Description
#अजित चुनिलाल चव्हाण
अजित चुनिलाल चव्हाण : जन्म : नन्दुरबार (महाराष्ट्र) l शिक्षा : एम.ए., पीएच. डी. l प्रकाशन : 1. कहानीकार महीप सिंह : संवेदना और शिल्प; 2. भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य में व्यंग्य; 3. क्रान्तिसूर्य (मराठी) सम्पादित पुस्तक; l 4. आम आदमी की कविता (कविता-संग्रह) l इतर : 1. आकाशवाणी केन्द्र, जलगॉंव से काव्य, कहानी पाठ; 2. समाचार-पत्रों में लेखन; 3. अनेकानेक पत्रिकाओं में शोधालेखों का प्रकाशन; 4. अनेक संगोष्ठियों में सक्रिय सहभाग, शोध-निबन्धों का पठन; 5. राष्ट्रीय सेवा योजना, स्थानीय इकाई भू-कार्यक्रम अधिकारी l सम्प्रति : सातपुड़ा शिक्षा प्रसारक मंडल, विद्यावाडी, धुले संचालित वसन्तराव नाईक कला, विज्ञान एवं वाणिज्य महाविद्यालय, शहादा, जि. नन्दुरबार (महाराष्ट्र) l सम्पर्क : ‘श्री हेरम्ब’, प्लॉट नं. 17/ए, सरस्वती कालोनी, साईंबाबा नगर के पास, शहादा-425409, जि. नन्दुरबार (महाराष्ट्र)।
पुस्तक के बारे में
बचपन में घर के आँगन में खड़ी बैलगाड़ी से वह सहज ही लटकी हुई झूल रही थी। बैलगाड़ी का जूआ-जू पत्थर पर रखा हुआ था। उसे मात्र पत्थर के सहारे टिकाया गया था। लेकिन सोनाली लटकी होने से जूए को झटका लगा और वह अपनी जगह से खिसक गया। इससे बैलगाड़ी सोनाली की पीठ पर आ गिरी। कोमलांगिनी सोनाली इस अचानक से हुए प्रचंड आघात को सहन नहीं कर पायी। वह पीड़ा और दर्द से कराही, चीखी-चिल्लायी। परिवार के सदस्य उसकी आवाज सुन दौड़ते हुए घर से बाहर आये। बैलगाड़ी को उठाकर दूर कर उन्होंने सोनाली को बाहर निकाला। लेकिन तब तक नियति अपना दॉंव खेल चुकी थी। उसे करीब के ही बत्तीस शिराला नामक गॉंव के अस्पताल में ले जाया गया। अस्पताल ग्रामीण क्षेत्र में होने से बहुत हद तक जरूरी इलाज हो पाना शायद सम्भव नहीं हो पाया। इसलिए सोनाली को वहॉं से मिरज के एक अस्पताल में ले जाया गया। डॉक्टरों ने पाया कि पीठ पर हुए आघात से रीढ़ की हड्डी के साथ मज्जारज्जु में भी चोट लगी है। इस सब में यह कम था कि उसकी आँख भी थोड़ी चोटिल हो गयी थी। सोनाली जब होश में आयी तब वह न तो ढंग से बैठ पा रही थी, न ही सो पा रही थी। फिर डॉक्टरों की सलाह पर सोनाली की रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन किया गया। लेकिन इससे भी उसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। इस कारण उसे मुम्बई ले जाया गया। अस्पताल में साल-भर फिजिओथेरेपी, दवाइयॉं और अनेक प्रकार के प्रयासों के बाद भी उसके पैरों में ‘जान’ नहीं आयी। अब तक का सारा खर्च जाया हो गया। परिवार के सदस्य भी शायद मानसिक रूप से हतबल-कमजोर पड़ गये थे। हारकर फिर से सोनाली को बत्तीस शिराला लाया गया। अब शायद उसे ऐसे ही जीना था। इस स्थिति में भी उसके मन में पढ़ने की तीव्र इच्छा थी। स्कूल में उसका पहला दिन था। लेकिन कपड़े खराब हो जाने से किसी ने अनजाने में उसका मजाक उड़ाया। इस घटना से दु:खी हो उसने स्कूल न जाने का निश्चय कर लिया।
…इसी पुस्तक से…