Editor(s) — Ravindra Gasso
सम्पादक — रविन्द्र गासो
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 158 Pages | 2022 | 6 x 9 inches |
| available in HARD BOUND & PAPER BACK |
₹190.00 – ₹350.00
| available in HARD BOUND & PAPER BACK |
…गुरु नानक देव जी ने भक्ति की सम्पूर्णता, प्रभु-नाम की निरन्तरता और चित्त (मन) की एकाग्रता दृढ़ करवाने के लिए रागों पर आधारित वाणी का उच्चारण किया और उसका गायन किया। संगीत के सुरों में जब धुर की वाणी (गुरवाणी) रूपी पदार्थ डाला जाता है तो वह मनुष्य के मन को इस प्रकृति के कर्ता परमात्मा से मिलाप करा देता है। संगीत, हर व्यक्ति की सुरति को गुरवाणी के शब्दों के साथ जोड़ने का माध्यम है।
गुरु नानक देव जी द्वारा रचित रागात्मक वाणी ने, सुर और सुरति के संगम अर्थात् कीर्तन ने सज्जन ठग पर ऐसा वार किया कि उसके अन्तर्मन का ठग मर गया। कौड़ा राक्षस पर इस कीर्तन ने ऐसा प्रभाव डाला कि वह देवता-पुरुष बन गया। वली कन्धारी के अहंकार पर इस कीर्तन ने ऐसी चोट मारी कि उसका घमंड मटियामेट हो गया। गुरु नानक देव जी द्वारा रचित वाणी ने सुर और सुरति के मिलाप के साथ ऐसा कमाल दिखाया जो इस दुनिया के घातक हथियार भी नहीं दिखा सकते। गुरु जी जब भी भाई मरदाना जी को कहते, “मरदानिया! छेड़ रबाब, कोई सिफ्त खुदा के दीदार की करें” तो मरदाना जी रबाब बजाना आरम्भ करते और गुरु जी के मुखारविन्द से इलाही-वाणी का गायन शुरू हो जाता, जिससे भटके मन प्रभु, परमात्मा के चरणों में लीन हो जाते। गुरु जी द्वारा आरम्भ किया हुआ कीर्तन का दरिया कपटी मनों की मैल उतारता हुआ ईर्ष्या-द्वेष की भावना को समाप्त करता हुआ, सदियों से लगातार चल रहा है और आने वाले युगों तक चलता रहेगा। गुरु जी द्वारा अपनी रचित वाणी उन्नीस (19) रागों में है जिसको अलग-अलग अवस्थाओं में निर्धारित समय पर गाया जाता है जिसका सीधा असर मनुष्य के मन पर ही पड़ता है। हर मनुष्य का मकसद गुरवाणी के शब्द के साथ जुड़ने का है जो कि असल प्रभु-ज्ञान है, जिससे हर कोई परमात्मा का अहसास, प्रेम-भाव और प्रेम-रस प्राप्त कर सकता है।
गुरु नानक देव जी द्वारा रचित सारी-की-सारी वाणी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में दर्ज है और यह वाणी काव्य-रूप में है। इस धार्मिक ग्रन्थ में गुरु अर्जुन देव जी को छोड़ आपके द्वारा रचित और दर्ज वाणी सबसे ज्यादा है।
…इसी पुस्तक से…
गुरु नानक देव जी की नेपाल यात्रा के समय नेपाल एक हिन्दू राष्ट्र के रूप में विश्व में चर्चित था। यहाँ शाह वंश के राजाओं का शासन था। शाह वंश के प्रथम शासक जिन्होंने टुकड़ों में बँटे राज्यों का एकीकरण कर बृहतर नेपाल देश का रूप दिया था, पृथ्वीनारायण शाह थे। राजा पृथ्वीनारायण शाह गोरखनाथ के शिष्य थे। पशुपतिनाथ हिन्दुओं का पवित्र तीर्थधाम है और नेपाल के इष्ट देव कहे जाते हैं। आज भी यह तीर्थस्थल पूर्व की भाँति गरिमामय है और प्रत्येक धार्मिक हिन्दू की पशुपतिनाथ के दर्शन की अभिलाषा जीवन में रहती है। एक घटना है, जब गोरखों ने सेनापति अमर सिंह थापा के नेतृत्व में हिमाचल के काँगड़ा दुर्ग को घेर लिया था तो राजा संसार चन्द कटोच ने पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह को पत्र लिखकर मदद माँगी थी कि– “महाराज! आप गुरु नानक देव जी के शिष्य हैं, मुझे गोरखनाथ के शिष्यों ने घेर रखा है, कृपया मेरी मदद करें।”
नेपाल उस समय नाथ योगियों का गढ़ था। गुरु नानक देव जी ने नाथपन्थी जोगियों को बड़ी ईमानदारी से समझाया कि धार्मिक जिन्दगी के दायित्वों को महसूस करो, अज्ञान में पड़े हुए लोगों के दु:ख को समझो। इस तरह गुरुनानक देव जी ने उन्हें धर्म के दार्शनिक पक्ष पर एकता स्थापित करने तथा समाज में सामाजिक भेदभाव को मिटाने के लिए अच्छे ठोस कार्य करने की शिक्षा दी। जोगियों के प्रश्न पूछने पर गुरु नानक देव जी रुहानी सुर में जवाब देते थे जिससे नाथ जोगी निरुत्तर हो गये और उनके प्रशंसक बन गये। गुरु नानक देव जी ने उन्हें समझाया कि सिर मुँड़वाने की बजाये मन को मुँड़वाना चाहिए और जहाँ तक कपड़ों को त्यागने का सवाल है तो हमें मोह-माया व अहंकार का त्याग करना चाहिए। उन्होंने व्याप्त अन्धविश्वास, वर्ण-व्यवस्था की ऊँच-नीच व छुआछूत आदि बुराइयों को हटाने को कहा। धर्म के नाम पर फैले पाखंडों को, बाहरी आडम्बरों से दूर रहने को कहा। उन्होंने कहा कि धर्म का कर्मकांडी रूप मानवता के विकास के लिए बाधक रहा है। गुरु नानक देव जी ने कहा कि अपने सम्बन्धियों की आत्माओं की शान्ति के लिए ईमानदारी से कमाई करो।
गुरु नानक देव जी ने कहा कि योग की वास्तविक युक्ति माया में रहकर भी माया से निर्लिप्त रहने में है। मात्र कोरी बातों से योग की प्राप्ति नहीं होती है।
…इसी पुस्तक से….
Weight | 400 g |
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Dimensions | 9 × 6 × 0.5 in |
Binding Type |