Aadivasi Kahani Sahitya aur Vimarsh
आदिवासी कहानी साहित्य और विमर्श

Aadivasi Kahani Sahitya aur Vimarsh
आदिवासी कहानी साहित्य और विमर्श

485.00

99 in stock

Editor(s) — Khanna Prasad Amin
संपादक – खन्ना प्रसाद अमीन

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 252 Pages | Hard BOUND | 2020 |
| 5.5 x 8.5 Inches | 450 grams | ISBN : 978-93-89341-20-1 |

99 in stock

Description

पुस्तक के बारे में

भूमंडलीकरण के कारण आदिवासियों की स्थिति दर्दनाक बन गई है। उनको सभी जगहों से बेदखल कर अपमानित किया जा रहा है। जिन आदिवासियों ने जंगल-झाड़ काटकर जंगली जानवरों से लड़कर खेत-खलिहान बनाए और उन्हें वहाँ से खदेड़ा जाएगा तो कैसा महसूस होगा? इस विषय में वह बहुत कुछ कहना चाहता है लेकिन शब्दों की कलाबाजीगरी वह नहीं जानता। इसलिए उन्हें उत्पीड़न और शोषण से गुजरना पड़ रहा है। वह बेसहाय, बेबस और लाचार नजर आता है। क्योंकि उनके साथ आए दिन अन्याय ही किया जा रहा है। उनको संविधान द्वारा प्रदत्त मूलभूत अधिकारों से वंचित रखा गया है। विकास के नाम पर उनका विनाश होता नजर आ रहा है। उनका विविध परियोजनाओं के नाम पर बहुत शोषण किया जा रहा है। मैं तो कहता हूँ कि आदिवासियों के बिना देश का विकास गूँगा है। हर तरह के विकास में उनका पसीना बहा है। देश के विकास के लिए तो उन्होंने अपना जीवन भी न्यौछावर कर दिया है। फिर भी उनके काम का कोई मूल्य आँका नहीं जाता है। कई जगहों पर तो आदिवासियों को म्यूजियम की वस्तु बनाया जाता है। आदिवासी समाज के साथ हुए अन्याय, अत्याचार, शोषण आदि की सच्ची तस्वीर को कई लेखकों ने साहित्य के माध्यम से समाज के सामने रखा। इक्कीसवीं सदी के बढ़ते कदम में आदिवासियों की चिन्ता करना अत्यन्त आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आदिवासियों का जीवन सभी प्रकार के विकास से वंचित रह जाएगा और इक्कीसवीं सदी ज्ञान और तकनीक की सदी न रहकर विनाश की सदी बन जाएगी।

…इसी पुस्तक से…

भूमंडलीकरण के कारण गाँव शहर के सम्पर्क में आने लगे हैं परिणामस्वरूप लोगों की सोच में बदलाव देखा जा रहा है। हिन्दी साहित्य में अब तक आदिवासियों की पीड़ा को गैर-आदिवासियों द्वारा या तो उसे अनदेखी की गई है। परन्तु आज आदिवासियों में चेतना का संचार हुआ है। रमणिका गुप्ता का यह कथन इस बात का समर्थन करता है, कि– “आज आदिवासियों में चेतना जगी है। वह नई-नई विचारधाराओं और क्रान्तियों से परिचित हुआ है, जिनके परिप्रेक्ष्य में वह अपनी नई-पुरानी स्थितियों को तोलने लगा है। उसमें अपने होने-न-होने, अपने हकों के अस्तित्व की वर्तमान स्थिति, अपने साथ हुए भेदभाव व अन्याय का बोध भी जगा है। यही बोध उसके साहित्य में झलक रहा है।”
आदिवासी अपने खोये हुए अधिकार एवं लुप्त होने की कगार पर खड़ी अपनी संस्कृति को साहित्य के माध्यम से उजागर करने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए तथाकथित समाज से यह कह रहे हैं कि–“देखो! हम एक ऐसे समाज हैं, जिनके मूल्यों का न तो ह्रास हुआ है, ना ही उनमें विकृति आई है। हम सामूहिक जीवन-प्रणाली में जीते रहे हैं–समाज और समूह में रहते रहे हैं– तुम्हारे द्वारा दी गई कठिन जिन्दगी को अपने गीतों, अपने नृत्य से भुलाते रहे हैं। तुमने हमें सभ्यता से दूर ठेला–विस्थापित किया–हमने बाँसुरी और नगाड़े के माध्यम से आपसी संवाद जारी रखा–अब यह संवाद नाद बनकर फूट पड़ा है। बाँसुरी को हमने ‘मशाल’ बना लिया है। अब देश और भाषाओं की सीमाएँ और कबीलों के दायरे लाँघकर हम अपने समूचे समाज को रोशन करने के लिए संकल्पबद्ध हो गए हैं। हमारी भाषाओं ने अब कलम थाम ली है। हम लिखने लगे हैं–अब हमने अपनी अस्मिता पहचान ली है।”

