Anna Karenina (Vol.-1 & Vol.-2) One of best Leo Tolstoy’s Russian Classical Novel
लेफ़ तलस्तोय कृत आन्ना करेनिना (उपन्यास दो खण्डों में)

Anna Karenina (Vol.-1 & Vol.-2) One of best Leo Tolstoy’s Russian Classical Novel
लेफ़ तलस्तोय कृत आन्ना करेनिना (उपन्यास दो खण्डों में)

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Author(s) — Leo Tolstoy
लेखक  — लेफ़ तलस्तोय

Translator(s) — Madan Lal ‘Madhu’
अनुवादक  — मदनलाल ‘मधु’

Editor(s) — Anil Janvijay
सम्पादक  — अनिल जनविजय

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | Vol.-1 = 352 Pages + Vol.-2 = 316 Pages
(Total 668 Pages | 2023 | 6.125 x 9.25 inches |

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Description

पुस्तक के बारे में

लेफ़ तलस्तोय का उपन्यास ‘आन्ना करेनिना’ एक ऐसी भद्र युवा महिला के जीवन पर आधारित है, जो कुलीन घराने की प्रतिनिधि है। आन्ना का विवाह हो चुका है, लेकिन वह सुखी नहीं है। उसका पति भावनाओं और अनुभूतियों से रहित एक ऐसा व्यक्ति है, जिसकी नज़र में रूसी आभिजात्य समाज के पाखण्ड, आडम्बर और ढकोसले ही सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है। अपनी पत्नी को, उसके मनोभावों और अनुभूतियों को वह कोई महत्व नहीं देता। पति के व्यवहार से परेशान आन्ना को भी अपने पति से प्रेम नहीं होता। उसे एक अन्य व्यक्ति से प्रेम हो जाता है और वह अपने पति को छोड़कर उस व्यक्ति के साथ रहने लगती है। उसकी इस हरकत पर आभिजात्य और भद्र समाज उस पर थू-थू करने लगता है। चारों तरफ़ से उसकी निन्दा की जाती है। समाज की नज़र में उनका यह प्रेम अवांछित है और यह उनके इस अवांछित प्रेम की परीक्षा की घड़ी है। परन्तु उनका प्रेम स्त्री-पुरुष के बीच आपसी सम्बन्धों पर लगी समाज की बन्दिशों की अवहेलना नहीं कर पाता। आन्ना और उसक्रे प्रेमी व्रोनस्की के बीच भी आख़िरकार मतभेद पैदा हो जाते हैं। आन्ना इस बात को समझती है कि वह प्रेम के बिना इस दुनिया में ज़िन्दा नहीं रह पाएगी। जीवन की इस त्रासद स्थिति में अन्तत: वह अपने प्रेम को ज़िन्दा रखने के लिए अपना बलिदान दे देती है।
उपन्यास ‘आन्ना करेनिना’ यूँ तो एक असफल प्रेम कहानी है, लेकिन उसमें आज से डेढ़ सौ साल पहले के तत्कालीन रूसी समाज के जीवन, जीवन-गतिविधियों और जीवन-मूल्यों का विस्तार से वर्णन किया गया है। उपन्यास के लेखक लेफ़ तलस्तोय एक जागीरदार थे और उनका पारिवारिक जीवन भी सुखद था। तलस्तोय की पत्नी सोफ़िया ने कुल तेरह बच्चों को जन्म दिया। पारिवारिक प्रेम, बच्चों की परवरिश, बच्चों की शिक्षा और उन्हें एक अच्छा नागरिक बनाना भी हर मनुष्य का कर्तव्य होता है। हालाँकि हर व्यक्ति के लिए जीवन का अर्थ, ज़िन्दगी के मायने अलग-अलग होते हैं, लेकिन समाज की मान्यताओं पर किसी एक व्यक्ति के जीवन को न्यौछावर नहीं किया जा सकता है। व्यक्ति से समाज बनता है, ना कि समाज व्यक्ति का ठेकेदार होता है। व्यक्ति की अपनी एक अलग महत्ता होती है। लेफ़ तलस्तोय का मानना था कि सामाजिक मान्यताओं को मनुष्य के जीवन में उतना महत्व नहीं देना चाहिए, जितना मनुष्य के निजी संवेगों, आवेगों और प्रेम को देना चाहिए क्योंकि इनके बिना जीवन जीना दुश्वार हो जाता है।

— अनिल जनविजय

 

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