Author(s) – Vishnu Nagar
लेखक — विष्णु नागर
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 216 Pages | PAPER BOUND | 2020 |
| 5.5 x 8.5 Inches | 400 grams | ISBN : 978-93-89341-29-4 |
…पुस्तक के बारे में…
गाँधी जी ने दलितों को ‘हरिजन’ कहकर संबोधित किया था। आजादी के दो-तीन दशकों में यह शब्द ‘दलितों’ के लिए प्रचलित रहा, लेकिन डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर के दलितों के प्रतीक बनते जाने के इन वर्षों में ‘हरिजन’ शब्द की जगह ‘दलित’ शब्द ने ले ली है। शायद ठीक हुआ क्योंकि गाँधी जी की तमाम उदारताओं के बावजूद– जो दलितों को ‘हरिजन’ कहने से व्यक्त होती है– ‘हरिजन’ शब्द जैसे उन्हें उपकृत करने वाला संबोधन है, उन्हें बराबरी का दर्जा देने वाला संबोधन नहीं। प्रश्न यह भी उठता है कि अगर दलित, ‘हरिजन’ हैं तो बाकी गैर-दलित क्या हैं? क्या वे ‘हरिजन’ यानी हरि के जन नहीं हैं? वैसे ‘दलित’ शब्द से भी मेरी पूरी सहमति नहीं है, इसके बावजूद कि हिंदू वर्ण-व्यवस्था में यह वर्ग हमेशा ‘दलित’ ही रहा है और अभी भी है लेकिन ‘दलित’ शब्द भी एक तरह से सवर्णों को ध्यान में रखकर गढ़ा गया शब्द है, हर तरह से उन्हें यह याद दिलाने के लिए बनाया गया शब्द है कि हम तुम्हारे द्वारा दलित किए गए हैं। मेरा ख्याल है कि इक्कीसवीं सदी में जिस तरह दलित पहले से अधिक संगठित और ताकतवर हो रहे हैं, जो उन्हें और भी होना चाहिए, उन्हें अपने लिए एक बेहतर शब्द चुनना चाहिए, जो उनके नये आत्म-विश्वास को प्रकट करे, जो सवर्णों को चेतावनी दे कि हम तुम्हारी बराबरी के इंसान हैं, किसी भी तरह तुमसे कमतर नहीं हैं, कम श्रेष्ठ नहीं हैं।
…इसी पुस्तक से…
मैं बचपन में धार्मिक था मगर चार दशक से अधिक समय से धार्मिक नहीं हूँ, लेकिन धर्म मेरा प्रिय विषय है। मेरी ‘ईश्वर की कहानियाँ’ पुस्तक सबसे चर्चित है और उसके कई संस्करण हो चुके हैं। मेरी कविताओं और व्यंग्यों का विषय भी अनेक बार धर्म रहा है। लेखों का तो रहा ही है। इस पुस्तक में धर्म, पाखंड, सांप्रदायिकता के बारे में छपी खबरों और विचारकों के मतों के बहाने 2014-16 में लिखी गई डायरियों के माध्यम से धर्म की समसामयिक स्थिति पर टिप्पणियाँ हैं। दिनांक के अनुसार क्रम दिया गया है, इसलिए एक ही विषय पर टिप्पणियाँ अलग-अलग बिखरी हुई हैं। कहीं कुछ दोहराव भी मिल सकता है। उसे बर्दाश्त कीजिए। हिन्दी में कुछ धार्मिक खबरों का विश्लेषण कर उन पर टिप्पणियों के संकलन की यह शायद पहली ही ऐसी किताब हो। मैं नास्तिक हूँ लेकिन मेरी पत्नी धार्मिक हैं। उन्होंने जिस भी धार्मिक स्थल पर जाने को कहा, मैं उन्हें ले गया हूँ। इसलिए धर्म, पाखंड, सांप्रदायिकता सबको बचपन से अब तक अपने आँखों से देखने, महसूसने, विचलित होने के लगभग रोज ही अवसर आते रहे हैं। और एक नास्तिक की नजर से भी क्यों न देखा जाए धर्म को? सभी तरह की दृष्टियाँ आवश्यक हैं ताकि बहस का एक लोकतांत्रिक स्पेस बचा रहे, जिसकी आज बहुत जरूरत है। यह स्पेस लगातार सिकुड़ रहा है, इसलिए भी मेरे लिए इस हस्तक्षेप का महत्त्व है। यह कितना महत्त्वपूर्ण है या नहीं है, इसका मूल्यांकन करने की उतनी ही स्वतंत्रता आपको है।
…इसी पुस्तक से…
अनुक्रम
- भूमिका के बहाने
- लक्ष्मी और सरस्वती प्रसन्न
- नेमाड़े के बहाने हिंदू धर्म
- साईंबाबा निशाने पर
- मिथकों में जीते हिन्दू
- ईश्वर से दृढ़ रिश्ता
- साईं बाबा की पूजा
- किस विश्व का कल्याण?