…इसी पुस्तक से…

अनुक्रम

  • सम्पादकीय
  • कहानी साहित्य
  • आदिवासी कहानी लेखन – डॉ. गंगा सहाय मीणा
  • कहानी-साहित्य में आदिवासी – हरिराम मीणा
  • हिन्दी कहानी-साहित्य में आदिवासी जीवन – डॉ. खन्नाप्रसाद अमीन
  • जनजातीय जीवन की कहानियों में करुणा और संघर्ष – डॉ. धनंजय चौहाण
  • आदिवासी रचनाकार पीटर पॉल एक्का का कथा कर्म : एक दृष्टि –डॉ. पुनीता जैन
  • समकालीन आदिवासी कहानियों में झाँकती आदिवासी जीवन की समस्याएँ – डॉ. आदित्य कुमार गुप्त
  • गोरख कथाओं में आदिवासी संस्कृति का स्वरूप – अश्विनी रोलन
  • समकालीन हिन्दी कहानी में आदिवासी-विमर्श – डॉ. ईश्वरसिंह राठवा
  • संजीव की ‘टीस’ कहानी में आदिवासी अस्तित्व का संघर्ष – प्रो. डॉ. एन. टी. गामीत
  • समकालीन हिन्दी कहानी में आदिवासी समाज – डॉ. यशपाल सिंह राठौड़
  • आदिवासी कहानियों में अभिव्यक्त आदिवासी जीवन का यथार्थ – डॉ. माया प्रकाश पाण्डेय
  • आदिवासी कहानी : त्रासद आदिवासी जीवन – डॉ. सनी सुवालका
  • नक्सली आदिवासी अन्त:सम्बन्ध : एक वैचारिक संकट – डॉ. रमेश चंद मीणा
  • हिन्दी में आदिवासी जीवन केन्द्रित कहानियों का संक्षिप्त विश्लेषण – डॉ. सुरेश कुमार वसावा
  • हिन्दी आदिवासी कहानियाँ : संघर्ष, शोषण, विस्थापन एवं दर्द का दस्तावेज – डॉ. धीरज वणकर
  • समकालीन हिन्दी कहानी और आदिवासी जीवन-सन्त्रास – डॉ. कुलदीप सिंह मीणा
  • प्रायश्चित का दंश –डॉ. अमिता
  • मूल निवासियों के अपकर्ष (पतन) एवं हीनता-बोध की भाषिक कहानी के आधारभूत तत्त्व –डॉ. श्रवण कुमार मेघ
  • बहू जुठाई : अपनी जमीन से जुड़ी कहानियाँ – डॉ. जशवंत एस. राठवा
  • बस्तर की लोक-कथाओं में चित्रित सांस्कृतिक परिदृश्य – डॉ. विनीता रानी
  • कुंकणा जाति और उसकी राम-कथा – डॉ. हेतल जी. चौहाण
  • आदिवासी कहानी और समाज – डॉ. राखी के. शाह
  • समसामयिक हिन्दी साहित्य चेतना का स्वर-आदिवासी चेतना – डाॅ. के. सुवर्णा
  • हिन्दी आदिवासी कहानी साहित्य– एक विवेचन – प्रा. आमलापुरे सूर्यकान्त विश्वनाथ
  • विविध विमर्श
  • आदिवासी संस्कृति : दशा एवं दिशा – डॉ. जनक सिंह मीना
  • वनवासियों की वेदना का स्वर : ‘आदिवासी की मौत’ – बुद्धिनी कुमारी
  • हिन्दी लेखन और आदिवासी साहित्य – डाॅ. संजीव कुमार
  • भूमंडलीकरण और आदिवासी अस्मिता – डॉ. खन्नाप्रसाद अमीन
  • ‘छाड़न’ उपन्यास और आदिवासी समाज – डॉ. सुरेश कुमार निराला
  • लेखकों का परिचय

