Apradh aur Dand
अपराध और दण्ड

440.00950.00

Author(s) — Fyodor Dostoyevsky
लेखक  — फ़्योदर दसतायेव्स्की

Translator(s) — Munish Narayan Saxena
अनुवाद  — मुनीश नारायण सक्सेना

Editor(s) — Anil Janvijay
सम्पादक  — अनिल जनविजय

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Total 496 Pages | | 6.125 x 9.25 inches |

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Description

पुस्तक के बारे में

फ़्योदर दसताएव्स्की के उपन्यास ‘अपराध और दण्ड’ को सम्पूर्ण विश्व साहित्य की स्वर्ण मंजूषा में शामिल दुनिया के दस सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में से एक माना जाता है। दुनिया भर के सौ देशों की 200 से ज़्यादा भाषाओं में इस उपन्यास का प्रकाशन हो चुका है। हिन्दी में यह उपन्यास तीस-पैंतीस साल से अनुपलब्ध था। अब यह फिर आपके हाथों में है।
युवावस्था में अपनी सक्रिय राजनीतिक गतिविधियों की वजह से मौत की सज़ा पाकर लेखक को लम्बे समय तक जेल में रहना पड़ा था। वहीं पर खतरनाक अपराधियों की मानसिकता का विश्लेषण करके दसताएव्स्की इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि अपने सामाजिक जीवन औरअपनी आर्थिक परिस्थितियों से पूरी तरह निराश होने के बाद ही कोई भी व्यक्ति अपराध करता है।
इस उपन्यास में यह दिखाया गया है कि कैसे हमेशा अपराधी नैतिक रूप से अपने अपराध का पश्चाताप करना चाहता है और उसे यह एहसास होने लगता है कि उसने मनुष्यता के विरुद्ध जाकर एक बड़ा पाप कर दिया है। दसताएवस्की ने तीन बार इस उपन्यास को लिखा और तीनों बार उसके कथानक में कई-कई बदलाव किए। यहाँ ‘दण्ड’ का मतलब है — अपराधी को अपराध करने के बाद होने वाली मानसिक पीड़ा। कोई भी अत्याचार या अपराध अपराधी को ख़ुद ही दण्डित करना शुरू कर देता है और उस सज़ा से बचना या उससे छिपना असम्भव है।
उपन्यास का मुख्य विषय सत्ता की अनदेखी और भयानक उपेक्षा की वजह से आम जनता का उत्पीड़न और उसके बीच फैली वह भयावह ग़रीबी है, जिसमें सता के अधिकारियों और सम्पन्न वर्गों की कोई दिलचस्पी नहीं होती। अपनी अशिक्षा और सदियों से चली आ रही सामाजिक कुरीतियों और परम्पराओं में फँसे होने के कारण आम जनता के बीच लगातार एक भ्रम की स्थिति बनी रहती है।
घुटनभरी ग़रीबी, सामाजिक असमानता और अपनी निराशा से छुटकारा पाने का लोगों को एक ही रास्ता दिखाई देता है और वह है अपराध और हिंसा या सत्ता और सत्ताधारियों और सम्पन्न वर्गों के ख़िलाफ़ विद्रोह। इस तरह सामाजिक असमानता को दूर करने जैसे एक अच्छे ध्येय और अच्छे लक्ष्य को पाने के लिए हिंसा और अपराध करने की संभावना को भी दसताएव्स्की ने नैतिक स्तर पर एक विनाशकारी सोच बताया है।
– अनिल जनविजय

 

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