- राहुल सांकृत्यायन और आचार्य नरेन्द्र देव
- लव जेहाद और हिंदू धर्म
- खाने-पीने का धर्म
- हिंदू धर्म में शोर
- प्रार्थना नहीं, भीख
- गाँधी जी की वेदना
- तर्क की भारतीय परंपरा
- धर्म और नैतिकता
- राष्ट्रवाद और तर्क
- बंकिम चन्द्र और धर्म
- दु:ख और भारतीय चिंतन
- भगत सिंह का धर्म
- गाँधीजी और हिंदू धर्म
- शवों के साथ नया व्यवहार
- अक्षय कुमार का देवी-दर्शन
- दास्य-भाव
- महात्मा गाँधी, अंबेडकर और हिंदू धर्म
- आरामदेह ताबूत
- राम-राम एक, राम-राम दो…
- गारंटीड समाधान
- इतिहास और हिन्दूवाद
- चमत्कारी गोगा
- क्या अंधविश्वास व्यक्तिगत मामला है?
- ईश निन्दा कानून
- धर्मग्रंथ के पाठ का आतंक
- हिन्दूवादी औपनिवेशिक चश्मा
एक लाख प्रतिशत ‘गारंटीड’ - मुख्यमंत्री का वास्तुविशेषज्ञ
- शांति पर्व का उपपाठ
- राशन कार्ड पर फतवा
- धर्म रक्षा की बर्बरता
- धर्म की ‘विधान-सम्मतता’
- ‘हिन्दू हित’ का अर्थ
- दूसरे धर्म में शादी की सजा
- पाखंड की भाषा
- मौलवी ही इस्लाम है?
- घृणा की वैधता
- पुरुष के ही आड़े क्यों आता है धर्म?
- धर्म में भी बड़े-छोटे
- अभिव्यक्ति में धर्म
- प्रलय की भविष्यवाणियाँ
- भूकंप और आस्था
- धर्म और कामेच्छा
- धर्म और स्वतंत्रता
- ईश्वर क्या ‘स्वार्थी’ है?
- मंदिर की मंडी
- धर्म और नैतिकता
- धर्म की पैकेजिंग
- भ्रष्टाचार और चढ़ावा
- धर्म और बाजार
- माता का ईमेल
- फिल्में और भाग्यचक्र
- संथारा की परम्परा
- मंदिर की संपत्ति
- अखबार और धर्म
- कार की गति से कथावाचन
- धार्मिक स्थानों के तोडफ़ोड़ की क्षतिपूर्ति
- हैप्पी बर्थ डे टू कृष्ण जी
- मंदिर का सामान
- प्रति-ब्राह्मणवाद
- गाय की मुस्लिम-विरोधी राजनीति
- अछूत के हाथ का भोजन
- जीवन ही धर्म है
- रतलाम की महालक्ष्मी
- पद और आस्था
- 1008 कुंडीय महायज्ञ
- भक्त आदेश नहीं मानते
- दीवारें और ब्रह्मज्ञान
- लाऊडस्पीकर और मुफ्ती
- अन्नकूट की लूट
- ‘समृद्धि’ के उपाय
- सलाम मंगल आरती
- गाय के खुर से
- अपमानित करने वाले धर्म
- स्त्री की ‘अपवित्रता’
- श्मशान-वैराग्य
- हिन्दू धर्म के ‘शॉर्टकट’
- निरीश्वरवादियों की गणना
- मुख्यमंत्री के हवन कुंड
- मंदिर का ड्रेसकोड
- स्त्री का मासिक धर्म
- पूजा और सूखा
- धार्मिक प्रॉडक्ट्स
- सिंहस्थ में साढ़े चार दिन