Aadhunik Bharat Nirman mein Esaiayat ka Yogdan
आधुनिक भारत निर्माण में ईसाइयत का योगदान

500.00780.00

Author(s) — Joseph Anthony Gathia
लेखक — जोसेफ एन्थोनी गाथिया

| ANUUGYA BOOKS | HINDI | 420 Pages | 6.125 x 9.25 Inches | 400 grams |

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Description

पुस्तक के बारे में

आखिरकार महात्मा गाँधी ने अपने अखबार का नाम ‘यंग इंडिया’ क्यों रखा था? इसे समझने के लिए हमें इतिहास में झाँकना पड़ेगा। भारत का आधुनिक काल प्लासी युद्ध (1757) के बाद प्रारम्भ हुआ। अठारहवीं सदी का भारत अज्ञानता एवं अन्धविश्‍वास के आगोश में जकड़ा हुआ था। उन्‍नीसवीं सदी के प्रारम्भ सें भारत आधुनिकता की राह पर चला।
आधुनिक राष्‍ट्र निर्माण एक दुरूह, सतत एवं क्रमिक विकास वाली प्रक्रिया है। यह अनेक कारकों से प्रभावित होती है एवं इसकी उद्‍भवन-अवधि (इन्क्यूवेशन पीरियड) लम्बी होती है। इसमें शिक्षा, कानून का राज, समानता और स्वतंत्रता परिवर्तनकारी भूमिका निभाते हैं।
जोसेफ एन्थोनी गाथिया द्वारा रचित ‘आधुनिक भारत निर्माण में ईसाइयत का योगदान’ किताब औपनिवेशिक काल एवं आजादी से अबतक शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक सुधारों, ‘कानून का राज’ भाषा एवं साहित्य, प्रिंटिंग प्रेस, मानवतावाद, दलित, आदिवासी, वंचित वर्गों के विकास एवं प्रजातांत्रिक संस्थाओं की स्थापना में ईसाइयत के योगदान का विश्लेषण करते हुए हमें नवजागरण काल एवं राष्‍ट्रीय आन्दोलन के ऐतिहासिक पहलुओं से परिचित कराती है। भारत के शोषित, वंचित वर्ग-महिलाओं, पिछड़ा वर्ग, दलितों एवं आदिवासियों में अधिकार बोध और अधिकार चेतना कैसे विकसित हुई? आधुनिक मिशनरी शिक्षा की इसमें क्या भूमिका थी? भारत के नव-जागरण काल के उदय में ईसाई चिन्तन की क्या भूमिका रही? इस किताब में निर्विकार एवं निष्पक्ष रूप से इन सवालों के जवाब देने की कोशिश की गयी है।
यह किताब आधुनिक भारत निर्माण की प्रक्रिया में ईसाइयत एवं मिशनरियों के योगदान की निष्पक्ष पड़ताल करती है। यह पुस्तक कई मायनों में दस्तावेजी है। यह कृति इक्‍कीसवीं सदी के भारत में ईसाइयत की भूमिका पर एक नई बहस का आधार बन सकती है। हिन्दी भाषा में यह अपने ढंग की पहली कृति है।
इस पुस्तक में लेखक ने भारत में ईसाइयत सम्बन्धी ऐसे लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है जिसकी जानकारी सम्भवत: अनेक ईसाइयों को भी नहीं होगी।
ऐसे प्रत्येक भारतीय के लिए जो जिज्ञासु है कि इक्‍कीसवीं सदी के भारत में ईसाइयत की क्या गतिविधियाँ हैं और उसकी भावी कार्यनीति क्या होगी; इस पुस्तक का अध्ययन आवश्यक ही नहीं, अपरिहार्य है।

“हिन्दी में ऐसी कोई और पुस्तक नहीं है जिसमें भारत में ईसाइयत की भूमिका पर इस तरह का व्यापक और कुशाग्र विचार किया गया हो। प्रत्येक भारतीय, चाहे वो किसी भी धर्म का हो को यह किताब पढ़नी चाहिए।”

प्रो. आर.पी. मिश्र
पूर्व कुलपति इलाहाबाद यूनिवर्सिटी; भूतपूर्व डिप्‍टी डाइरेक्टर, यू.एन. रीजनल डवलपमेंट सेंटर, जापान

“इस किताब का उद्देश्य कोई भविष्यवाणी करने के बजाय यह बताना है कि आधुनिक भारत अपनी मौजूदा हैसियत तक कैसे पहुँचा और उसका अंतर्निहित विचार कैसे विकसित हुआ। प्रशंसनीय प्रयास। एक पठनीय कृति।”

प्रो. डी. गोपाल
पूर्व विभागाध्यक्ष, पोलिटिकल साइंस, इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली

“इतिहास और समाज से सम्बन्धित मुद्दों का बहुआयामी विश्लेषण। आजादी से पूर्व एवं बाद हुए क्रम विकास का अनूठा और आकर्षक विवरण है। सही वक्त पर प्रकाशित पुस्तक।”

प्रो. ए.आर. वीजापुर
पूर्व विभागाध्यक्ष, पोलिटिकल साइंस, अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी, अलीगढ़

“हम कह सकते है कि भारत में ईसाइयत की परम्पराओं को इस पुस्तक ने सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है। ईसाइयों और गैर ईसाइयों सभी के लिए एक उपयोगी संदर्भ ग्रंथ।”

पास्टर विक्टर राज
इवेंजेलिकल चर्च

वर्तमान में जब ईसाइयत को लेकर अनेक प्रकार का कुप्रचार किया जा रहा है यह किताब धर्मांतरण, जैसे संवेदनशील मुद‍्दे को समझने में सहायक सिद्ध होने के साथ-साथ अनेक भ्राँतियों एवं गलतफहमियों को भी दूर करने में सहायक सिद्ध होगी। हिन्दी भाषियों के लिए एक सन्दर्भ ग्रन्थ।

फादर जोन पॉल
हेडक्‍वार्टर, एस.वी.डी. सोसाइटी ऑफ द डिवाइन वर्ड, रोम

अनुक्रम

आभार
विषय प्रवेश
1. भारत में ईसाइयत का अत्यन्त संक्षिप्त इतिहास
2. नवजागरण काल की आहट : उन्‍नीसवीं सदी के भारत मेेें सामाजिक परिवर्तन के मिशनरियों के प्रयास
3. शिक्षा, सभ्यता और आधुनिकता : ताजी हवा का झोंका
4. पद्‍‍चिन्ह शेष हैं : चिकित्सा का आधुनिकीकरण क्रूरता से करुणा की ओर
5. महिला सशक्तिकरण में अग्रगामी कदम : नारी विमर्श में नये आयाम
6. दलितोत्थान : अभिशाप से मुक्त सिर्फ रोटी से नहीं
7. भारत के आदिवासी एवं ईसाइयत की प्रगति वैचारिकी
8. भारतीय संस्कृति, कला साहित्य और दर्शन पर ईसाइयत का प्रभाव
9. स्वतन्त्रता संघर्ष में ईसाई भागीदारी की अनसुनी दास्तां
10. सैद्धान्तिक परिप्रेक्ष्य, संगठन एवं विस्तार मिशन सोशल सर्विस : करुणा से सामाजिक दायित्व तक
11. ईसाइयत एवं आधुनिक भारत की आधारशिला : बुनियादी सरोकार
उपसंहार : भविष्य-पथ
सन्दर्भ सूची
अनुक्रमणिका

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