लेखकों का परिचय

  • डॉ. गंगासहाय मीणा, सह. आचार्य, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली-67
  • हरिराम मीणा, 31, शिवशक्ति नगर, किंग्सरोड, अजमेर हाई-वे, जयपुर-302019
  • डॉ. खन्ना प्रसाद अमीन, 1/4, तीन बंग्लोज, प्रथम मंजिल, एम.एस. मिस्त्री प्रा.शाला के सामने, वल्लभविधा नगर 388120, आणंद-गुजरात
  • डॉ. धनंजय चौहान, एसोसिएट प्रोफेसर, नलिनी एंड टी.वी. पटेल आर्ट्स कॉलेज, वल्लभविधा नगर 388120, आणंद-गुजरात
  • डॉ. पुनीता जैन, प्राध्यापक-हिन्दी, शास. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, भेल, भोपाल
  • डॉ. आदित्य कुमार गुप्त, एसोसिएट प्रोफेसर, राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा, राजस्थान
  • अश्विनी रोलन, शोध छात्र, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर, राजस्थान-342011
  • डॉ. ईश्वर सिंह राठवा, एसोसिएट प्रोफेसर, आदिवासी आर्ट्स एवं कॉमर्स कॉलेज, संतरामपुर, गुजरात-389260
  • प्रो. डॉ. एन.टी. गामीत, प्रोफेसर हिन्दी विभाग, सौराष्ट्र विश्वविद्यालय, राजकोट, गुजरात-05
  • डॉ. यशपाल सिंह राठौड, फ्लैट नं.-1115, ब्लॉक-29, रंगोली गार्डन, वैशाली नगर, जयपुर (राजस्थान) 302034
  • डॉ. मायाप्रकाश पाण्डेय, असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, कला संकाय, महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, बडौदा- 390002, गुजरात
  • डॉ. सुनी सुवालका, इन्दरगाह, जिला-बूँदी, राजस्थान-323613
  • डॉ. रमेशचन्द मीणा, एसोसिएट प्रोफेसर, राजकीय महाविद्यालय, बूँदी, राजस्थान
  • डॉ. सुरेश कुमार वसावा, गाँव-दोधनवाडी, तहसील-सागबारा, जिला-नर्मदा, गुजरात
  • डॉ. धीरज वणकर, एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, बी.डी. आर्ट्स कॉलेज, अहमदाबाद- 380001
  • डॉ. कुलदीप सिंह मीणा, सहायक प्रोफेसर, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर राजस्थान
  • डॉ. अमिता, सहायक प्राध्यापक, गुरू घासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
  • डॉ. श्रवणकुमार मेघ, सह. आचार्य, हिन्दी विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर, राजस्थान-342011
  • डॉ. जशवंत एस. राठवा, एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, डी.डी. ठाकर आर्ट्स एंड के.जे. पटेल कॉमर्स कॉलेज, खेडबह्मा-383255, गुजरात
  • डॉ. विनीता रानी, सहायक प्रोफेसर, जानकी देवी मैमोरियल कॉलेज, दिल्ली
  • डॉ. हेतल जी. चौहान, प्राध्यापक तुलनात्मक साहित्य, हिन्दी विभाग, वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय, सूरत-गुजरात
  • डॉ. राखी के. शाह, प्राध्यापक, जैन महाविद्यालय, बैंगलूर-27
  • डॉ. के. सुवर्णा, जी.टी. कलाशाला, सुंकदकहे, बैंगलूर-91
  • प्रा. आलमपूरे सूर्यकान्त विश्वनाथ, सहायक प्राध्यापक, डॉ. श्री नानासाहेब धर्माधिकारी महाविद्यालय, कोलाड, ता. रोहा जिला-रायगढ़, महाराष्ट्र-402304
  • डॉ. जनकसिंह मीणा, सहायक प्रोफेसर राजनीति विज्ञान विभाग, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर
  • बुद्धिनी कुमारी, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, मद्रास विश्वविद्यालय, चैन्नई-600005
  • डॉ. संजीव कुमार, प्राध्यापक, विश्वविद्यालय कॉलेज हमपन्नकट्टा, मंगलौर-575001
  • डॉ. खन्ना प्रसाद अमीन, 1/4, तीन बंग्लोज, प्रथम मंजिल, एम. एस. मिस्त्री प्रा.शाला के सामने, वल्लभविद्या नगर-388120, आणंद
  • डॉ. सुरेशकुमार निराला, हिन्दी विभाग, अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद-500007
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