Editor(s) & Complier(s) — Rambabu Kumar Sankritya
चयन एवं सम्पादन — रामबाबू कुमार सांकृत्य
| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 279 Pages | 6.5 x 9.5 inches |
₹499.00
आजादी की जिम्मेदारियाँ
“आजादी और शक्ति (सत्ता) जिम्मेदारी लाती है। वह जिम्मेदारी सभा (संविधान) पर है, जो भारत की सम्प्रभु जनता का प्रतिनिधित्व करने वाली सम्प्रभुता सम्पन्न निकाय है। आजादी के जन्म से पहले, हमने प्रसव की सभी पीड़ायें झेली हैं और हमारे हृदय इस दुख की याद से बोझिल हैं। उनमें से कुछ पीड़ायें अभी भी जारी हैं। फिर भी, भूत खत्म हो चुका है और भविष्य हमारे सम्मुख देदीप्यमान हो रहा है।
“वह भविष्य सहज होने या विश्राम करने का नहीं, बल्कि लगातार कोशिशों का है ताकि हम उन शपथों को पूरा कर सकें जो हम अक्सर ही लेते रहे थे और उसका जो हम आज लेने वाले हैं। भारती की सेवा का मतलब है उन करोड़ों लोगों की सेवा है जो पीडि़त हैं। इसका मतलब है गरीबी और अज्ञान को, बीमारी और अवसर की असमानता को खत्म करना। हमारी पीढ़ी के महानतम व्यक्ति की महत्वाकांक्षा रही है, हरेक आँख के हरेक आँसू पोंछ डालने की। वह हमारी पहुँच से परे हो सकता है, परन्तु जबतक आँसू हैं, पीड़ायें हैं, तब तक हमारा काम खत्म नहीं हो सकता और इसलिए हमें परिश्रम करना है, काम करना है और कठिन काम करना है अपने सपनों को साकार करने के लिए। ये अपने भारत के लिए है, किन्तु ये दुनिया के लिए भी है– क्योंकि सभी राष्ट्र और जनगण आज एक-दूसरे से अभिन्न रूप से गुथे हुए हैं, कुछ इस कदर कि उनमें से किसी के लिए यह कल्पना करना मुमकिन नहीं कि वे अलग-थलग रह सकता है। शान्ति को अविच्छिन्न कहा गया है, वैसे ही आजादी भी, वैसे ही आज समृिद्ध भी, और वैसे ही आपदा भी, इस एक दुनिया में जिसे अब अलग-अलग टुकड़ों में नहीं बाँटा जा सकता।”
— पंडित जवाहरलाल नेहरू
वर्ग एकजुटता और चेतना में जातीय विभाजन अथवा धार्मिक मतभेदों का कोई स्थान नहीं है। अतीत में चाहे उनकी जो भी वैधता रही हो, पूँजीवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ तथा समाजवाद पर आधारित नये समाज के लिए संघर्ष में उनका कोई स्थान नहीं है क्योंकि वह तीनों के मिलजुले विष वमन का निषेध है।
– एस.ए. डांगे, (भारत में ट्रेड यूनियन आन्दोलन, की उत्पत्ति, अँग्रेजी संस्करण, पृ. 11)
समाजवादी अर्थव्यवस्था को अपने को निर्मित करने के लिए आक्रमण की जरूरत नहीं पड़ती। इस कारण कि ऐसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन सम्बन्धों के चलते संकट पैदा नहीं होते, उत्पादन और उपभोग उस ढंग से बाधित नहीं होते जिस ढंग से पूँजीवादी सम्बन्धों के चलते होते हैं। ऐसी व्यवस्था की नियामक शक्ति आक्रमण नहीं है, उसे इसकी दरकार नहीं होती, यानी अपनी अर्थव्यवस्था को समृद्ध करने के लिए विजीत देश के भूखंड और आबादी पर कब्जा जमाकर धन पैदा करने और अधिशेष मूल्य हड़प लेने की जरूरत नहीं होती।
परन्तु मुझे सन्देह है कि कोई समाजवादी सरकार आक्रमण कर सकती है अथवा नहीं– किसी समाजवादी देश की सरकार एक चीज है और समाजवादी अर्थव्यवस्था दूसरी।
पूँजीपति वर्ग की सरकार पूँजीपति वर्ग से ज्यादा कुछ है क्योंकि पूँजीपति वर्ग की सरकार समग्र वर्ग सम्बन्धों को समझ सकती है, जबकि पूँजीपति वर्ग का हरेक तबका अपने तबके के हितों को ही समझता है। इसलिए राष्ट्रीय पूँजीपति वर्ग की सरकार को पूँजीपति वर्गों के कतिपय हिस्सों पर चोट करनी होती है।
– एस.ए. डांगे, (एटक सामान्य परिषद में 16-18 नवम्बर, 1962 के भाषण से)
Weight | 500 g |
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Dimensions | 10 × 7 × 1 in |
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