Author(s) — Jitendra Verma
लेखक – जीतेन्द्र वर्मा
Girne Wala Bunglow aur anya Katha Sahitya
गिरने वाला बंगला एवं अन्य कथा साहित्य
₹144.00 – ₹240.00
| ANUUGYA BOOKS | BHOJPURI | 100 Pages | 2021 |
Description
पुस्तक के बारे में
हिंदी की निर्मिति और समृद्धि में जनपदीय भाषाओं-बोलियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। जीतेन्द्र वर्मा उन गिने-चुने लेखकों में हैं, जिन्होंने भोजपुरी और हिंदी में समान रूप से रेखांकित करने योग्य लेखन किया है। प्रस्तुत संग्रह में उनकी छः कहानियाँ और एक लघु उपन्यास ‘सुबह की लाली’ संकलित हैं। इन रचनाओं में गाँव, कस्बे और शहर सब शामिल है और यही कारण है कि इनमें जीवनानुभवों का विस्तार व्यापक रूप से दिखता है। यहाँ कई विचलित करने वाले ऐसे प्रसंग भी हैं, जिनमें सामाजिक विषमताओं और जीवन की विसंगतियों को लेखक ने अपने रचनात्मक कौशल से मर्मस्पर्शी बना दिया है। जातिदंश हमारे समाज का एक ऐसा यथार्थ है, जिसके कारण मनुष्य से मनुष्य के संबंध निरंतर छीजते गए हैं। इन छीजते सम्बन्धों की कथा कहते हुए जीतेन्द्र वर्मा यथार्थ को देखने और परखने की नई दृष्टि देते हैं।
लघु उपन्यास ‘सुबह की लाली’ पाठकों को एक ऐसे संसार में ले जाता है, जहाँ जीवन के यथार्थ के बीच कई अन्धेरे कोने हैं, जिसे लेखक अपनी रचनात्मकता के सहारे दीप्त करता है और पाठकों के लिए सर्वथा नए सत्य को उद्घाटित करता है। जीतेन्द्र वर्मा के गद्य में भोजपुरी के पद और मुहावरे उनकी भाषा को संप्रेषणीय बनाते हैं। भोजपुरी के आंतरिक लय से इन रचनाओं की भाषा समृद्ध हुई है।
– हृषीकेश सुलभ
(कथाकार, नाटककार और रंगचिंतक)
शहर में पढ़ने वाले लड़के के चेहरे का रंग बदला। उसने सात पुश्तों की गाढ़ी कमाई लूटने के दर्द-भरे स्वर में कहा–“मुझे यह भी पता चला है कि उसकी नौकरी आरक्षण से नहीं हुई है। वह अपने मेरिट से चुना गया है।”
इस नए रहस्योद्घाटन से सबको मानो बिजली छू गई। बाबू साहेब को लगा कि अब यह बंगला गिरने ही वाला है। इसकी मजबूती पर बड़ा भरोसा था उन्हें। सभी की जबान पर जैसे लकवा मार गया हो। पुरोहित ने बात सँभाली– “सुनो बाबू! यह बात तुम अब किसी से मत कहना कि मंगरूआ का बेटा मेरिट से चुना गया है। नहीं तो, हम बड़े जातवालों की इज्जत चली जाएगी।”….
….“कबीर को नहीं देखा भाभी! कोई नहीं जातना था कि किस जाति, धर्म में पैदा हुए। मरने पर हिन्दू अपना कहते, मुसलमान अपना। जबकि दोनों को जुतियाया था कबीर ने। …असल चीज सत है, प्रेम है…”
… इसी पुस्तक से…
Additional information
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