Dalit Sandarbh aur Hindi Upanyas (Dalit aur gair Dalit Upanyaskaron ke Tulnatmak…)
दलित संदर्भ और हिंदी उपन्यास (दलित और गैरदलित उपन्यासकारों के…)

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दलित संदर्भ और हिंदी उपन्यास (दलित और गैरदलित उपन्यासकारों के…)

Dalit Sandarbh aur Hindi Upanyas (Dalit aur gair Dalit Upanyaskaron ke Tulnatmak…)
दलित संदर्भ और हिंदी उपन्यास (दलित और गैरदलित उपन्यासकारों के…)

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Author(s) — Dileep Mehra
लेखक – दिलीप मेहरा

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 245 Pages | 2020 | 6 x 9 Inches |

| available in PAPER BOUND & HARD BOUND |

 

Description

डॉ. दिलीप मेहरा

जन्म : 27 दिसम्बर, 1968; ग्राम-बार,
ता. विरपुर, जनपद-महिसागर, गुजरात; शिक्षा : एम.ए., एम.फिल., पी-एच.डी. पुरस्कार : गुजरात युनिवर्सिटी द्वारा एम.ए. समग्र हिन्दी में स्वर्णपदक (1993), हिन्दी साहित्य में योगदान के लिये नागरी प्रचारिणी सभा देवरिया उ.प्र. से ‘नागरी रत्न’ (2015), हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग, उज्जैन द्वारा ‘राष्ट्रभाषा रत्न’ (2018), दलित-साहित्य अकादमी,
नयी दिल्ली से अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय पुरस्कार (2011), महाराष्ट्र दलित-साहित्य अकादमी से रवीन्द्रनाथ टैगोर लेखक पुरस्कार (2010)। यू.जी.सी. बृहद शोध परियोजना: हिन्दी उपन्यासों में दलित-विमर्श (दलित एवं गैर-दलित उपन्यासकारों के तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य में, 2013-2016) प्रकाशन : 1. मन्नू भंडारी के कथा-साहित्य में
मानव जीवन की समस्याओं का निरूपण (शोध प्रबन्ध) 2. मन्नू भंडारी का कथा संसार (आलोचना) 3. उपन्यासकार धर्मवीर भारती (आलोचना) 4. सम्पादक, साठोत्तरी हिन्दी उपन्यास 5. सम्पादक, मध्यकालीन हिन्दी काव्य 6. हिन्दी उपन्यास : नये आयाम (लेख संग्रह) 7. सम्पादक, मीडिया लेखन 8. दृश्य-श्रव्य माध्यम : विविध परिप्रेक्ष्य, (आलोचना)
9. सम्पादक, हिन्दी कथा-साहित्य में दलित-विमर्श 10. सम्पादक, हिन्दी महिला
कथाकारों के साहित्य में नारी-विमर्श 11. सम्पादक, प्रेमचन्द के कथा–साहित्य में
सामाजिक सरोकार 12. वाङ्गमय वाटिका के विविध रंग, (आलोचना) 13. दलित केन्द्रित हिन्दी उपन्यास 14. आदिवासी संवेदना और हिन्दी उपन्यास 15. इक्कीसवीं सदी के
हिन्दी उपन्यास 16. हिन्दी उपन्यासों में किन्नर समाज 17. जल संस्कृतिना वाहक मेहरा, गुजराती, (आलोचना) 18. मकान पुराण (कहानी-संग्रह) 19. हिन्दी साहित्य में किन्नर जीवन विशेष : दस दर्जन से ज्यादा शोधालेख, कविताएँ व व्यंग्य प्रकाशित तथा शोध-निर्देशक : सरदार पटेल विश्वविद्यालय वल्लभ विद्यानगर, गुजरात; प्रधान सम्पादक : साहित्य वीथिका (अन्तरराष्ट्रीय शोध पत्रिका)। सेमिनार : 100 से ज्यादा राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय तथा राज्यस्तरीय आदि में पपत्र पठन, 40 से ज्यादा राष्ट्रीय, अन्तरराष्ट्रीय एवं राज्यस्तरीय संगोष्ठियों में अध्यक्ष, विषय विशेषज्ञ तथा वक्ता के रूप में तथा अनेक
समितियों में सदस्य, विशेष : अध्यक्ष, सर्वोदय एज्यूकेशन ट्रस्ट, गोधरा; सम्प्रति :
आचार्य, स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर, आणंद, गुजरात सम्पर्क सूत्र : 1423/1 यश भवन (शालिनी अपार्टमेंट के पीछे), नाना बाजार, वल्लभ विद्यानगर, जि. आनन्द, गुजरात दूरभाष : सचलभाष-9426363370;
e-mail : mehradilip52@gmail.com; Web site : www.dilipmehra.wordpress.com

