्द्र के उपन्यासों का शिल्प विन्यास
- समसामयिक उपन्यासकार और जैनेन्द्र कुमार
- जैनेन्द्र के उपन्यासों की मुख्य स्थापनाएँ
- सहायक ग्रन्थों की सूची