Description
…पुस्तक के बारे में…
‘इस छुपी हुई खिड़की में झांको’ उपन्यास में आधुनिक श्रीलंका के कोलम्बो शहर में घटित होने वाले उत्कट प्रतिशोध की ऐसी कहानी बयान हुई है जो चार पात्रों के जीवन को हिला कर रख देती है। ये हैं एयरलाइन ग्राउंड होस्टेस और उसका मानव संसाधन प्रबंधक पति, और दूसरे पात्र हैं नृत्य शिक्षिका और उसका संगीतकार पति। बीच-बीच में रिश्तों की क्षति और दर्द की विभिन्न कहानियाँ भी एक अकथनीय तरीक़े से उपन्यास का हिस्सा बनी हैं। विहंगम दृश्यों की सिनेमाई तकनीक की मदद से कथानक दिखाता है कि विभिन्न सामाजिक वर्गों और पृष्ठभूमि के लोग एक दूसरे से कैसे मिलते हैं और अनजाने में, एक दूसरे से संवाद किए बिना, उनके भविष्य को किस तरह बदल डालते हैं। यह उपन्यास, जो श्रीलंका के समकालीन जीवन की बारीकियों को उजागर करने का एक प्रयत्न है, हमें हारुकी मुराकामी द्वारा रचित ‘आफ़्टर डार्क’ की कथा शैली की याद दिलाता है।
…इसी पुस्तक से…
उपन्यास ‘इस छुपी हुई खिड़की में झाँको’ में दृश्य चलचित्र के दृश्यों की भाँति बदलते हैं। अगर हम इसके शीर्षक के शब्दों के आधार पर व्याख्या करें, तो इसमें हमें देखने में सामान्य लोगों के जीवन के विभिन्न रूपों की झलकियाँ मिलती हैं, जिससे यह अहसास होता है कि उनका जीवन उतना सामान्य नहीं है जितना हम समझते हैं। सामान्य जीवन में अविच्छिन्नता सिर्फ़ ऊपरी होती है, लेकिन यथार्थ में वह टुकड़ों-टुकड़ों में ही बंटा होता है और जिया भी वैसे ही जाता है। इस उपन्यास के भी सभी पात्रों का जीवन खंडित है और उपन्यासकार उसे खंड-खंड में प्रस्तुत करता है। जैसे हमें अपना जीवन तर्क संगत नहीं लगता, मानो सब कुछ मात्र संयोग की बात हो, उसी प्रकार उपन्यास का आरम्भ और अन्त दोनों में ही संयोग है। पात्रों पर जो बीतती है, जो वे झेलते हैं, जिस पीड़ा का अनुभव करते हैं, मानो वह सब यूँ ही है, उसमें तर्क ढूँढ़ने में वह सक्षम नहीं। यह ज़िम्मेदारी पाठक पर छोड़ी जाती है कि वह इन खंडों को जोड़कर क्या निष्कर्ष निकालता है। लेखक ने इस उपन्यास की संरचना या डिज़ाइन भी ऐसा ही किया है, क्योंकि वह इसके द्वारा पूरी तरह से जीवन का विखंडन, विचलन और संघर्ष व्यक्त करना चाहता है। यह हमारी पोस्ट-मॉडर्न, उत्तराधुनिक स्थिति है, जहाँ मनुष्य अपनी निश्चितताओं और स्थिरताओं को खो देने के बावजूद अपनी आत्मा को जीवित रखने के लिए संघर्ष करता रहता है।
पाठक की जिज्ञासा बनाए रखने के लिए, उसे एक पात्र की गतिविधियों की झलक मिलती है, और वह जब उसमें लिप्त होने लगता है तो दृश्य किसी दूसरे पात्र की ओर मोड़ दिया जाता है। यह लगभग एक खेल की तरह है। श्रीलंका में संघर्ष की पृष्ठभूमि में असमानताओं, असमान शक्ति संरचनाओं, लिंग शोषण, ग़रीबी, छात्र-राजनीति और टूटते आदर्श, सब समकालीन स्थितियों में निहित हैं जिनके लिए न ही कोई समाधान प्रस्तुत किया गया है और न ही उनसे उबरने की कोई आशा दिखाई गयी है।
…इसी पुस्तक से…