पुस्तक के बारे में

सन्‌ 1492 में कोलंबस ने अमरिका खंड को ढूँढ़ा, तो वास्कोडीगामा नामक एक साहसिक कप्तान सन्‌ 1498 में केरल के कालिकट बन्दर पर उतरा। उसके बाद पोर्टुगीज़, फ्रान्सीसी, अँग्रेज आदि व्यापारी भारत आने लगे और शनैः-शनैः व्यापार के बहाने उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में अपनी राजनीतिक शक्ति को बढ़ाना शुरू किया। पोर्टुगीज (फिरंगी) लोगों के उपनिवेश दीव, दमण, गोवा में सिमटकर रह गए। अँग्रेजों और फ्रांसिसों के बीच टकराहटें चलती रहीं। अन्ततः अँग्रेज गर्वनर क्लाइव ने फ्रान्सीसी डूपले को पराजित किया और इस प्रकार भारत में अँग्रेजी सत्ता की नींव पड़ी। इन अँग्रेजी शासकों, अधिकारियों और व्यापारियों के साथ ईसाई पादरी (धर्मगुरु) भी धर्म-प्रचार हेतु आते थे। ईसाई धर्म के प्रचार हेतु आए इन पादरियों ने हिन्दू धर्म के कतिपय छिद्रों को लेकर हमले शुरू किए, जिसके चलते भारत की बहुत-सी निम्नवर्गीय-निम्नवर्णीय दलित जातियों में धर्म-परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हुई। इनमें विशेषतः एस.सी. (Scheduled Castes) और एस.टी. (Scheduled Tribes) वर्ग की जातियों का समावेश होता है। हिन्दू धर्म में शास्त्र, परम्परा और रूढ़ियों के बहाने इन जातियों पर कई सारी निर्योग्यताएँ थोपी गई थीं और इनका कई प्रकार का शोषण चल रहा था। धर्म और शास्त्र के नाम पर बहुत से अमानवीय और अधार्मिक कार्य होते थे। उदाहरण के तौर पर यदि सती-प्रथा को ही लें तो उसमें पति की मृत्यु के बाद विधवा को सती बनाया जाता था, अर्थात्‌ उसे पति की ही चिता पर बिठाकर जिन्दा जला दिया जाता था। कितना बर्बर, कितना नृशंस। किसी स्त्री को जिन्दा जला देना और वह भी धर्म के नाम पर। इसी तरह का दूसरा अमानवीय उदाहरण– हम कुत्ते-बिल्लियों को तो पाल लेते हैं, उन्हें छूते भी हैं, प्यार से सहलाते भी हैं। लेकिन कुछ दलित जातियों के लोगों को जिन्हें अस्पृश्य माना गया था, उनके स्पर्श-मात्र से हम अपवित्र हो जाते हैं। मनुष्य जाति का कितना बड़ा अपमान। इसी प्रकार के बहुत-से कुरिवाज धर्म और शास्त्र के नाम पर चलते थे, जैसे कि शिशु विवाह, बालिका विवाह, वृद्ध विवाह, दहेज-प्रथा, आदि-आदि। शूद्रों को शिक्षा का अधिकार नहीं था, उनको सार्वजनिक स्थानों से पानी भरने का अधिकार नहीं था, मृत्यु के बाद अग्नि-संस्कार का अधिकार नहीं था, उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर अन्तिम क्रिया सम्पन्न कराने का भी अधिकार नहीं था, उनको जमीन बसाने का अधिकार नहीं था, कीमती वस्त्र और धातु सोना-चाँदी-पीतल-बाम्बा-काँसा आदि खरीदने का उन्हें कोई अधिकार नहीं था, उन्हें उच्च जातियों के खिलाफ न्याय के लिए गोहार लगाने का भी अधिकार नहीं था। ऐसी कई-कई निर्योग्यताएँ उन पर थोपी गई थीं और ये सब धर्म और शास्त्र के नाम पर। लिहाजा ये दलित जातियों के लोग जब बाहरी सम्पर्क में आए और दूसरे धर्म के लोगों ने जब उनको वास्तविकता का आईना दिखाया तो सदियों से प्रताड़ित, पीड़ित, अत्याचारित इन लोगों में धर्म-परिवर्तन की प्रक्रिया शुरू हुई। पिछली कुछ शताब्दियों में मोटे तौर पर यह प्रक्रिया दो बार हुई–मुसलमानों के आगमन पर और ईसाई लोगों के आने पर। उस समय बहुत-सी दबी-कुचली जातियों के लोगों ने क्रमशः इस्लाम और ईसाई धर्म अंगीकार किया।

अनुक्रम

आत्मनिवेदन 9
1. दलित-साहित्य परिभाषा और विभावना 17
2. अदलित हिन्दी लेखकों द्वारा प्रणित दलित-चेतना सम्पन्न उपन्यास 66
3. दलित लेखकों द्वारा प्रणित दलित-चेतना सम्पन्न उपन्यास 148
4. उभय पक्ष के उपन्यासों पर तुलनात्मक दृष्टिपात 222
5. उभय पक्ष के उपन्यासों में दलित समस्याओं का निरूपण 258
उपसंहार 282
परिशिष्ट
1. दलित और गैर-दलित-साहित्यकारों का साक्षात्कार 291
2. ग्रन्थानुक्रमणिका 305

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